क्या इन फ़ैसलों के लिए जाने जाएंगे चंद्रचूड़?
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क्या आप जानना चाहते हैं कि CJI चंद्रचूड़ की विरासत कैसी होगी? इस वीडियो में हम इस बात पर गहराई से चर्चा करेंगे कि मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के निर्णयों और कार्यों ने भारत के कानूनी परिदृश्य को किस तरह से आकार दिया है।
How Will CJI Chandrachud Be Remembered? |
उनके फैसलों का स्थायी प्रभाव क्या होगा और आने वाले वर्षों में उन्हें किस तरह से याद किया जाएगा?
ऐतिहासिक निर्णयों से लेकर साहसिक सुधारों तक, हम यह पता लगाएंगे कि न्यायपालिका के भविष्य के लिए उनकी विरासत का क्या मतलब है।
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हमारे साथ जुड़ें क्योंकि हम चर्चा करते हैं कि CJI चंद्रचूड़ के कार्यकाल ने किस तरह से इतिहास बनाया है और क्या उनका योगदान समय की कसौटी पर खरा उतरेगा।
इस व्यावहारिक विश्लेषण को देखना न भूलें!
Curious about what CJI Chandrachud’s legacy will look like? In this video, we dive deep into how Chief Justice DY Chandrachud’s decisions and actions have shaped India’s legal landscape.
What will be the lasting impact of his rulings, and how will he be remembered in the years to come?
From landmark judgments to bold reforms, we’ll explore what his legacy means for the future of the judiciary.
Join us as we discuss how CJI Chandrachud’s tenure has made history and whether his contributions will stand the test of time.
Don’t miss out on this insightful analysis!
नीचे पूरा वीडियो ट्रांसक्रिप्ट पढ़ें:
दोस्तों, पिछले कुछ महीनों से सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की जबरदस्त आलोचना हो रही है उनकी निंदा हो रही है और यह भी कहा जा सकता है कि भर्तसना तक मामला पहुंच गया है लगातार आलोचना इसलिए हो रही है बल्कि आलोचना की शुरुआत तो बहुत पहले हो चुकी थी
जब वो एक के बाद एक ऐसे फैसले दे रहे थे जो आधे अधूरे थे जिनमें एक अजीब तरह का पैटर्न दिख रहा था कि वह चीजों को गलत तो ठहराते थे लेकिन उसे अंत तक नहीं पहुंचाते थे उन फैसलों के बारे में अभी मैं बात करूंगा
लेकिन यह जो सिलसिला शुरू हुआ वो पहले गणेश पूजा के दौरान जब उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घर बुलाया वहां से शुरुआत हुई कि आखिरकार सुप्रीम कोर्ट के जज को ऐसा क्यों करना पड़ा क्योंकि यह उनकी गरिमा और प्रतिष्ठा के अनुकूल नहीं था
और सबसे बड़ी बात न्यायालय की जो गरिमा होती है जो विश्वसनीयता होती है ये उसके भी खिलाफ था और हाल में जब उन्होंने यह कहा कि उन्होंने अयोध्या का जो फैसला लिया था वह भगवान से पूछकर किया था यानी तीन महीने तक वह तय नहीं कर पाए थे कि वह इस मामले में क्या करें।
