गुजरात, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, झारखंड और असम के बाद अब त्रिपुरा में मॉब लिंचिंग की दो वारदातों ने साफ कर दिया है कि पीट-पीटकर मार डालने का सिलसिला भयानक रूप ले चुका है। ये लगभग आतंक का पर्याय बन चुका है।
कुछ धार्मिक एवं जातीय समुदाय इस भय में जी रहे हैं कि पता नहीं कब किस बहाने से उन्हें मॉब लिंचिंग का निशाना बना लिया जाएगा। वे खुद को अत्यधिक असुरक्षित महसूस कर रहे हैं क्योंकि उन्हें नहीं लगता कि पुलिस, प्रशासन या सरकार कहीं से भी सुरक्षा मिलेगी।
मॉब लिंचिंग अब कभी-कभार कहीं धोखे या गुस्से में हुई घटनाएं नहीं रह गई हैं, जैसा कि बिहार में अकसर देखने को मिलता है। अब वे सुनियोजित रूप ले चुकी हैं। इसके पीछे बाकायदा हत्यारी मानसिकता और एक विशेष राजनीतिक विचारधारा वाले समूह काम कर रहे हैं।
हत्यारों के काम करने का ढंग लगभग एक जैसा है। वे भय का वातावरण तैयार करते हैं और फिर उसकी आड़ में दूसरे धर्मों या जातियों के लोगों को निशाना बनाते हैं।
असम में मरने वाले बेशक़ हिंदू ही थे, मगर हिंदुओं के मॉब लिंचिंग का शिकार बनने की घटनाएं न के बराबर ही हैं। मरने वालों में ज़्यादातर या तो दलित समुदाय के हैं या फिर मुस्लिम।
आतंकवाद की शक्ल में मॉब लिंचिंग की घटनाओं की शुरुआत तथाकथित गौरक्षकों के आंदोलन से हुई थी। उन्होंने गौ रक्षा के नाम पर मुसलमानों और दलितों की पीट-पीटकर हत्या करने का नया सिलसिला शुरू किया था।
शुरू में सरकार और सत्तारुढ़ गठबंधन में शामिल दलों ने मॉब लिंचिंग की वारदातों को इक्का-दुक्का घटनाएं बताकर रफ़ा-दफ़ा करने की कोशिश ही नहीं की थी, बल्कि कुछ ने तो इन्हें सही भी ठहराया था। ख़ास तौर पर हिंदुत्वादी विचारों वाले नेताओं और संगठनों का रवैया कुछ ऐसा था कि गौरक्षक जो कर रहे हैं वह ज़रूरी है।
इन आतंकवादियों में आप संस्कृति के उन ठेकेदारों को भी शामिल कर सकते हैं जो लव जिहाद, खान-पान, रहन-सहन, पहनावे आदि को लेकर बखेड़ा करते हैं और फिर मार-पीट से लेकर हत्याएं तक कर डालते हैं।
सरकार और प्रशासन ने भी इन हत्यारों का जहाँ तक हो सका बचाव किया है। हत्यारों को सज़ा मिले, इसके लिए सच्चे मन से प्रयास नहीं किए गए। इसका नतीजा ये निकला कि उनके हौसले बढ़ते चले गए।
प्रधानमंत्री की ओर से केवल एक बार बयान आया है और वह भी दलितों के ख़िलाफ़ की गई हिंसा के संदर्भ में। शायद ये उनकी राजनीतिक ज़रूरत थी इसलिए। मुसलमानों पर होने वाली हिंसा पर वे अभी तक चुप हैं।
मॉब लिंचिंग के आतंकवादी दो तरह के हैं। एक तो वे जो हथियारों से लैस हैं। ये लोग गैंग बनाकर अपने शिकार ढूँढ़ते हैं और उनकी हत्या कर देते हैं। दूसरी तरह के आतंकवादियों का हथियार सोशल मीडिया और भीड़ है। वे इन दोनों के सहारे मॉब लिंचिंग वाला आतंकवाद फ़ैला रहे हैं।
इन दोनों ने पूरे देश में आतंक का माहौल पैदा कर दिया है और वह लगातार घना होता जा रहा है। अब तो लगता है कि हिंदुस्तान लिंचिस्तान में तब्दील होता जा रहा है।
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Mob lynching is a tool of Hinduist terrorism, but the govt. is not willing to stop it.
हिंदुत्ववादी आतंकवाद का हथियार है मॉब लिंचिंग, मगर सरकार इसे नहीं रोकेगी!
Written by मनोरम भट्टाचार्या
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