सात साल की खोजबीन के बाद इराक पर हमलों की जाँच कर रही ब्रिटेन की जाँच समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इराक पर हमले का फ़ैसला ग़लत था। कमेटी ने साफ़ कहा है कि उस समय के प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने आँख मूँदकर अमेरिका का अनुसरण किया और तथ्यों की जाँच-परख नहीं की। उसने सद्दाम हुसैन की हत्या को भी ग़लत ठहराया है।
इराक़ हमले से संबंधित नए तथ्य आने के बाद सन् 2009 में इस जाँच समिति का गठन किया गया था। उस समय ये जानकारियाँ सामने आई थी कि सद्दाम हुसैन द्वारा परमाणु बम बनाने की बात सिरे से ग़लत थी और ये तत्कालीन अमेरिकी प्रशासन ने मन से गढी थी। इसके बाद टोनी ब्लेयर आरोप लगा था कि उन्होंने ब्रिटेन की जनता से झूठ बोला, उसे धोखा दिया।
हालाँकि समिति ने ब्लेयर को झूठा और धोखेबाज़ तो नहीं कहा है मगर परोक्ष रूप से उनके पिछलग्गूपन को उजागर कर दिया है। उसने ब्लेयर और उनकी गुप्तचर एजंसियों को भी नकारा बताया है। ब्लेयर खुश हो रहे हैं कि उन पर झूठ बोलने और धोखा देने के आरोप ग़लत निकले हैं, मगर सचाई ये है कि समिति ने उनकी और भी ज़्यादा फ़ज़ीहत कर दी है।
ये रिपोर्ट हालाँकि बहुत देर से आई है, मगर ये कई ऩज़रिए से महत्वपूर्ण है। एक तो इसने ब्रिटेन ही नहीं अमेरिका को भी कठघरे में खड़ा कर दिया है, क्योंकि सद्दाम हुसैन और इराक के परमाणु बम बनाने की झूठी ख़बर उसी ने फैलाई थी और फिर मित्र देशों को हमला करने के लिए तैयार किया था। दूसरे, मध्य-पूर्व और पश्चिमी एशिया में जो आतंकवाद फैला है उसमें इराक पर किए गए हमले की बड़ी भूमिका है। यानी समिति की रिपोर्ट साबित करती है कि इराक पर हमले और उसके बाद बनी परिस्थितियों के लिए अमेरिका और उसके मित्र देश ही ज़िम्मेदार हैं। यही नहीं, इराक़ युद्ध में हुई15 लाख लोगों हत्याओं के लिए भी यही देश दोषी हैं।
ध्यान रहे कि कुछ ही महीनों पहले टोनी ब्लेयर ने स्वीकार किया था कि इराक पर हमले की वजह से ही मध्यपूर्व में आतंकवाद फैला है। उन्होंने साफ़ कहा था कि आई एस और अल कायद जैसे संगठनों को इसी हमले से ताक़त मिली। उन्होंने 9-11 के बाद अफगानिस्तान पर किए गए हमले को भी इससे जोड़ा था।
अब सवाल उठता है कि क्या इस रिपोर्ट के आधार पर दुनिया को ये माँग नहीं करनी चाहिए कि अमेरिका और ब्रिटेन और उनके सहयोगी मुल्कों पर युद्ध अपराध का मुकद्दमा चलाया जाए और उन्हें उनके किए की सज़ा दी जाए। क्या वे सिर्फ़ इसलिए बख्श दिए जाएंगे क्योंकि वे शक्तिशाली मुल्क हैं और न्याय-अन्याय की सारी परिभाषाएं वही तय करते हैं?
इराक़ हमले से संबंधित नए तथ्य आने के बाद सन् 2009 में इस जाँच समिति का गठन किया गया था। उस समय ये जानकारियाँ सामने आई थी कि सद्दाम हुसैन द्वारा परमाणु बम बनाने की बात सिरे से ग़लत थी और ये तत्कालीन अमेरिकी प्रशासन ने मन से गढी थी। इसके बाद टोनी ब्लेयर आरोप लगा था कि उन्होंने ब्रिटेन की जनता से झूठ बोला, उसे धोखा दिया।
हालाँकि समिति ने ब्लेयर को झूठा और धोखेबाज़ तो नहीं कहा है मगर परोक्ष रूप से उनके पिछलग्गूपन को उजागर कर दिया है। उसने ब्लेयर और उनकी गुप्तचर एजंसियों को भी नकारा बताया है। ब्लेयर खुश हो रहे हैं कि उन पर झूठ बोलने और धोखा देने के आरोप ग़लत निकले हैं, मगर सचाई ये है कि समिति ने उनकी और भी ज़्यादा फ़ज़ीहत कर दी है।
ये रिपोर्ट हालाँकि बहुत देर से आई है, मगर ये कई ऩज़रिए से महत्वपूर्ण है। एक तो इसने ब्रिटेन ही नहीं अमेरिका को भी कठघरे में खड़ा कर दिया है, क्योंकि सद्दाम हुसैन और इराक के परमाणु बम बनाने की झूठी ख़बर उसी ने फैलाई थी और फिर मित्र देशों को हमला करने के लिए तैयार किया था। दूसरे, मध्य-पूर्व और पश्चिमी एशिया में जो आतंकवाद फैला है उसमें इराक पर किए गए हमले की बड़ी भूमिका है। यानी समिति की रिपोर्ट साबित करती है कि इराक पर हमले और उसके बाद बनी परिस्थितियों के लिए अमेरिका और उसके मित्र देश ही ज़िम्मेदार हैं। यही नहीं, इराक़ युद्ध में हुई15 लाख लोगों हत्याओं के लिए भी यही देश दोषी हैं।
ध्यान रहे कि कुछ ही महीनों पहले टोनी ब्लेयर ने स्वीकार किया था कि इराक पर हमले की वजह से ही मध्यपूर्व में आतंकवाद फैला है। उन्होंने साफ़ कहा था कि आई एस और अल कायद जैसे संगठनों को इसी हमले से ताक़त मिली। उन्होंने 9-11 के बाद अफगानिस्तान पर किए गए हमले को भी इससे जोड़ा था।
अब सवाल उठता है कि क्या इस रिपोर्ट के आधार पर दुनिया को ये माँग नहीं करनी चाहिए कि अमेरिका और ब्रिटेन और उनके सहयोगी मुल्कों पर युद्ध अपराध का मुकद्दमा चलाया जाए और उन्हें उनके किए की सज़ा दी जाए। क्या वे सिर्फ़ इसलिए बख्श दिए जाएंगे क्योंकि वे शक्तिशाली मुल्क हैं और न्याय-अन्याय की सारी परिभाषाएं वही तय करते हैं?