सिंधु नदी के पानी के बँटवारे के लिए छप्पन साल पहले हुई संधि की समीक्षा के लिए बुलाई गई बैठक को लेकर मीडिया ने आसमान सिर पर उठा रखा था। उन्होंने ऐसा ज़ाहिर करने की कोशिश की थी कि उड़ी हमले का जवाब देने के लिए सरकार कोई सैन्य कार्रवाई नहीं कर पाई है इसलिए वह इस संधि को तोड़कर पाकिस्तान को सबक सिखाएगी।
इस संबंध में सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी के नेतागण भी इसी तरह की हवा बनाने में लगे हुए थे। जम्मू कश्मीर के उपमुख्यमंत्री निर्मल सिंह ने भी इसकी पैरवी की थी। वे बीजेपी के हैं इसलिए उनसे इसी तरह की अपेक्षा की जा सकती है। लेकिन वही हुआ जिसकी संभावनाएं सबसे अधिक थीं यानी सरकार ने निर्णय टाल दिया।
ये तो होना ही था क्योंकि सरकार इस संधि को तोड़ने का मतलब भली-भाँति जानती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके सलाहकारों ने पहले ही बता दिया था कि ये मुमकिन नहीं होगा और अगर फिर भी ऐसा किया गया तो इसके बहुत बुरे परिणाम भारत को झेलने पड़ सकते हैं।
सोमवार के हुई समीक्षा बैठक इसीलिए केवल एक दिखावटी कवायद थी। ऐसा करके सरकार उन लोगों को चुप करवाना चाह रही थी जो सरकार से पाकिस्तान के ख़िलाफ़ क़ड़ा क़दम उठने की ज़िद कर रहे हैं। ये लोग सरकार द्वारा सैन्य कार्रवाई न किए जाने से पहले से ही ख़फ़ा हैं।
लेकिन आइए जान लिया जाए कि क्यों मोदी जल-संधि को खारिज़ या स्थगित करने जैसा क़दम नहीं उठा सकते।
1-पहला और सीधा सा सवाल तो यही है कि अगर सरकार संधि को तोड़ने का फ़ैसला कर भी ले तो उस पर अमल कैसे करेगी। सिंधु का पानी रोकने का कोई भी तरीक़ा उसके पास नहीं है। पानी रोकने के लिए कई बाँधों की ज़रूरत पड़ेगी और उन्हें बनाने में बरसों लग सकते हैं।
2-पानी रोकने से जम्मू-काश्मीर में बाढ़ के ख़तरे बढ़ सकते हैं जिससे भारत को ही नुकसान होगा।
3-पानी रोकने की कोशिशें पर्यावरण को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा सकती हैं और ये भी आत्मघाती क़दम ही साबित होगा।
4-संधि से जुड़े अंतरराष्ट्रीय पहलुओं ने भी उसके हाथ बाँध रखे हैं। अव्वल तो सिंधु नदी चीन से निकलती है और चीन किसी अंतरराष्ट्रीय संधि से नहीं बँधा है। ऐसे में अगर चीन ने उसका रुख़ मोड़ दिया तो नदी में जल प्रवाह कम हो जाएगा।
5-किसी अंतरराष्ट्रीय संधि को तोड़ना आसान नहीं होता। सिंधु नदी जल संधि का मामला तुरंत अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में जाएगा और भारत के लिए जवाब देना मुश्किल हो जाएगा।
6-जल संधि विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुई थी। यदि भारत उसे तोड़ेगा तो विश्व बैंक चुप नहीं बैठेगा।
7-भारत की एक और महत्वपूर्ण नदी ब्रम्हपुत्र भी चीन से निकलती है। चीन ने पहले ही उस पर कई बड़े बाँध बना रखे हैं। अगर उसने पाकिस्तान की मदद करने के लिहाज़ से इस मोर्चे पर कुछ करना चाहा तो भारत के लिए भारी पड़ जाएगा।
8-भारत के फैसले का असर दूसरे पड़ोसी देशों जैसे नेपाल एवं बांग्लादेश पर भी पड़ सकता है। उनके मन में संदेह पैदा हो सकते हैं जो रिश्तों पर नकारात्मक असर डालेंगे।
साफ़ है कि जल संधि के साथ छेड़छाड़ एक बड़े अंतरराष्ट्रीय विवाद को जन्म देगा और जनमत भारत के ख़िलाफ़ भी बन सकता है। ऐसे में भारत को लेने के देने पड़ सकते हैं। मोदीजी अब तक ये बात समझ गए होंगे और कोई कसर बाक़ी रह गई होगी तो आने वाले दिनों में समझ जाएंगे। ज़ाहिर है कि वे इस मुद्दे को तलवार की तरह तो लटकाकर रखेंगे मगर चलाएंगे नही।
मोदी इन कारणों से नहीं तोड़ सकेंगे सिंधु जल-संधि
These are the reasons Modi can’t break Sindhu river water treaty
Written by-मकरध्वज प्रजापति
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