सूर्यग्रहण हो या चंद्रग्रहण ..न्यूज चैनलों पर दोनों ही खूब देखे जाते है..लेकिन इस बार सूर्यग्रहण पर एक नई बात हुई..स्टार न्यूज ने सूर्यग्रहण,ज्योतिष और तर्कशास्त्र पर जोरदार बहस दिखाई..करीब ढाई घंटे तक सूर्यग्रहण के वक्त ज्योतिष और तर्कशास्त्रियों में जंग छिडी रही..
अपने को सही साबित करने के लिए ज्योतिष जहां अजब गजब बयान और तर्कशास्त्रियों को चुनौती दे रहे थे वहीं तर्कशास्त्री विज्ञान के नजरिए से हर बात को परखने में लगे थे..दूसरी तरफ जी न्यूज पूरी तरह वैज्ञानिक ज्ञान पर केन्द्रित सूर्यग्रहण दिखा रहा था. और सबसे सूरमा चैनल यानी आजतक आस्था से सराबोर था। पंडित बदल रहे थे, कभी राशि तो कभी ग्रहण में ये करें ये ना करें ..बता रहे थे..लग रहा था कि इस बार आस्था की जगह बहस और तर्क को ज्यादा टीआरपी मिलेगी यानी स्टार न्यूज फिर नंबर वन हो जाएगा..लेकिन ऐसा हुआ नहीं..
हांलाकि लोगों ने स्टार की बहस को खूब देखा ..दिन भर और शाम को भी लोगों ने इस बहस में इतनीरुचि दिखाई कि ये कई बैंड में नंवर वन रहा.. लेकिन आजतक का घनघोर आस्थावादी सूर्यग्रहण भी खूब देखा गया..यानी जितने लोगों ने इस बहस को देखा तकरीबन उतने ही लोग आजतक पर टिके रहे.. सवाल उठता है कि क्या स्टार का इस तरह की बहस दिखाने का मकसद पूरा हुआ..शायद हां...और नहीं भी... क्योंकि पिछली बार जब भी स्टार ने इस तरह का रुख लेने के बजाए सिर्फ ग्रहण दिखाया तो भी उसे तकरीबन इसी तरह की रेंटिग मिली है..यानी यदि स्टार ये सब नहीं करता तो भी रेंटिग पर ज्यादा फर्क नहीं पडता..हांलाकि जिस तरह से न्यूज रुम में तू तू मैं मैं दिखाई गई उस पर जरुर सवाल खडे होते है..क्या ये बहस आमने सामने की बजाए प्रॉपर पैनल डिस्कशन की तरह नहीं हो सकती थी..शायद ये बहस पैनल डिस्कशन की तरह होती तो स्टार को इतने नंबर नहीं मिलते.. खैर सूर्यग्रहण ने आजतक के सितारे को बुलंद किया..सूर्यग्रहण के एक दिन पहले भी जब सूर्यग्रहण से जुडे शो दिखाए गए तो लोगों ने खूब देखे..
इस हफ्ते की टीआरपी में एक गौर करने की बात ये भी है आजतक की रीच(चैनल की पहुंच) जबरदस्त बढी है जबकि टाइम स्पेंड(एक कार्यक्रम पर जितनी देर दर्शक रुकता है) तकरीबन बाकी चैनलों के बराबर ही है..मतलब केबल वालों को दक्षिणा बढाने का भी हथकंडा इस सूरमा चैनल ने अपने को नंबर वन पर बरकरार रखने के लिए इस्तेमाल किय़ा.. और उसे इसका फायदा हुआ..छोटे चैनलों का दर्द समझ में आता है कि आखिर क्यों वो नंबर वन टू या थ्री की रेस में आगे नहीं आते ..कितना बढिया कंटेट भी दिखा ले लेकिन जबतक रीच नहीं बढेगी..कोई फायदा नहीं।
लगातार टीआरपी के आंकडो को खंगालने पर ये बात पुष्ट होती हुई लगती है कि टीआरपी के फंडे में फर्जीवाडा भी बहुत है..हर चैनल अपने लिए टैम से आंकडे मंगाता है यदि एनबीए या कोई संगठन इसकी सिर्फ एक महीने जांच कर ले तो उसे समझ आ जाएगा..कि किस तरह से आंकडों को दिया जाता है.
टीआरपी फंडा
सूर्यग्रहण के दिन और इससे एक दिन पहले सभी चैनलों ने इससे जुडी खबरें दिखाई और हर राशि के मुताबिक भविष्य भी दिखाया, मजेदार बात ये रही कि एक भी राशि ऐसी नहीं थी जिस पर ज्योतिषियों की एक राय दिखी हो..किसी चैनल पर जिस राशिवालों के लिए साल बहुत बुरा बताया जा रहा था वहीं दूसरे चैनल पर उसी राशिवालों के लिए साल बहुत अच्छा बताया जा रहा था..कुछ चैनलों पर तो एक ही ज्योतिष महाराज ने पहले दिन एक राशि के लिए साल बहुत अच्छा गुजरने की बात कही और अगले दिन उसी राशिवालों को कहा कि बच्चा साल बहुत बुरा गुजरने वाला है..चैनलों को इससे बचना चाहिए क्योंकि इस तरह के ज्योतिष से उनकी विश्वसनीयता घटती है और लंबे समय में टीआरपी का इससे नुकसान भी हो सकता है