दिन-रात गोदी मीडिया, मोदी मीडिया कहकर लोग पत्रकारों को कोसते रहते हैं, जबकि सचाई ये है कि वे बहुत ही नेक, सिद्धांतप्रिय और वफ़ादार क़िस्म के लोग हैं।
वे जिसका खाते हैं उसका बजाते हैं। वे नमक हरामी नहीं करते। वे उन लाभार्थियों में से तो बिल्कुल भी नहीं हैं जो मुफ़्त का राशन खाते हैं और फिर वोट किसी और को दे आते हैं।
दरअसल, जिसे गोदी मीडिया कहकर मज़ाक उड़ाया जाता है, वह सच्चे अर्थो में लाभार्थी मीडिया है। उसकी रग़ों में लाभांश रक्त की तरह चौबीस घंटे दौड़ता रहता है। उसी से उनके चेहरों पर लालिमा आती है, काया स्थूल होती है और दिमाग़ी शातिराना बनता जाता है।
पत्रकारों को ये लाभांश मीडिया-मालिकों से पहुँचता है। मालिकों को सरकार से प्राप्त होता है। सरकार नाना प्रकार से मालिकों को लाभ देती है और वे उसका कुछ टुकड़ा पत्रकारों को देते हैं।
उन्हीं टुकड़ों से उनके चेहरे खिलते हैं, उनके परिवार पलते हैं।
वास्तव में गोदी मीडिया के पत्रकार खुद को आदर्श लाभार्थी मानते हैं। लाभ के एवज़ में वफ़ादारी निभाने को वे प्राणी मात्र का सर्वोच्च गुण मानते हैं।
वे तरह-तरह से इस वफ़ादारी का प्रदर्शन भी करते रहते हैं। कभी बिंदास करते हैं, कभी नेपथ्य से। कभी कलाबाज़ियाँ खाते हैं। कभी शीर्षासन तो कभी भुजंगासन करते हैं।
ये तो सब जानते ही हैं कि वफ़ादारी के गुण की वज़ह से ही संसार भर में कुत्ते प्रशंसा पाते हैं। किसी की बेवफाई को रेखांकित करना होता है तो कहा जाता है कि उससे तो कुत्ता बेहतर है।
वह जिसका खाता है उसे काटता नहीं। वह केवल मालिकों के आदेश पर, उसके हक़ में भौंकता और काटता है। लाभार्थी मीडिया के पत्रकार भी उन्हीं को काटते हैं, जिन्हें काटने के लिए मालिक कहता है।
भला मालिकों को वे कैसे काट सकते हैं?
लोकतंत्र में मीडिया को वॉच डॉग यानी चौकीदार की भूमिका दी गई है। लाभार्थी मीडिया के पत्रकार इस भूमिका को तन-मन से निभाते हैं।
वे जनता द्वारा चुनी गई सरकार और उसके नेता के प्रति वफ़ादार रहकर इस कसौटी पर खुद को खरा साबित करते हैं। चुनी हुई सरकार पर जो भी हमला करता है, वे उस पर सदल-बल टूट पड़ते हैं, उन्हें सरे आम और सरे शाम लिंच कर डालते हैं।
उनकी बोटियाँ काटकर सरकार की थाली में सजा देते हैं। सरकार उन बोटियाँ को चबाते हुए जब प्यार से उनका सिर सहलाती है, पुचकारती है, तब वे पूँछ हिलाते हुए गर्व से भर उठते हैं, आश्वस्त हो जाते हैं कि वे लोकतंत्र की सेवा सही ढंग से कर रहे हैं।
ये ठीक है कि उन्हें लोग ढेले मारते रहते हैं। बात-बेबात पर लतिया भी देते हैं। इससे उन्हें पीड़ा भी होती होगी, मगर वे विचलित नहीं होते। कर्तव्य पथ पर डटे रहते हैं।
उनकी वफ़ादारी में कोई कमी नहीं आती, बल्कि वे तब और भी निष्ठा और संकल्प के साथ जुट जाते हैं। उनकी खूँखारता में इज़ाफ़ा हो जाता है।
वे अपने दाँत और नाखून और नुकीले करके उन पर टूट पड़ते हैं।
लाभार्थी मीडिया के पत्रकारों की सिद्धांतप्रियता की इससे बड़ी मिसाल क्या हो सकती है कि वे जिस थाली में खाते हैं उसमें छेद नहीं करते। बल्कि अगर थाली में छेद हों तो उन्हें ढंकने में लगे रहते हैं।
कभी इस सिद्धांत से मन डिगता भी है तो वे उसे तुरंत दबा देते हैं। उन्होंने सिद्धांत तोड़ने वालों का अंजाम देखा है। वे उस अंजाम को प्राप्त नहीं होना चाहते।
वे नहीं चाहते कि सोशल मीडिया या यू ट्यूब के किसी कोने में बैठकर भौं-भौं करें अथवा सड़कों की धूल फाँकें। ऐसी क्रांतिकारिता और क्रांतिकारियों को वे दूर से ही भौं भौं करते हैं।
लाभार्थी पत्रकार तो सरकार के श्रीचरणों में रहते हैं। वहाँ शीतल छाया है, सुस्वादु भोजन है, सुरा है माया है। वहाँ से भौंकना भी कितना निरापद और सुखदायी होता है।
न मानहानि और देशद्रोह के मुकद्दमे, न इनकम टैक्स के छापे। इनाम-ओ-इकराम अलग से मिलते हैं।
जिनके सिर पर सार्थक पत्रकारिता का भूत सवार रहता है वे पहले सार्थकता के वास्तविक अर्थ को समझें। सार्थकता का ‘सा’ अर्थ से संधिबद्ध है।
यानी पत्रकारिता में सार्थकता तो तब है जब उससे अर्थ की प्राप्ति हो। लाभार्थी पत्रकार उस अर्थ को खूब पहचानते हैं और प्राप्त करते हैं। इसी अर्थ-लाभ पर टिकी है उनकी लाभार्थी पत्रकारिता।
अगर किसी को स्वतंत्र पत्रकारिता का पीलिया नहीं हुआ है और उससे आँखें पीलियाई नहीं हैं तो उसे उनकी पत्रकारिता में सारे हरे-भरे अर्थ नज़र आ जाएंगे।
लाभार्थी पत्रकारिता के फलने-फूलने के मर्म को वे समझ जाएंगे। उन्हें ये भी समझ में आ जाएगा कि लाभार्थी पत्रकार किस राह के राही हैं और उनको कोसना किसलिए व्यर्थ है।
लुब्बे-लुआब ये है कि ये लाभार्थी राजनीति का युग है और इसमें लाभार्थी मीडिया की जय होगी....
लाभार्थी पत्रकारिता की अमर बेल ऊपर चढ़ती जाएगी....
इसलिए ज़ोर से बोलिए लाभार्थी पत्रकारिता ज़िंदाबाद, लाभार्थी पत्रकार अमर रहें।
Written by-डॉ. मुकेश कुमार
Prof.(Dr.) Mukesh Kumar [Sr. Journalist, TV anchor, Writer]
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