पाकिस्तान में इमरान ख़ान की पार्टी की फ़तह और उनके वज़ीर-ए-आज़म बनने की उम्मीद के साथ ही ये कयास लगाए जाने लगे हैं कि पाकिस्तान कितना बदलेगा? इमरान इस नारे के साथ इंतखाब में उतरे थे कि नया पाकिस्तान बनाएंगे। ये बात उन्होंने अपनी प्रेस काँफ्रेंस में भी दोहराई, मगर सवाल उठता है कि नया पाकिस्तान कैसा होगा?
जहाँ तक हिंदुस्तान का ताल्लुक है तो सबसे ज़्यादा अदाज़े इस बात के लगाए जा रहे हैं कि दोनों मुल्कों के आपसी ताल्लुकात में क्या बदलाव आएगा। पाकिस्तान या हिंदुस्तान में जब भी निज़ाम बदलता है या नया वज़ीर-ए-आज़म बनता है तो लोगों की उम्मीदें जाग जाती हैं और नए सिरे से रिश्ते सुधारने की कवायदें भी शुरू कर दी जाती हैं।
लेकिन किसी तरह की उम्मीद बाँधने से पहले ये जाँच लेना ठीक होगा कि पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ यानी पीटीआई की किन तबको की नुमांइदगी करती है। अब ये कोई राज़ नहीं है कि इमरान ख़ान को जिताने में वहाँ की फौज का हाथ है। पूरी बिसात उसी की बिछाई हुई है और इमरान तो बस एक मोहरे हैं।
इसलिए इमरान भले ही कितनी ही मीठी-मीठी बातें न करें मगर उनकी इख़्तियार में कुछ नहीं होगा। उन्हें वही करना होगा जो फौजी लीडरशिप चाहेगी और अगर उन्होंने हुक्म उदूली करने की कोशिश की तो उनका भी वही अंजाम होगा जो दूसरे चुने हुए लीडरान का होता रहा है।
ख़ास तौर पर हिंदुस्तान से रिश्तों को सुधारने के मुतल्लिक देखें तो उसमें उनका कोई किरदार रहेगा इसमें पूरा शक़ है। हिंदुस्तान के मामलात में फौज किसी को कोई छूट नहीं देती। वे कह ज़रूर रहे हैं कि हिंदुस्तान एक क़दम चलेगा तो वे दो क़दम चलेंगे मगर पहला क़दम आगे बढ़ाते ही उन्हें पता चल जाएगा कि फौज की बेड़ियाँ तोड़ना उनके बस में नहीं है।
फिर ये भी नहीं भूलना चाहिए कि इमरान कट्टरपंथी जमातों की हिमायत करते रहे हैं और उनकी पार्टी में तालिबानियों की भी भरमार है। कई तो चुनकर पार्लामेंट में भी पहुँच गए हैं। ऐसे में ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है कि इमरान ख़ान किन लोगों के दबाव में सरकार चलाएंगे।
वैसे भी ये कहा जाता है कि पाकिस्तान तीन ए अल्ला, आर्मी और अमेरिका चलाते हैं और इस इंतखाब से ये समीकरण बदल जाएगा ऐसा मानना ठीक नहीं होगा। ये सही है कि अमेरिका ने पाकिस्तान को अहमियत देना कम कर दिया है मगर उसने अपने इस मोहरे को अभी छोड़ा नहीं है।
पाकिस्तान की अमेरिकी इमदाद पर निर्भरता भी अभी बहुत है और वह उसके ख़िलाफ़ जाने की हिम्मत नहीं करेगा। अलबत्ता ये ज़रूर है कि उसने चीन को भी साध लिया है, इसलिए वहाँ से उसे राहत मिलने लगी है। इमरान ने ज़ाहिर कर दिया है कि वह चीन को कितनी अहमियत देते हैं। ज़ाहिर है कि चीन भी उसका इस्तेमाल हिंदुस्तान के ख़िलाफ़ करता रहेगा।
हो सकता है कि एक बार फिर रिश्ते सुधारने का नाटक दोहराया जाए। इमरान हिंदुस्तान आएं और मोदी पाकिस्तान का दौरा करें। कुछ लुभावनी घोषणाएं भी की जाएं, मगर कुछ होना-जाना नहीं है, क्योंकि मुश्किल केवल पाकिस्तान में ही नहीं हैं हिंदुस्तान में भी हैं।
मोदी सरकार पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कड़ा रुख़ अख्तियार करके चल रही है और इस चुनावी साल में वह बदल जाएगा, ऐसा मानना सरासर नासमझी होगी। इसके उलट वह और अधिक सख़्त रवैया अपनाकर कुछ ऐसी हरकतें भी कर सकती है जिससे हिंदू-मुसलमान ध्रुवीकरण बढ़े और चुनाव में उसका फ़ायदा मिले।
इमरान के वज़ीर-ए-आज़म बनने से कितना बदलेगा पाकिस्तान?
Written by रशीद बख्तावर
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