शोध के क्षेत्र में हम कहाँ, चीन कहाँ? - भारत सरकार और सत्तारूढ़ दल वैज्ञानिक शोधों के नाम पर गाय और गोबर में ही उलझी हुई है, जबकि दुनिया कहाँ से कहाँ जा रही है। उसे समझ में नहीं आ रहा कि उसका पुरातनपंथी और अवैज्ञानिक सोच देश को कितना नुकसान पहुंचा रहा है।
सरकार को ये एहसास ही नहीं है कि दुनिया में चल रहा व्यापार युद्ध निर्माण क्षेत्र से हटकर अब शोध और खोजों की ओर मुड़ चुका है। वे देश जो दुनिया में अपना आर्थिक दबदबा बढ़ाना चाहते हैं, शिक्षा और रिसर्च पर खर्च बढ़ा रहे हैं।
यही नहीं वे अपनी वैज्ञानिक प्रतिभाओं के पलायन से रोक रहे हैं और जो पलायन कर रहे हैं उन्हें वापस बुला रहे हैं।
इस मामले में चीन ने अब बहुत ही आक्रामक नीति अपना ली है।
वह अमेरिका और दूसरी जगहों पर काम कर रहे अपने वैज्ञानिकों को वापस बुला रहा है और वे आ भी रहे हैं।
चीन ने इसके लिए अपने रिसर्च बजट में दस गुना की बढ़ोतरी की है। वह वैज्ञानिकों को सभी साधन मुहैया कराने का वादा कर रहा है।
उसने वैज्ञानिकों को इसके लिए भी आश्वस्त किया है कि उन्हें अंतरराष्ट्रीय शोध कार्यक्रमों और योजनाओं में हिस्सा लेने का भी मौक़ा दिया जाएगा।
ज़ाहिर है कि इससे अमेरिका में घबराहट भी है क्योंकि वैज्ञानिकों के बड़ी तादाद में पलायन से उसके वैज्ञानिक शोधों को प्रभावित करेगी।
भारत रिसर्च पर अपनी जीडीपी का केवल .89 फ़ीसदी खर्च करता है जबकि चीन 2.19 फ़ीसदी। भारत में प्रति व्यक्ति शोध पर निवेश केवल 40 डॉलर है जबकि चीन का 388 डॉलर।
सन् 2019 के बजट में भारत सरकार ने पाँच साल में शोध पर खर्च के लिए साढ़े छह सौ करोड़ का प्रावधान रखा था। जबकि चीन ने पिछले एक साल में ही दो अरब डॉलर खर्च किए हैं।
रिसर्च पर खर्चे के मामले में भारत दुनिया के पहले पचास देशों में भी नहीं आता।
ध्यान रहे कि चीन पहले ही वैज्ञानिक प्रगति के मामले में भारत से कई मील आगे चल रहा है। फिर भी उसे लग रहा है कि शोध पर निवेश को बढ़ाने और अपनी वैज्ञानिक प्रतिभाओं का इस्तेमाल करने के लिए और अधिक धन खर्च किया जाना चाहिए।
दरअसल, समस्या केवल शोध की नहीं है। मौजूदा सरकार ने शिक्षा को भी गर्त में ढकेल दिया है। अव्वल तो शिक्षा पर निवेश ही वह कम कर रही है। इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत का शिक्षा बजट 11 अरब डॉलर है जबकि चीन का 675 अरब डॉलर।
यही नहीं, शिक्षा के भगवाकरण के चक्कर में ये सरकार तमाम अच्छे शिक्षा संस्थानों को चौपट करने में लगी हुई है। इससे रिसर्च विरोधी माहौल बना है और वैज्ञानिक प्रतिभाएं कुंठित हो रही हैं।
ऐसे में अगर सरकार चीन की नीति का अनुसरण करके विदेशों मे काम कर रहे वैज्ञानिकों को वापस बुलाने की कोशिश भी करेगी तो वो कामयाब नहीं होगी। वैज्ञानिक जानते हैं कि विज्ञान विरोधी सरकार के रहते अच्छा शोध संभव ही नहीं होगा।
