नेताजी ने अपने सियासी जीवन में बहुत सारे उतार-चढ़ाव देखे थे मगर ये कभी नहीं सोचा था कि ऐसे दिन भी देखने पड़ेंगे कि पूरी पार्टी देखते-देखते हाथ से निकल जाएगी और वे कुछ भी न कर पाएंगे। अब आलम ये है कि उनको अपनी सारी ऐंठ भुलाकर बेटे के सामने ही आत्मसर्पण करना पड़ रहा है। बेटा अखिलेश जो भी कह रहा है मानने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
ऐसी बेचारगी की हालत में मुलायम सिंह यादव को देखना अपने आप में एक नया अनुभव था। जब एनकाउंटर करने पहुँचा तो देखा कि वे और उनके स्वनामधन्य भाई शिवपाल दोनों माथा पकड़कर बैठे हुए हैं। चेहरे का भाव कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे वाला था। शिवपाल की दशा तो और भी दयनीय थी। इतनी कि अगर इस समय अखिलेश देख लेते तो बोलते चचा तुमई सँभालो कुर्सी, हम तो तुमाए पीछे चलेंगे।
ज़ाहिर है कि दोनों की हालत देखकर एकबारगी मैं पिघल गया था। मगर एक पत्रकार का तज़ुर्बा ये कहता है कि नेताओं को उनके चेहरे से मत पढ़ो, वर्ना गच्चा खा जाओगे। लिहाज़ा मैंने दया भाव को दरिया में फेंका और सवाल पूछने की तैयारी करने लगा। नेताजी का इशारा पाकर शिवपाल देवदास की सूरत लिए बाहर चले गए। मैंने उनके इस इशारे को समझते हुए सवालों का सिलसिला शुरू किया।
नेताजी....
अरे अब काए के नेताजी.....अब तो नेताजी का खिताब हमारे पास नई रहा। अब तो आपके मुख्यमंत्री....क्या कहते हैं....अखिलेश जी नेताजी हो गए हैं।
नहीं नहीं....नेताजी तो आप रहेंगे ही...
हाँ, अगर रहे भी तो नामै के, काहे से कि नेतागीरी तो हमाई चूल्हे में चली गई न। जब चार नेता हमारे साथ नईं हैं, कार्यकर्ता हमाए बजाए दूसरे की जय बोल रए हैं तो हम केसे नेता भए। भए भी तो बिना ताज-तखत वाले।
बहुत कड़वाहट पैदा हो गई है आपके अंदर...?
अरे इधर चारों तरफ इतनी बदनामी हो रई है और तुम केते हो कड़वाहट है। ज़िदगी भर की कमाई कल के लड़के ने लूट ली और तुम केते हो कड़वाहट है। जिस पाटी को मैंने खून-पसीने से सींचा वही चली जाए तो दुख नई होगा क्या मुझको?
ये तो सियासत में होता रहता है नेताजी.....आपने भी पता नहीं किस-किस की पार्टी छीनी होगी?
अरे कभी छीनी होगी तो छीनी होगी, मगर बाद में तो बनाई न। अब उस कल के लड़के को देखो। उसने तो न पार्टी बनाई और न ही उसके लिए कुछ ख़ास काम किया। हमीं ने उसको मुख्यमंत्री बनाया और अब वोई हमें ठेंगा दिखा रहा है।
कहाँ ठेंगा दिखा रहा है.....वह तो आपको मार्गदर्शक बना रहा है?
जे अच्छी कई तुमने। हमको आप बेवकूफ़ समझते हो क्या? सई है कि हमाई उमर हो गई है मगर हम बेवकूफ नईं हैं, खूब समझते हैं। असल में मोदी ने सब लड़कों को बिगाड़ दिया है। उसने मोदी ने पिता समान नेताओं को मार्गदर्शक बनाकर किनारे कर दिया और अब अखिलेश अपने बापै को किनारे कर रहा है। दुख तो इस बात का है कि पेलवान तो हम हैं मगर बेटई ने हमें धूल चटा दई।
आपको तो खुश होना चाहिए कि बेटा इतना होशियार है कि अपने बाप को भी चित कर दिया?
जे बात आपने सई कई। हे तो बोत होशियार अखिलेस। हमें पता न था कि ऐसी-ऐसी चालें जानता है कि सबको चारों खाने चित कर देगा। सिवपाल बोत होशियार बनता था। मुख्यमंत्री बनना चाहता था, मगर अखिलेस के सामने उसकी एक नईं चली। अभी देख रए थे न का हाल हो गया है। हमें तो सच में बोतई खुसी हो रई है। अच्छे दाँव चले अखिलेश ने। एसई खेलता रहा तो बड़ा खिलाड़ी बनेगा।
जब आप खुश हैं तो ऐसे दुखी होकर क्यों बैठे हैं?
दुखी होकर बैठना ज़रूरी था न। न बैठता तो सिवपाल सोचता हम अपने बेटा के बारे में सोच रए हैं, उसके बारे में नईं। बिचारे की बड़ी इच्छा थी मुख्यंमंत्री बनने की लेकिन सब धरी रे गई। अब हमें तो उसके दुख मे सरीक होनई था। फिर घर में और भी लोग हैं जिनके लिए हमें दुखी दिखना ज़रूरी है। मगर दिल से तो हम सच में बोत खुश हैं।
आपको नहीं लगता कि अगर आपने सही पत्ते खेले होते तो न आपकी फ़ज़ीहत होती न पार्टी हाथ से निकलती?
