जैशा तुम मर जाती तब भी हमारे नेता और अफसर बेशर्म बने रहते...


भारतीय खेलों के बारे में इससे बड़ा और कड़वा सच शायद कोई दूसरा नहीं हो सकता। इसे आप देश का दुर्भाग्य भी कह सकते हैं कि जिनसे हम देश का गौरव बढ़ाने की उम्मीद लगाए रहते हैं उनके साथ हमारे नेताओं और अफसरों का बर्ताव बेहद ग़ैर ज़िम्मेदाराना, बल्कि आपराधिक होता है।

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अव्वल तो उन्होंने रियो ओलंपिक में अपनी मैराथन धाविका ओपी जैशा के साथ जो कुछ किया वह शर्मनाक था, लेकिन चोरी और ऊपर से सीना ज़ोरी ये कि अब एथलेटिक्स फेडरेशन के अधिकारी जैशा को ही झूठा साबित करने में जुट गए हैं। लेकिन उन्हें पता नहीं कि इस की घटनाओं के इतने प्रमाण मौजूद हैं कि अगर सही तरीके से जाँच हुई तो वे बच नहीं पाएंगे।

मैराथन धाविका ओपी जैशा के साथ जो कुछ हुआ वह इस हमारी खेल व्यवस्था की दुर्दशा को सही ढंग से बयान करती है। लेकिन इससे भी ज़्यादा इसे दिल दहलाने वाली घटना कहा जा सकता है। कोई भी सह्दय खेल प्रेमी का इस घटना को लेकर अधिकारियों पर उबल पड़ना लाज़िमी है।



जैशा जब 42 किलोमीटर का लंबा फासला तय कर रही थीं तो उनको रास्ते में पानी या एनर्जी ड्रिंक देने वाला कोई नहीं था। वह प्यास से बेहाल थी और दौड़ ख़त्म होने के बाद ट्रैक पर गिर पड़ी। उस समय भी उसकी ख़ैर ख़बर लेने वाला एक भी व्यक्ति मौजूद नहीं था।

जैशा का कहना है कि हालात ऐसे थे कि वह मर भी सकती थी। सोचिए परदेसी ज़मीन पर देश का गौरव बढ़ाने के लिए जैशा जान जोखिम में लिए दौड़े चली जा रही थी, मगर हौसला बढ़ाने वाला तो दूर उसको पानी की बोतल थमाने वाला भी कोई न था।

ये तो शुक्र है कि ओलंपिक आयोजन समिति ने उसका हाल देखा और उसे स्टैचर पर उठाकर ले गए। उन्हें पता ही नहीं था कि जैशा किस हाल में है। एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडियन के जिन अधिकारियों का वहाँ होना चाहिए था, वे पता नहीं कहाँ मौज़-मस्ती में मसरूफ थे।



कितनी अकेली थी पराई धरती पर जैशा? वह देख रही थी कि दूसरे देशों ने हर ढाई किलोमीटर पर अपने कैंप लगा रखे थे और उनके अफसर अपनी खिलाड़ियों को वह हर चीज़ मुहैया करवा रहे थे जो नियमों के तहत उन्हें दी जा सकती थीं। मगर उसके अपने मुल्क से वहाँ कोई नहीं था।

कायदे से तो ऐसे मौक़ों पर अपने खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाने के लिए वहाँ भारतीय दल का नेतृत्व कर रहे अफसरों को तैनात होना चाहिए था, मगर सबके सब नदारद थे। मानो जैशा को रियो पहुँचाकर उन्होंने अपनी ज़िम्मेदारियाँ पूरी कर ली हों और अब उनका काम मौज- मस्ती करना हो।

विडंबना देखिए कि फेडरेशन जैशा की पीड़ा से दुखी नहीं है और न ही लज्जित। वह ये नहीं कह रहा कि ऐसा कैसे हुआ और इसकी जानकारी जुटाकर संबंधित अधिकारियों को दंडित किया जाएगा। हमारे सेल्फीवीर खेल मंत्री विजय गोयल भी चुप हैं।



ध्यान रहे जैशा अकेली खिलाड़ी नहीं हैं जो खेल इंतज़ामों और अधिकारियों के व्यवहार को लेकर शिकायत कर रही हैं। इसके पहले धाविका दुतीचंद कह चुकी हैं कि उन्हें इकोनॉमी क्लास में छत्तीस घंटे का सफर करवाया गया और अधिकारी बिजनेस क्लास में मज़े से यात्रा करते रहे। हॉकी टीम ने तो वहाँ पहुँचते ही कह दिया था कि उन्हें किट उपलब्ध नहीं कराई गई है और वे शायद खेल ही न पाएं।

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