एक के बाद एक फिक्स्ड इंटरव्यू देने और दो साल से बेमन की बात करने के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मन सच बोलने के लिए मचल रहा था। हालाँकि राजनीति के खिलाड़ी होने के नाते वे भली-भाँति जानते होंगे कि इसके क्या ख़तरे हैं, मगर कभी-कभी दिमाग़ पर दिल हावी हो जाता है और तब आदमी किसी की नहीं सुनता, वह खुदकशी करने के लिए भी तैयार हो जाता है।
शायद पीएम ऐसी ही मनोदशा से गुज़र रहे होंगे जब उन्होंने अपने जेम्स बांड अजीत डोभाल से मुझे बुलाने के लिए कहा होगा। ये भी पक्का है कि डोभाल ने उन्हें सौ बार रोका होगा। हो सकता है कि नरेंद्र मिश्रा को भी लगाया हो और अमित शाह तथा मोहन भागवत से भी रोकने के लिए कहा हो। मगर ज़ाहिर है कि उनकी चली नहीं, तभी सुबह-सुबह उनका फोन आ गया और मैं भागते-भागते सेवेन रेसकोर्स (नया नाम इस जगह के लिए जँचता नहीं) पहुँच गया।
उस समय अंबानी, अडानी समेत कई जाने-माने उद्योगपति-कारोबारी आ जा रहे थे। मुझे इसमें कोई हैरत की बात नहीं लगी। आख़िर वे नहीं आएंगे तो क्या रामू-श्यामू, कमला-विमला वहाँ आएंगे? उनका यहाँ क्या काम। वे तो लाइन में लगें और अगर 500 या हज़ार का एकाध नोट हो तो बदलवा लें, नहीं तो क्या पता कब सरकार नीति बदल दे और वे उससे भी जाते रहेंगे। बहरहाल, आधे घंटे बाद अंदर से बुलावा आया। देखा कि मोदीजी नया चमचमाता सूट पहने तैयार बैठे हैं। अंदाज़ा लगाया कि पाँच-सात लाख का तो होगा ही। फिर मैंने सोचा मैंनू की, हिंदुस्तान का प्रधानमंत्री है, उसका हक़ है कि वह जो चाहे पहने, जो चाहे कहे, जो चाहे करे।
अभिवादन के बाद मोदी जी ने पूछा-एनकाउंटर करोगे? मैं एकदम से घबरा गया। सोचा कह दूँ कि ये तो आपका काम है, मुझमे इतनी कूवत कहाँ कि एनकाउंटर-वेनकाउंटर करूँ और वह भी आप जैसे का। फिर उन्हें मुस्कराते हुए देखा तो समझ गया कि उनका मतलब इंटरव्यू से है। मैंने कहा-आपने मौक़ा दिया है तो ज़रूर करूँगा, मगर ये फिक्स्ड नहीं होगा। वे फिर मुस्कराए और बोले-फिक्स्ड करना होता किसी गोस्वामी, शर्मा, चौधरी को बुलाता, आपको क्यों बुलाता। मैंने उनकी कड़वाहट को समझा और मस्का लगाते हुए कहा-ये तो मेरी खुशकिस्मती है। वे फिर मुस्कराए-आपकी ये फेक टिप्पणी मुझे पसंद नहीं आई। बहरहाल, एनकाउंटर शुरू कीजिए।
मोदीजी, आपने ताल ठोंककर तो नोटबंदी कर दी मगर अब ऐसा लगता है कि जो सर्जिकल स्ट्राइक आप काला धन के खिलाफ़ करने निकले थे वह उलटकर आपकी सरकार के खिलाफ़ ही हो गई?
पहली बात तो ये जान लो मित्र कि हमने सर्जिकल स्ट्राइक काले धन के खिलाफ़ नहीं की थी, वह तो चुनाव के लिए की गई थी और अपनी सियासत को मज़बूत करने के लिए की थी। इसीलिए हमने अपने काले धन वाले मित्रों को तैयार रहने के इशारे भी कर दिए थे।
एक मिनट, एक मिनट.....आपने अभी कहा कि आपने आठ नवंबर के पहले ही नोटबंदी की बात बहुत से लोगों को बता दी थी?
हाँ, बता दी थी और बताता क्यों नहीं? जिनके बल पर हमारी पार्टी चलती है हम मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री बनते हैं, उनका खयाल तो रखना पड़ता है न।
आपका मतलब मतदाताओं से है, लेकिन उन्हें तो आपने आठ नवंबर को ही बताया था?
