करीब चालीस लाख लोगों के नाम राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में शामिल न होने के बाद से अवैध बांग्लादेशी प्रवासियाँ का मसला देश की राजनीति पर छा गया है। अमित शाह ने अपने बयान से विवाद को और भी भड़का दिया है। वे असम की समस्या को बंगाल तक खींच ले गए हैं और जवाब में ममता बैनर्जी ने गृहयुद्ध तक की आशंकाएं व्यक्त कर दी हैं।
स्थितियाँ निश्चय ही विस्फोटक बनती जा रही हैं, क्योंकि बांग्लादेशियों के मुद्दे को गरमाकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का दाँव भी खेला जा रहा है। ये खेल नफ़रत और अविश्वास को बढ़ावा देगा जिससे देश के किसी भी हिस्से में हिंसा भड़क सकती है।
शायद बीजेपी यही चाहती भी है। इस साल नवंबर में कुछ राज्यों के चुनाव होने वाले हैं, उनमें तो इसका फ़ायदा उठाने की कोशिश की ही जाएगी, मगर असली मक़सद अगले साल होने जा रहे चुनाव के लिए वातावरण तैयार करना है, जो ऐसा करने से संभव हो सकता है।
ये तो स्पष्ट नज़र आ रहा है कि एनआरसी की जारी की गई सूची में ढेरों ग़लतियाँ हैं। बहुत सारे वैध नागरिकों के नाम इसमें शामिल न होने के प्रमाण लगातार मिल रहे हैं। शायद यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया है कि ये सूची अंतिम नहीं है और वैध नागरिकों के नाम जोड़ने के लिए अभी पूरे अवसर दिए जाएंगे।
लेकिन आशंकाएं फैल गई हैं और लोग डरे हुए हैं। सबसे बड़ी समस्या ये है कि ग़रीब लोग अपनी नागरिकता कैसे साबित करेंगे? पिछले दो-तीन साल से वे वैसे ही परेशान हैं। अब वे और क्या कर सकते हैं कि नागरिक होने के बावजूद कैंपों या देश से बाहर भेज दिए जाने से बच जाएं।
दिक्कत ये है कि केंद्र पर काबिज़ सरकार ने हिंदू बांग्लादेशी घुसपैठियों को नागरिकता प्रदान करने का सांप्रदायिक दाँव चला है। ये और बात है कि असम के लोग सभी घुसपैठियो को बाहर करना चाहते हैं। वे नहीं चाहते कि हिंदू बांग्लादेशियों को वहाँ रहने दिया जाए।
असम आंदोलन को चलाने वाले हिंदू और मुसलमान में फ़र्क नहीं देख रहे,। असम समझौते में भी विदेशी नागरिको के मामले में धार्मिक आधार पर कोई फ़र्क नहीं किया गया है। मगर बीजेपी कर रही है। वह असम के बहाने पूरे देश में अपना वोटबैंक बढ़ाने की जुगत मे है। इसीलिए चार साल पहले वह इस बाबत बिल भी ला चुकी है।
दरअसल, बीजेपी पहले भी असम में घुसपैठियों की समस्या को सांप्रदायिक रंग देती रही है। उसने असम आँदोलन में भी इसी तर्ज़ पर घुसपैठ की थी और उसके कुछ नेताओं का ब्रेन वाश करके हिंदू-मुसलमान वाली चाल चली थी। असम का मध्यवर्गीय ऊँची जाति वाल हिंदुओं को भी उसने अपने पक्ष में शामिल कर लिया है।
असम की जो ठेठ असमिया जाति है उसका मुसलमानों से कोई बैर नहीं है। उन्हें अगर दिक्कत रही है तो बंगालियों से, क्योंकि विभिन्न क्षेत्रों में उनका वर्चस्व रहा है। वे बांग्ला भाषा और संस्कृति से असमिया संस्कृति को ख़तरा देखते हैं।
यही वजह है कि साठ और सत्तर के दशक में वहाँ बांग्ला भाषा के ख़िलाफ़ ज़बर्दस्त आँदोलन भी हो चुका है। आज वे अगर बीजेपी द्वारा हिंदू बांग्लादेशियों को नागरिकता देने का विरोध कर रहे हैं तो इसी वजह से।
सबसे ज़रूरी बात तो ये है कि अगर सही ढंग से सूची बनी तो ये अफवाह झूठ साबित हो जाएगी कि असम में बीस से साठ लाख बांग्लादेशी हैं। राजनीतिक लक्ष्यों को ध्यान में रखकर अवैध नागरिकों की तादाद को बढ़ा-चढ़ाकर बताया जाता रहा है, मगर ये कई बार साबित हो चुका है कि संख्या बहुत कम है।
सवाल ये भी है कि अगर आरोप सही भी हो तो तीस-चालीस लाख लोगों को न तो वापस भेजा जा सकता है और न ही बांग्लादेश उन्हें स्वीकार करने वाला है। ज़ाहिर है कि
बांग्लादेशी विवाद को समझना है तो पहले असम की राजनीति को समझिए
Written by अप्रतिम गोगोई
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