अरे हमने पत्ते खेलै कहाँ? खेल तो जे सिवपाल और अमर सिंह रए थे। वेई लोग बोल रए थे जे करो, जे न करो। बे जहाँ बोलते थे हम तो दस्तखत कर देते थे। अब आपको तो पतै है कि हमारी बुद्धि पहले जैसी नई चलती। बोत सारी चीज़ तो हम भूलै जाते हैं। हाँ, जे ज़रूर है कि अगर हमाए बस में होता तो इतना तमासा न होता। वेसे एक बात बताएं.....जे भी अच्छै हुआ। सिवपाल और अमर सिंह को अपनी औकात पता चल गई। अगर जे न होता तो हमाए कान भरते रहते और उत्पात करते। अब झख मारके चुप बैठना पड़ेगा नईं तो अखिलेश इनको निपटा देगा।
अगर आपको लगता है कि सब ठीक हुआ तो अब झगड़े को ख़त्म करवाइए?
नाक की लड़ाई में झगड़ा एसे थोड़े खतम हो जाता है। हमको उठाकर बाहर फेंक दिया उसने और अब हम उसकी मानकर कहें कि तुमने ठीक किया अखिलेस? हम एसे नईं छोड़ने वाले। अभी तो चुनाव चिन्ह पे रुला देंगे
उसको। देखें बिना सायकल के कैसे जीतता है?
देखिए आपकी इस ज़िद से आपका और आपके बेटे का ही तो नुकसान होगा न?
इसकी चिंता हम नई करते। जिसको करना हो करे नईं तो हमाए पास आए, हमारी बात माने। हमारा क्या है, हम तो अपनी पारी खेल चुके। 2019 में क्या होगा अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। इसलिए हम तो अखिलेस के बापै रहेंगे।
आपको नहीं लगता है कि अगर आप दोनों अलग-अलग चुनाव लड़ेंगे तो आपका ही नुकसान होगा? फ़ायदा बीजेपी और बीएसपी ले जाएंगे?
किसी को कोई फायदा नहीं होगा काहे से कि जनता बोत समझदार है। वो न बीजेपी को वोट देगी न बीएसपी को। वो वोट देगी तो अखिलेस को या फिर सिवपाल को। यानी मुक़ाबला अखिलेस और सिवपाल में है इसलिए सारी सीटें इन दोनों में ही बँट जाएंगी। चुनाव में जिसको ज़्यादा सीट मिलेगी वो सरकार बना लेगा और नईं तो दोनों मिलके भी बना सकते हैं।
क्या ये भी संभव है?
सियासत संभावनाओं का खेल है, इसमे सब कुछ संभव है। आख़िर हैं तो दोनोंई एकै खानदान के न।
आपने इतनी तरह की बातें कर दी हैं कि मेरा माथा घूमने लगा है। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि आपका गेमप्लान क्या है और चाहते क्या हैं?
जे तुमाए बस की है भी नईं इसलिए समझने की कोसिस भी मत करो।
मुझे इतना समझ में ज़रूर आ रहा है कि आपके खानदान की लड़ाई समाजवादी पार्टी को डुबा देगी। मुसलमान वोट तो आपके हाथ से गए ही समझो?
वो तो हमको पहलै से पता था। मुसलमान हमसे नाराज़ है और इस बार हमको वोट नई देगा। इसलिए हम अखिलेस को चुनावी मुद्दा बना रए हैं और सच्ची बात तो जे है कि वो बन भी गया है। अब देखो सब अखिलेस अखिलेस कर रए हैं। जे भी के रए हैं कि अखिलेस ने बोत विकास किया है, उसको एक चांस और मिलना चाहिए। साफ़ है कि पाँसा पलट चुका है। छह महीने पहले हम सर्तिया हार रए थे, मगर अब एक उम्मीद तो पैदा हो गई है। बल्कि हमें तो भरोसा है कि न बीजेपी को कुछ मिलेगा और न बीएसपी को।
देखिए नोटबंदी का ज़बर्दस्त असर पड़ा है जनमानस पर। आप उसे कम करके मत आँकिए?
कम करके कहाँ आँक रए हैं, बल्कि हम तो जादै आँक रए हैं। हमें पक्का भरोसा है कि वोटर बुरी तरह नाराज़ है और बीजेपी का जनाजा निकालने की तैयारी कर चुका है। बीजेपी नोटबंदी के बल पर जीतने की सोच रई है तो जे उसकी भूल है। होने वाला उल्टा है।
आप तो हर सिचुएशन को अपने लिए फ़ायदेमंद बता रहे हैं?
इसीलिए तो हमको लोग नेताजी कैते हैं। हर सिचुएशन को अपने पक्ष में घुमा लेना ही तो राजनीति है और हम आज तक यही करते आए हैं। आप तो बस देखते रओ।
मुझे समझ में आ गया कि फिलहाल नेताजी स्प्लिट पर्सनाल्टी बने हुए हैं। एक पर्सनाल्टी नेताजी की है और दूसरी पिताजी की। एक खुश है तो दूसरे नाराज़। मैंने उनको उनकी इसी दोहरी स्थिति में छोड़ा और चला आया।
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वैधानिक चेतावनी - ये व्यंग्यात्मक शैली में लिखा गया काल्पनिक इंटरव्यू है। कृपया इसे इसी नज़रिए से पढ़ें।
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