शोभा डे अँग्रेजी की लोकप्रिय लेखक हैं, मशहूर स्तंभकार हैं। लेकिन उनमें सुर्ख़ियों में बने रहने की एक भूख हमेशा से रही है। इस चक्कर में वे कई बार ऐसे बयान दे बैठती हैं कि विवाद खड़ा हो जाता है। ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर उनका ट्वीट इसी का प्रमाण है।
उन्हें लग रहा है कि खिलाड़ी रियो जि जेनेरियो घूमने-फिरने, खाने-पीने, सेल्फी लेने गए हैं। वे समय और धन दोनों बरबाद कर रहे हैं। उनका ये ट्वीट बताता है कि ने वे खेल को समझती हैं और न ही खिलाड़ियों की इज्ज़त करना जानती हैं। उनका ट्वीट में उनकी खेल निरक्षरता और संवेदनहीनता की स्पष्ट झलक देखी जा सकती है।
ये लेख लिखे जाने तक भारतीय खिलाड़ी एक भी पदक नहीं जीत सके हैं। बहुत से नामी-गिरामी खिलाड़ी तो क्वार्टर फायनल तक में नहीं पहुंच सके हैं। कुछ पहले ही राउंड में बाहर हो गए हैं। ऐसे में एक भारतीय होने के नाते किसी को भी हताशा हो सकती है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि आप बिना सोचे-समझे कुछ भी बोलने लगें। ख़ास तौर पर ऐसे समय में जब हमारे बहुत से खिलाड़ी अभी मुक़ाबले में हैं, उनका मज़ाक उड़ाना उनका हौसला गिराने जैसा अपराध है।
निशाने बाज़ अभिनव बिंद्रा ने शोभा डे को ठीक ही याद दिलाया है कि उन्हें इस बात का गर्व होना चाहिए कि उनके देश के खिलाड़ी विश्व स्तर पर खिलाड़ियों को चुनौती दे रहे हैं। बिंद्रा मामूली अंतर से कांस्य पदक जीतने से वंचित रह गए थे।
शोभा डे खिलाड़ियों पर अशोभनीय टिप्पणी करते समय कैसे भूल गईं कि ओलंपिक में हिस्सा ले रहे दल ने कड़ी मेहनत की है और अपनी योग्यता के दम पर उसमे हिस्सा लेने का हक़ हासिल कर पाए हैं। उन्हें खैरात के रूप में रियो नहीं भेजा गया है।
हाँ, ये सही है कि उनसे जो उम्मीदें की जा रही हैं, वे पूरी नहीं होती दिख रहीं। लेकिन अगर ऐसा हो रहा है तो क्या इसके लिए खिलाड़ी ही ज़िम्मेदार हैं? हमारा समूचा खेल तंत्र दोषी नहीं है?
हमारे खिलाड़ी जिन अभावों से निकलकर आते हैं और खेल सुविधाओं में कमी के बावजूद सब कुछ समर्पित करते हुए भरपूर कोशिश करते हैं, क्या इसकी तारीफ़ नहीं की जानी चाहिए। अगर कठघरे मे खड़ा करना है तो खेल प्रशासन को खड़ा कीजिए, सरकार को खड़ा कीजिए।
ओलंपिक में घटिया प्रदर्शन पर आलोचना-निंदा तो होगी ही। पोस्टमार्टम भी किया ही जाएगा, लेकिन अभी उसका समय नहीं आया है। भारतीय मिशन पूरा होने के बाद इसे अंजाम दिया जा सकता है। लेकिन ऐसा करते वक़्त भी समूची खेल व्यवस्था को ध्यान में रखना होगा, वर्ना खिलाड़ियों के साथ अन्याय हो जाएगा।
अगर पदक नहीं मिल रहे तो केवल खिलाड़ी ज़िम्मेदार नहीं है शोभा डे