ओहो, आप फेक एनकाउंटर करते हो या घाँस खोदते हो। ऐसे तो आपसे चिड़िया भी नहीं मारी जाएगी। अरे भाई मैं मतदाताओं की नहीं उन लोगों की बात कर रहा हूँ जो चुनाव में हमारी मदद करते हैं, हमें हैलीकाप्टर, जहाज़ देते हैं, नोटों की गड्डियाँ पहुँचाते हैं, रैलियाँ करवाते हैं। अगर वे न हों तो हमारा तो एक क़दम ही चलना मुश्किल हो जाएगा। ख़ैर अब आप धैर्यपूर्वक मेरी बात सुनिए, बीच में कोई टोके ये मुझे बर्दाश्त नहीं है। आपको अर्नब से सीखना चाहिए। कैसे आज्ञाकारी बच्चे की तरह सवाल करता था। ख़ैर, अब रही बात आपके दूसरे सवाल की तो ये आपकी ग़लतफ़हमी है कि हमने जो सर्जिकल स्ट्राइक काले धन पर किया था वह उलटकर हमारी सरकार पर ही हो गया।
ये ग़लतफ़हमी नहीं है, हक़ीक़त है। आप अपने निवास से बाहर निकलकर देखिए लोग आपको कैसे कोस रहे हैं?
ये आप जैसे पत्रकारों का सोच है और मैं उससे इत्तफाक नहीं रखता। छी टीवी की रिपोर्ट तो ये कहती है कि मैंने क्रांति कर दी है और हर तरफ लोग मेरे कदम की सराहना कर रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि मैंने काले धनवालों और आतंकवाद दोनों की कमर तोड़ दी है। अभी पचास लोग ही मरे हैं न, सच तो ये है कि लाखों लोग मरने के लिए तैयार हैं। मीडिया को ये सचाई दिखानी चाहिए। लेकिन आप लोगों को देश से प्रेम ही नहीं है। देशविरोधी लोगों का साथ देते हैं आप लोग।
जनता का भरोसा आपसे उठ रहा है, आप इसे स्वीकार करें या न करें मगर आपके खिलाफ़ लोगों में गुस्सा बहुत बढ़ चुका है? पचास से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं?
मीडिया के कहने से तो मैं ये स्वीकार करने से रहा। मीडिया तो उसी तरफ झुक जाता है जिस ओर उसे फ़ायदा दिखता है। वह काटने वाला नहीं भौंकने वाला कुत्ता है। उसके सामने रोटी भर डालते रहो, वह आपको कभी परेशान नहीं करेगा।
देखिए, ये सही नहीं है। सभी पत्रकार एक जैसे नहीं होते और आज भी ईमानदार पत्रकार हैं?
मोदीजी मुस्कराकर बोले-होंगे तो उन्हें ईमानदार रहने नहीं दिया जाएगा, मगर सच तो ये है कि उनका साँचा बंद हो चुका है। अब तो सब कंट्रोल हो जाता है। रिपोर्टर और एडिटर को खुश करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। मीडिया मालिकों में बहुत भलमनसाहत आ गई है। वे खुद पूरा सहयोग करते हैं, वे आसानी से मैनेज हो जाते हैं। जो सेट नहीं होते उनके लिए दूसरे नुस्खे हैं।
लेकिन आप आम अवाम की ताक़त को कम करके आँकने की भूल मत कीजिए?
अवाम को कैसे साधना है वह मुझे आता है। ये मुझे किसी से सीखना नहीं है। गुजरात में मैं इसका पूरा अभ्यास करके चुका हूँ। जनता में थोड़े-थोडे अंतराल में भावोन्माद भरते रहो, धर्म और देश के गीत गाते रहो, बस इतने से पब्लिक मस्त रहती है। उसे काम नहीं बातें चाहिए, इसलिए मैंने बातें करने की सबसे ज़्यादा प्रैक्टिस की है। एक और भाषण दूँगा एजेंडा बदल जाएगा। फिर कोई पूछने तक नहीं आएगा।
लेकिन आपने तो कहा है कि आप सब कुछ देश के लिए कर रहे हैं....आपने घरबार सब देश के लिए त्याग दिया है?
ये सब राजनीति के फंडे हैं। हिंदुस्तान की जनता त्याग-तपस्या आदि पर फिदा हो जाती है, इसलिए ये बार-बार दोहराते रहना पड़ता है। अब देखिए मनमोहन सिंह भी त्यागी पुरूष थे मगर बेचारे बोलते नहीं थे इसलिए मात खा गए।
अच्छा ये बताइए कि आपने पचास दिन माँगे थे, क्या तब तक हालात ठीक हो जाएंगे?
