ये अभूतपूर्व भी है और विचलित करने वाला भी कि किसी देश का राष्ट्राध्यक्ष किसी दूसरे देश के राष्ट्राध्यक्ष यानी बराक ओबामा को माँ की गाली दे और उसे अपने किए पर कोई पछतावा न हो, बल्कि वह उससे आगे बढ़कर ये भी कह दे कि अगर मुलाक़ात के वक़्त मानवाधिकारों का मसला उठाया तो वह बड़ी बदतमीज़ी भी कर सकता है।
अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने दुतेर्ते द्वारा खुद को “सन ऑफ बिच” कहे जाने पर कोई उग्र प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है, बल्कि उसे “कलरफुल गाय” कहकर टाल दिया है। उन्होंने नाहक टकराव से बचने के लिए लाओस यात्रा भी रद्द कर दी है जहाँ दुतेर्ते से उनकी मुलाक़ात होनी थी।
ये सही रणनीति है, मगर दुतेर्ते जैसे तानाशाहों को नियंत्रित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को आज नहीं तो कल ज़रूर सोचना पड़ेगा। फिलीपींस के राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतेर्ते जिस तरह के व्यक्ति हैं और जैसा उनका अतीत रहा है उसे देखकर उनका ये व्यवहार अप्रत्याशित नहीं लगता। वे यही करते आए हैं। बस फ़र्क इस बार उन्होंने अपनी करतूत को अंतरराष्ट्रीय आयाम भर दे दिया है।
दुतेर्ते महिलाओं के बारे में बहुत सारी अपमानजनक बातें कर चुके हैं। उन्होंने विपक्षी नेताओं के साथ गाली-गलौच की है। इसके पहले जब वह राष्ट्रपति नहीं बने थे तो उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति तक को नहीं बख्शा था। यही नहीं, उनमें अराजक, निरंकुश और हिंसक प्रवृत्ति इस हद तक हावी है कि वे न्याय की नहीं सीधे दंड देने की बात करते हैं। उनकी देखरेख में हज़ारों लोगों को बिना अदालती कार्रवाई के ठिकाने लगाया जा चुका है।
ये बड़ी विचित्र स्थिति है और पूछने का मन करता है कि क्या दुनिया ऐसे नेताओं की ओर झुक रही है जो बड़बोले हों, जिन्हें नस्लवाद रास आता हो, जो धर्मोन्माद से ग्रस्त हों, जो दूसरों के प्रति घृणा को अपनी राजनीतिक पूँजी मानते हों और जिन्हें लोकतंत्र तथा कानून की बहुत अधिक परवाह न रहती हो?
सवाल थोड़ा विचलित करने वाला है मगर आज पूरे विश्व में इसी की चर्चा है। ख़ास तौर पर फिलीपींस में रोड्रिगो दुतेर्ते की जीत के बाद। यही सवाल अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद की दावेदारी हासिल करने के अभियान में डोनाल्ड ट्रम्प को मिल रही सफलता पर पूछा जा रहा है।
कहा जा रहा है कि आख़िर अमेरिका जैसे संपन्न एवं शिक्षित देश को क्या हो गया है जो वह ट्रंप पर दीवानी हुई जा रही है। रोड्रिगो की कामयाबी ने मानो इस सवाल को ठोस आधार प्रदान कर दिया है। यानी ये मामला केवल अमेरिका ही नहीं दुनिया के दूसरे हिस्सों का भी बनता जा रहा है।
रोड्रिगो के चुनाव प्रचार पर नज़र डालने से पता चल जाता है कि वे डोनाल्ड ट्रंप से भी आगे की चीज़ हैं। उनका चुनाव प्रचार बहुत ही आक्रामक तो था ही, लेकिन उसमें लोकतंत्र और न्याय के लिए भी हद दर्ज़े की हिकारत भरी हुई थी। मानो उन्हें इस बात की परवाह ही नहीं थी कि किसी भी देश को उन मूल्यों तथा आदर्शों की भी चिता करनी चाहिए जिन्हें मूलभूत अधिकार के रूप में अनिवार्य माना जाता है।