Written By
Prof.(Dr.) Mukesh Kumar [Sr. Journalist, TV anchor, Writer]
सरकार को ये एहसास ही नहीं है कि दुनिया में चल रहा व्यापार युद्ध निर्माण क्षेत्र से हटकर अब शोध और खोजों की ओर मुड़ चुका है। वे देश जो दुनिया में अपना आर्थिक दबदबा बढ़ाना चाहते हैं, शिक्षा और रिसर्च पर खर्च बढ़ा रहे हैं।
यही नहीं वे अपनी वैज्ञानिक प्रतिभाओं के पलायन से रोक रहे हैं और जो पलायन कर रहे हैं उन्हें वापस बुला रहे हैं।
इस मामले में चीन ने अब बहुत ही आक्रामक नीति अपना ली है।
वह अमेरिका और दूसरी जगहों पर काम कर रहे अपने वैज्ञानिकों को वापस बुला रहा है और वे आ भी रहे हैं।
चीन ने इसके लिए अपने रिसर्च बजट में दस गुना की बढ़ोतरी की है। वह वैज्ञानिकों को सभी साधन मुहैया कराने का वादा कर रहा है।
उसने वैज्ञानिकों को इसके लिए भी आश्वस्त किया है कि उन्हें अंतरराष्ट्रीय शोध कार्यक्रमों और योजनाओं में हिस्सा लेने का भी मौक़ा दिया जाएगा।
ज़ाहिर है कि इससे अमेरिका में घबराहट भी है क्योंकि वैज्ञानिकों के बड़ी तादाद में पलायन से उसके वैज्ञानिक शोधों को प्रभावित करेगी।
भारत रिसर्च पर अपनी जीडीपी का केवल .89 फ़ीसदी खर्च करता है जबकि चीन 2.19 फ़ीसदी। भारत में प्रति व्यक्ति शोध पर निवेश केवल 40 डॉलर है जबकि चीन का 388 डॉलर।
सन् 2019 के बजट में भारत सरकार ने पाँच साल में शोध पर खर्च के लिए साढ़े छह सौ करोड़ का प्रावधान रखा था। जबकि चीन ने पिछले एक साल में ही दो अरब डॉलर खर्च किए हैं।
रिसर्च पर खर्चे के मामले में भारत दुनिया के पहले पचास देशों में भी नहीं आता।
ध्यान रहे कि चीन पहले ही वैज्ञानिक प्रगति के मामले में भारत से कई मील आगे चल रहा है। फिर भी उसे लग रहा है कि शोध पर निवेश को बढ़ाने और अपनी वैज्ञानिक प्रतिभाओं का इस्तेमाल करने के लिए और अधिक धन खर्च किया जाना चाहिए।
दरअसल, समस्या केवल शोध की नहीं है। मौजूदा सरकार ने शिक्षा को भी गर्त में ढकेल दिया है। अव्वल तो शिक्षा पर निवेश ही वह कम कर रही है। इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत का शिक्षा बजट 11 अरब डॉलर है जबकि चीन का 675 अरब डॉलर।
यही नहीं, शिक्षा के भगवाकरण के चक्कर में ये सरकार तमाम अच्छे शिक्षा संस्थानों को चौपट करने में लगी हुई है। इससे रिसर्च विरोधी माहौल बना है और वैज्ञानिक प्रतिभाएं कुंठित हो रही हैं।
ऐसे में अगर सरकार चीन की नीति का अनुसरण करके विदेशों मे काम कर रहे वैज्ञानिकों को वापस बुलाने की कोशिश भी करेगी तो वो कामयाब नहीं होगी। वैज्ञानिक जानते हैं कि विज्ञान विरोधी सरकार के रहते अच्छा शोध संभव ही नहीं होगा।
Written By
Prof.(Dr.) Mukesh Kumar [Sr. Journalist, TV anchor, Writer]