शशि थरूर और उनके बयान के साथ जो हो रहा है, वह कतई अप्रत्याशित नहीं है। अप्रत्याशित तो तब होता जब ऐसा नहीं होता। “हिंदुओं को पाकिस्तान से जोड़ने” की किसी भी कोशिश का यही हश्र होना था, भले ही वह कितनी भी सही तथा तथ्यात्मक क्यों न हो।
दिक्कत ये नहीं है कि थरूर को सही ढंग से समझा नहीं गया। समस्या यहाँ है कि उनके कथन को उस तरह से समझने की संभावना नगण्य के बराबर थी। वातावरण जब विवेकहीनता और उन्माद से भरा हो तो ऐसे बयानों के दूसरे अर्थ निकाले ही जाने थे।
जिस वैचारिक उदारता और सहिष्णुता की ज़रूरत इसके लिए होती है वह तो वातावरण में है ही नहीं। ऊपर से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति अपने शबाब पर है, जिसे बस कोई बहाना भर चाहिए सत्ता पर अपनी पकड़ को मज़बूत करने के लिए।
इसलिए उन नेताओं और दलों द्वारा जिन्हें इस तरह के विचारों से राजनीतिक नुकसान हो सकता है या जो इसके राजनीतिक फ़ायदे उठाने के लिए तत्पर रहते हैं, शशि थरूर के बयाने से बैटे-ठाले एक मुद्दा मिल गया। वे इसमें सिद्धहस्त भी हैं और घात लगाए बैठे रहते हैं।
उन्होंने बयान पर झपट्टा मारा और चालू हो गए। उसे धर्म और नस्ल से जोड़ा और एक ऐसा कॉकटेल रच डाला कि शशि थरूर ही नहीं उनकी पार्टी भी बाल नोचने लगी। सियासी खिलाड़ी इसे राहुल गाँधी तक ले गए और इसके बाद तो आप जानते ही हैं कि हिंदू-ईसाई वगैरा का विभाजनकारी संवाद रचा ही जाना था।
सोचिए अगर शशि थरूर ने हिंदुओं को पाकिस्तान के बजाय किसी और से जोड़ा होता तो क्या ऐसा बखेड़ा खड़ा होता? नहीं होता। अगर वे कट्टरपंथी हिंदुओं को जर्मनी से जोडते, और हिंदुत्ववादी नेताओं को हिटलर करार देते, तो कुछ भी नहीं होता, क्योंकि उन्हें ये चीज़ें नहीं चुभतीं।
अब जिस पाकिस्तान को वे दिन-रात कोसते रहते हैं, उसी से उसकी तुलना कर दी गई तो स्वाभाविक था कि वे उबल पड़ते। फिर मामला हिंदुस्तान-पाकिस्तान से ज़्यादा हिंदू-मुसलमान का है। वे हर मुद्दे को, हर समस्या को हिंदू-मुसलमान के चश्मे से देखने के आदी हैं और उनकी विकृत मानसिकता इससे ज्यादा कुछ सोच भी नहीं पाती।
ये भी याद रखिए कि यही उनकी राजनीति का आधार भी है। इस तरह की राजनीति में मिल रही सफलता ने उनके हौंसले भी बढ़ा दिए हैं, इसलिए ये लगभग तय था कि शशि थरूर के बयान के उल्टे मायने निकाले जाएंगे और उनका राजनीतिक फ़ायदा भी उठाने की कोशिश की जाएगी।
दरअसल, बीजेपी की रणनीति ही यही है कि काँग्रेस को हिंदू विरोधी और मुसलमानपरस्त पार्टी साबित कर दो, बाक़ी का काम अपने आप हो जाएगा। इसीलिए प्रधानमंत्री हमेशा ऐसी भाषा में बात करते हैं जो काँग्रेस की छवि को मुस्लिमपरस्त दिखाए। तीन तलाक के मसले पर उनके बयान की असलियत भी यही है।
समस्या ये है कि काँग्रेसी नेता बीजेपी की स चाल को समझ नहीं रहे या फिर जान-बूझकर अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारने पर तुले हुए हैं। सच बोलना अच्छी बात है मगर कई बार देश, काल और परिस्थितियों का भी ध्यान रखना पड़ता है। ख़ास तौर पर अगर आप राजनीति में हैं तो।
जो लोग राजनीति नहीं करते वे अगर बोलेंगे तो उसका बेजा अर्थ नहीं लगाया जाएगा और न ही मीडिया उसे इतना तूल देगा। प्रतिद्वंद्वी भी उसका कोई फ़ायदा नहीं उठा पाएंगे, लेकिन जब कोई नेता ऐसा करेगा तो ज़ाहिर है कि उसके साथ वही होगा जो शशि थरूर के साथ हो रहा है।
काँग्रेस को हिंदू विरोधी और मुस्लिमपरस्त पार्टी घोषित करने की रणनीति है ये
कृपया सड़े आम उसी टोकरी में ही रहने दें, लार न टपकाएं
तवलीन सिंह मोदी-राज से इतनी दुखी और हताश क्यों हैं?
Why Tavleen Singh is so sad and desperate from the Modi-Raj?
दिल्ली में दिखने वाली बर्बरता की ये हैं वज़हें