मसलन, मानवाधिकारों का ही मामला ले लीजिए। जब वे दाओस शहर के मेयर थे तो आरोप है कि उन्होंने करीब एक हज़ार लोगों को अपराधी करार देकर ग़ैर कानूनी ढंग से मरवा दिया। फिर चुनाव प्रचार के दौरान इस पर बिना किसी तरह का अपराधबोध प्रकट किए उन्होंने कहा कि अगर वे राष्ट्रपति बने तो ये संख्या बढ़कर एक लाख हो जाएगी। ज़ाहिर है कि उन्हें न्याय व्यवस्था में कोई आस्था नहीं है।
रोड्रिगो की मानसिकता का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि उन्होंने खुले आम बलात्कार के किस्सों को चटखारे लेकर सुनाया, उनकी चर्चा की। यानी उनके लिए बलात्कार की घटनाएं आनंद का विषय हैं और उनके मन में महिलाओं पर होने वाले इस निकृष्टतम अत्याचार को लेकर किसी तरह की कोई पीड़ा नहीं है। यही नहीं, उन्हें महिलाओं के प्रति हमदर्दी भी नहीं है। ऐसे में वे भला उन्हें न्याय क्या सुनिश्चित करेंगे। वास्तव में ये एक मर्दवादी सोच है जो डोनाल्ड ट्रंम्प में भी दिखता है।
हाल में द गार्डियन द्वारा करवाए गए सर्वेक्षण में ये निष्कर्ष निकलकर सामने आया कि ट्रम्प महिलाओं कोगंभीरता से नहीं लेते और उन्हें भोग की वस्तु से ज़्यादा नहीं समझते। टीवी की महिला एंकरों के बारे में उनकी टिप्पणियाँ जगज़ाहिर हैं।
ये संभव है कि जनता का वह हिस्सा जो विपन्नता से पीड़ित है और संपन्न एवं शक्तिशाली वर्ग की ओर से किए जाने वाले अत्याचारों की वजह से उसमें बहुत रोष व्याप्त है, तुरंत न्याय और विकास चाहता है। ऐसे में वह उन लोगों और उन उपायों की ओर आकर्षित हो जाता है जो फौरी समाधान दिखाते हों या तुरंत न्याय की गारंटी देते हों। अगर रोड्रिगो अपराध ख़त्म करने के लिए कथित अपराधियों को कानून के कठघरे में ले जाने के बजाय गोली मार देने की बात करते हैं और लोग इस पर खुश होकर उन्हें वोट देते हैं तो ये उसी मानसिकता का परिचायक है।
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प भी तो यही कर रहे हैं। वे मुसलमानों को अमेरिका से बाहर कर देने या मैक्सिको से आने वाले लोगों को रोकने के लिए दीवार बनाने का ऐलान करके वाहवाही बटोरते हैं। ग़ौर करेंगे तो पाएंगे कि इस तरह के नेताओं के विचार, भाषा और नीतियाँ तीनों में गहरी घृणा पैठी हुई है।
इस प्रवृत्ति का अध्ययन करने वाले समाजशास्त्री इनकी वजहें अर्थव्यवस्था में तो देख ही रहे हैं, लेकिन वे मीडिया की नकारात्मक भूमिका पर भी ज़ोर दे रहे हैं। ये एक स्थापित तथ्य है कि जब ग़रीबी और असमानता बढ़ती है और साथ में अनिश्चित भविष्य का अंदेशा भी बढ़ने लगता है तो आम अवाम किसी तानाशाह या फासिस्ट में अपना भविष्य देखने लगते हैं और ये ट्रेंड पूरी दुनिया में साफ-साफ़ देखा भी जा सकता है।
लेकिन अवाम की इस चाहत को मीडिया पंख दे रहा है। खास तौर पर टीवी और इंटरनेट मीडिया। उन्हें विवादास्पद व्यक्तियों के सनसनीखेज़ बयानों में ज़्यादा रुचि होती है और वे उन्हें ही उभारते चले जाते हैं। अमेरिका मे डोनाल्ड ट्रम्प के प्रतिद्वद्वियों में कई समझदार लोग भी थे मगर वे टिक ही नहीं पाए। फिलीपींस में भी यही दोहराया गया।
दुतेर्ते की गाली क्या अंतरराष्ट्रीय ट्रेंड का हिस्सा है ?
Is Duterte’ s abuse part of the global trend?
Written by-डॉ. मुकेश कुमार
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