हालात तो पचास महीने क्या पचास साल में भी ठीक नहीं होंगे, मगर मैं पचास साल माँगूँगा तो आप लोग मुझे पत्थर मारने लगोगे। मैं थोड़ा-थोड़ा माँगता हूँ ताकि देने वालों को दिक्कत न हो। पचास दिनों को धीरे से पचास महीनों में बदल दूँगा बस।
लेकिन आपको क्या लगता है, नोटबंदी से आप यूपी का चुनाव जीत लेंगे? लोगों में भारी गुस्सा है?
भाई राजनीति में जुआँ तो खेलना पड़ता है। दाँव पड़ गया तो बल्ले-बल्ले, हार गया तो कहूँगा कि मैंने चुनाव हारने का जोखिम उठाकर भी देशहित में नोटबंदी का सख्त फैसला किया।
लेकिन आपने इस क़दम से देश को गड्ढे में ढकेल दिया है। देश में सब कुछ ठहर गया है, कोई काम नहीं हो रहा। उत्पादन भी घट रहा है। ऐसे में तो अर्थव्यवस्था का बेड़ा गर्क हो जाएगा?
इकोनॉमी जितना खराब होगी, मैं उतना ही मज़बूत होऊंगा। जब परिस्थितियाँ खराब होती हैं तो लोग चाहते हैं कोई मज़बूत नेता देश सँभाले। वह कहने लगती है कि देश को हिटलर जैसा नेता चाहिए और मैं भी हिटलर जैसा ताक़तवर नेता बनना चाहता हूँ। इस समय मेरे अलावा कोई दूसरा है नहीं इसलिए मैं आसानी से ऐसा कर सकता हूँ। पूरा देश मेरी पकड़ में होगा तब।
वह तो अभी भी है। आपके अलावा सरकार का कोई नेता दिखता ही नहीं है?
दिखना भी नहीं चाहिए। मेरी शुरू से यही रणनीति रही है। कोई मेरे बराबर खड़ा हो, मुझे चुनौती दे ये मुझे मंज़ूर नहीं है। इसलिए सबको कट टू साइज़ कर दिया है। कोई चूँ भी नहीं करता अब।
लेकिन अरविंद केजरीवाल चूँ नहीं कर रहा बल्कि दहाड़ भी रहे हैं। उन्होंने तो आप पर सहारा से पैसे लेने का आरोप लगा दिया है?
आरोप तो लगते रहेंगे, मगर कुछ होगा नहीं। मैं कुछ करने ही नहीं दूँगा। न जाँच होगी न कुछ सिद्ध होगा।
लेकिन प्रशांत भूषण आपको छोड़ने वाले नहीं हैं?
निश्चिंत रहिए। वे कुछ नहीं कर पाएंगे। मेरे पास उन्हें नाकाम करने के सौ नुस्खे हैं।
अच्छा अंत में ये बताइए कि आपको ख़तरा किससे है? नोटबंदी के बाद आपको मारने की साज़िश कौन रच रहा है?
किस-किस का नाम लूँ, मेरे पीछे तो सब पड़े हैं। आतंकवादी पड़े हैं, काला धन वाले पड़े हैं, जेएनयू वाले पड़े हैं, माओवादी पड़े हैं, सेकुलर पड़े हैं, लेखक, कलाकार सब पड़े हैं। मुझे चारों तरफ से ख़तरा है। बाहर मैं 56 इंच की छाती फुलाकर ज़रूर घूमता हूँ मगर रातों को नींद नहीं आती।
मैं अगला सवाल करता कि हाथों में कोई रिपोर्ट लेकर डोभाल हाज़िर हो गए और मोदीजी के कानों में कुछ फुसफुसाने लगे। सुनते ही मोदीजी के माथे पर पसीने की बूंदें छलछलाने लगीं। मैं हाव-भाव से समझने की कोशिश कर रहा था कि बात क्या हो सकती है। क्या रिपोर्ट देश के बिगड़ते हालात पर है या चुनाव में बिगड़ती पार्टी की स्थिति पर। कहीं ऐसा तो नहीं डोनाल्ड ट्र्म्प ने भारतवंशियों को अमेरिका से बाहर निकालने का अभियान छेड दिया हो। ये खयाल मेरे मन में आ जा रहे थे कि तभी डोभाल ने आँखों से इशारा करके निकल जाने को कहा। हालाँकि ये बेआबरू होकर तेर कूचे से हम निकले वाली स्थिति थी मगर मेरे जैसा आदमी सही-सलामत निकल आने भी खुश हो सकता था, जो मैं था भी।
Written by-डॉ. मुकेश कुमार
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