और फिर उन्होंने भगवान के सामने बैठकर बोला कि आप ही बताइए मैं क्या करूं, आप ही सलूशन दीजिए तो यह एक तरह से जो न्यायालय की प्रक्रिया है जो संवैधानिक तौर तरीके हैं जो कानूनी प्रक्रिया है उससे हटकर एक अनसाइंटिफिक तरीके से फैसला देने के बारे में उन्होंने कहा, जिसके बाद लोग उन पर टूट पड़े हैं, बड़े-बड़े न्यायविधि हमले कर रहे हैं क्योंकि उन्होंने चीज ही ऐसी कह दी है।
और इसी बीच में उनका का एक और बयान आया था जिनमें उन्होंने कहा था कि मुझे पता नहीं है कि इतिहास मुझे किस तरह से याद करेगा यानी उनकी विरासत क्या है उसको किस तरह से इतिहास में दर्ज किया जाएगा
तो मैं बता दूं कि उनकी विरासत एक बहुत अच्छे न्यायाधीश के तौर पर नहीं रहेगी
वह जब छोड़ के जाएंगे तो उनको इस तरह से याद नहीं किया जाएगा कि उन्होंने बहुत अच्छे फैसले दिए जो मील के पत्थर साबित हुए हो आगे उनकी बुनियाद पर बड़े फैसले दिए जाएंगे या उनको नजीर माना जाएगा, यह उन्होंने नहीं किया है।
कुछ फैसले जो बार-बार कोट किए जा रहे हैं उनकी आलोचना के दौरान,
वह मैं आपसे डिस्कस करता हूं आपको एकएक करके बताता हूं कि कहां-कहां उन्होंने चूक की
देखिए पहला मामला जहां पर जहां से शुरुआत मैं कर रहा हूं वो वही है जिसके बारे में उन्होंने कहा कि उन्होंने ईश्वर से भगवान से पूछकर फैसला किया और वह था राम मंदिर का वर्डिक्ट.
अब देखिए कि यह राम मंदिर का वर्डिक्ट आधा अधूरा था क्योंकि इसमें कहा गया था कि बाबरी मस्जिद जहां ध्वस्त की गई है वहां कोई मंदिर था या नहीं यह प्रूव नहीं हुआ है इसके बावजूद वह जमीन राम मंदिर के पक्ष वालों को दे दी गई और इसकी विडंबना यह है इस फैसले पर जो पांच जज थे उनमें से किसी ने भी इस फैसले पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
यह फैसला किन जजेस ने दिया है उसमें यह दर्ज तो है लेकिन उनमें से किसी के भी हस्ताक्षर नहीं है, डी.वाई. चंद्रचूड़ के भी हस्ताक्षर नहीं है
फिर आते हैं इलेक्टोरल बॉन्ड्स पर इलेक्टोरल बंड्स को बड़े ही दुस्साहस इलेक्टोरल बंड को उन्होंने अवैध असंवेदनशील करार दिया लेकिन इसके बाद की जो कारवाई थी उसे उन्होंने नहीं होने दिया।
उसके बाद क्या होना चाहिए था कि अगर अवैध तरीके से पॉलिटिकल पार्टीज को धन मिला है तो उसकी वसूली की जानी चाहिए थी वह करवाई उन्होंने नहीं की यानी फिर वही कि उन्होंने फैसला तो दिया लेकिन उसको लागू नहीं किया।
एक तीसरा फैसला लेते हैं आपको याद होगा चंडीगढ़ में मेयर के इलेक्शन हो रहे थे और उसमें किस तरह से रिटर्निंग ऑफिसर ने हेराफेरी करने की कोशिश की थी और सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह एक क्राइम है और उस अधिकारी को क्रिमिनल कहा था लेकिन उस क्रिमिनल को सुप्रीम कोर्ट ने कोई सजा नहीं दी।
अब आइए महाराष्ट्र सरकार को गिराकर अपनी सरकार बनाने वाले शिंदे सेना की सरकार को देखिए कि किस तरह से भारतीय जनता पार्टी ने मोदी शाह ने राज्यपाल के साथ मिलकर षड्यंत्र किया उद्धव ठाकरे की पार्टी को तोड़ा और सरकार बनवा दी अब इस पूरे मामले को सुनते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सरकार अवैध है यानी जो शिंदे की सरकार बनी थी वह अवैध है।
