उत्तर प्रदेश और पंजाब के आने वाले विधानसभा चुनावों में दमदार दावेदारी न बनते देख भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकारों के चेहरों पर बल पड़ने लगे हैं। सबसे बड़ी चिंता पार्टी पर दलित विरोधी होने की छाप लगने से हो रही है।
मामला केवल दलितों को भागीदारी न देने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि दलितों को प्रताड़ित करने में भाजपा और सहयोगी संगठनों के लोगों की भूमिका बड़े पैमाने पर सामने आने के बाद भाजपा और संघ के नेताओं को समझ नहीं आ रहा है कि वे दलित वोट कैसे ले पाएँगे। उत्तर प्रदेश और पंजाब, दोनों जगह दलित वोटों का प्रतिशत 21 और 26 से ज्यादा ही है। ऐसे में इनकी अनदेखी कर पाना भी भाजपा के लिए मुश्किल है।
भाजपा की मुश्किलें सबसे ज्यादा बढ़ीं गुजरात में ऊना में मृत गायों की चमड़ी निकाल रहे दलितों की पिटाई के कांड के बाद। घटना वैसे तो गुजरात में हुई, लेकिन इसका असर पंजाब और उत्तर प्रदेश में अच्छा खासा देखा जा रहा है। भाजपा के नामी दलित नेता और सांसद तो जनता के बीच मुँह छिपाते फिर रहे हैं।
ऐसी मुश्किल घड़ी में आरएसएस भाजपा के लिए संकटमोचक के रूप में सामने आया और उसने एक नायाब तरीका भी निकाला। इसके तहत संघ ने गुजरात के ऊना के पीड़ित दलितों को ही आरएसएस से जोड़ने की ही कोशिश तो की ही, साथ ही उनके पहले से ही संघ से जुड़े होने की बात प्रचारित कर दी।
इसके लिए संघ ने मदद ली, अपने ही सहयोगी संगठन भारतीय बौद्ध संघ की। बौद्ध संघ ने चारों पीड़ित दलितों को अपने दलित जागरूकता अभियान से जुड़े होने का दावा कर डाला। कोशिश ये भी की गई कि किसी न किसी तरह से इन दलितों को संघ से जुड़े किसी कार्यक्रम में शामिल करा लिया जाए, ताकि देश भर में भाजपा की बन रही दलित विरोधी छवि की काट की जा सके।
आरएसएस के विचारक राकेश सिन्हा ने भी ऊना के दलितों को संघ से जुड़े होने की बात दोहराई, लेकिन भाजपा-संघ का ये झूठ चल नहीं पाया। ऊना कांड के बाद हुए आंदोलनों से गुजरात के दलितों में इतनी चेतना तो आ ही गई कि वो संघ के इस जाल में नहीं फँसे।
पीड़ित दलित के पिता बालूभाई सेनमा ने साफ कह दिया कि उनका या उनके बेटों का संघ से कोई लेना-देना नहीं है। इस तरह से संघ की कोशिश नाकाम हो गई। ऐसे में भाजपा के पास अब दलितों को जोड़ने का कोई बहुत कारगर उपाय नहीं दिख रहा है।
अब एक तरीका उसने उत्तर प्रदेश में दलित सम्मेलन करने का भी निकाला है, लेकिन इसमें भी डर है कि कहीं पहले सम्मेलन में ही दलित गैरहाजिर होने लगे तो पूरे प्रदेश में बहुत खराब संदेश जाएगा और इसकी भरपाई फिर असंभव हो जाएगी।
Now, How bjp entice Dalits?
Written by-महेंद्र नारायण सिंह
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