लेकिन उस सरकार को वह हटा नहीं सकते क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा दे दिया इसलिए वह सरकार बहाल नहीं हो सकती, मान लिया कि उद्धव ठाकरे की सरकार बहाल नहीं हो सकती क्योंकि उन्होंने इस्तीफा दे दिया लेकिन जो सरकार अवैध है उसे आप कैसे बनाए रख सकते हैं और व ढाई साल से सरकार है अवैध होते हुए भी वह सरकार है तो यह कैसा फैसला था आधा अधूरा फैसला था
और इन सारे फैसलों में आप एक पैटर्न पाएंगे कि इसमें केंद्र सरकार को भारतीय जनता पार्टी को हर फैसले में लाभ मिल रहा है उसके पक्ष में जा रहा है हर फैसला।
अगला फैसला लीजिए आप, हिंडन बर्ग की रिपोर्ट आई कि अडानी ने किस किस तरह से फायदा उठाया शेयर बाजार को मैनिपुलेट किया राउंड ट्रिपिंग के जरिए काला पैसा सफेद किया और किस तरह से मोदी सरकार ने उसको बहुत सारी संपत्तियां परिसंपत्तियों देश भर में दी, पोर्ट, एयरपोर्ट और पावर स्टेशन वगैरह वगैरह उन सबके बारे में रिपोर्ट से हंगामा मचा
सुप्रीम कोर्ट ने एक जांच बिठा दी उस जांच कमेटी ने जो रिपोर्ट दी उसको सुप्रीम कोर्ट ने जस का तस स्वीकार कर लिया उस पर कोई सवाल नहीं खड़े किए जबकि उस रिपोर्ट पर हर तरफ से सवाल खड़े किए जा रहे थे, तो यहां भी उंन्होने फैसला तो सुना, इस मामले को टेक अप तो किया लेकिन इस पर कोई फैसला नहीं दिया कोई निष्पक्ष जांच नहीं होने दी और अडानी को भी बचा दिया और मोदी सरकार को भी बचा दिया प्रधान मंत्री मोदी को भी बचा दिया
अब धारा 370 को लीजिए धारा 370 हटनी चाहिए नहीं हटनी चाहिए यह एक अलग डिबेट हो सकती है लेकिन धारा 370 को हटाने का जो तरीका केंद्र सरकार ने अपनाया वह कतई वैध तरीका नहीं था
क्योंकि उस समय जम्मू कश्मीर की विधानसभा मौजूद नहीं थी और यह नियम था कि जम्मू कश्मीर की विधानसभा से आपको सहमति लेनी होगी उस समय राष्ट्रपति शासन था,
अब यह विडंबना देखिए कि इस मामले में राष्ट्रपति से ही सलाह ली सहमति ली और राष्ट्रपति ने ही फैसला कर दिया धारा 370 को हटाने का तो यह एक और फैसला था जिसमें तमाम तरह की विसंगतियां थी जिसको सुप्रीम कोर्ट के माननीय प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने लीपापोती कर दी, सही ठहरा दिया, केंद्र सरकार को फिर बचा दिया उनके एजेंडे को आगे बढ़ाया
उमर खालिद का मामला लीजिए उमर खालिद को आज तक जमानत नहीं मिली है सुप्रीम कोर्ट बार-बार फैसले दे रहा कि किसी मामले को कोर्ट अगर लंबा खींच रहा है तो आप किसी की स्वतंत्रता का हरण नहीं कर सकते हैं उसकी जो राइट टू लाइफ एंड लिबर्टी है उसका उल्लंघन नहीं कर सकते हैं
और इसी के आधार पर उसने मनीष सिसोदिया को बेल दी उसने अरविंद केजरीवाल को बेल दी और जब बारी आई है उमर खालिद की तो उसको बेल नहीं दी जा रही है क्योंकि वह अमीर नहीं है वह कोई बड़ा पावरफुल नेता नहीं है और शायद वह मुसलमान है इसलिए भी उनको नहीं दे रहा
एक और मामला लीजिए भीमा कोरेगांव का अभी आपने सुना होगा प्रोफेसर जी एन साईं बाबा की मृत्यु हो गई उन्हें 10 साल तक जेल में रखा गया और भीमा कोरेगांव में और लोगों को भी जेल पर रखा गया और लंबे समय तक उनको जमानत नहीं दी गई
क्योंकि यह मोदी सरकार का कारनामा था जो महाराष्ट्र सरकार से मिलकर इतने सारे सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया और कई लोग का वहां पर निधन भी हो गया, स्टेन स्वामी उनमें से एक है और बबर राव भी है और जी एन साईं बाबा भी उसके शिकार हुए हैं
तो यह वो चीजें हैं जो डी.वाई. चंद्रचूड़ ने अपने कार्यकाल में की है और वह हमेशा कटघरे में खड़े रहेंगे।
इन सब वजहों से बल्कि उन्होंने जाते-जाते कुछ और चीजें ऐसी कर दी जिसका जिक्र मैंने किया कि गणेश पूजा के लिए प्रधानमंत्री को अपने घर आमंत्रित किया उसको प्रचारित किया फिर वो बीच में अयोध्या भी चले गए
अपने दर्शन के लिए उसको भी प्रचारित किया और अभी यह भी कि मैंने तो भगवान से पूछकर अयोध्या विवाद का फैसला सुनाया था या फैसले में शामिल हुआ था अब ये जो सारी चीजें हैं वो यह बता रही हैं कि डी.वाई. चंद्रचूड़ का एजेंडा क्या था
उनकी सोच क्या थी और वह किस तरह से लगातार सरकार की मदद कर रहे थे ऐसे फैसले दे रहे थे जो सरकार के हक में जा रहे थे, वो दोहरी बातें कर रहे थे, बातें तो बड़ी-बड़ी करते थे लेकिन वो फैसले में उनके रिफ्लेक्ट नहीं होता था
मीडिया पर उन्होंने बड़े-बड़े अटैक किए बाबा रामदेव गलत दवाओं को प्रचारित कर रहे थे विज्ञापन दे रहे थे उनकी क्लास लगाई लेकिन उन उनको भी दंडित नहीं किया तो जहां भी डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कदम रखा वहां पर फैसले नहीं हुए न्याय नहीं हुआ ये एक उनकी लीगेसी है एक विरासत है जो वो अपने पीछे छोड़कर जा रहे हैं
और हम यह देखेंगे कि जब वो छोड़ कर जाते हैं रिटायर होते हैं तो वहां वो क्या करते हैं क्या वो भी किसी ऐसे पद पर जाते हैं जैसे राम मंदिर का फैसला देने वाले जितने भी जजेस थे वो कहीं ना कहीं अच्छे पदों पर बैठ गए कोई राज्यसभा मेंबर हो गया
रंजन गोगोई गवर्नर हो गया कोई किसी ट्रिब्यूनल का अध्यक्ष होगा इस तरह से अलग-अलग लोगों का पुनर्वास कर दिया गया तो क्या डी.वाई. चंद्रचूड़ का भी पुनर्वास होने जा रहा है यह बहुत बड़ा सवाल है और हमें यह 10 नवंबर के बाद पता चलेगा जब वह विदाई लेंगे
और उसके बाद हो सकता है कि कुछ समय बाद यह घोषणा हो कि वह क्या करेंगे या उनको क्या ओहदा क्या उपलब्धि केंद्र सरकार से या कोई पुरस्कार मिलने जा रहा है तो यह है डी.वाई. चंद्रचूड़ का इतिहास उनके प्रधान न्यायाधीश के तौर पर और उनके कारनामे जो न्यायिक इतिहास में दर्ज किए जाएंगे और उनको इसी रूप में याद किया जाएगा।
वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार का विश्लेषण
Analysis by senior journalist
Dr. Prof. (Dr.) Mukesh Kumar
Journalist, TV Anchor, Writer, Poet & Translator
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