मुझे देखते ही प्रशांत ज़बरदस्ती मुस्कराए। हाथ मिलाया और सामने पड़ी कुर्सी पर बैठने का इशारा किया। इसके बाद गहरी साँस भरकर बोले, पूछिए क्या पूछना चाहते हैं। हालाँकि मैं अभी कुछ अनौपचारिक बातें करके माहौल बनाना चाहता था और ऐसे बैठते ही एनकाउंटर शुरू करने के लिए तो कतई तैयार नहीं था। लेकिन मुझे अर्नब गोस्वामी की तरह तो इंटरव्यू करना नहीं था, कि पहले मक्खन की टिकिया घिसी जाए और फिर लड़याते हुए सवाल किए जाएं। इसलिए मैं तुरंत शुरू हो गया।
प्रशांत जी सबसे पहले तो ये बताइए कि आप इतने दुखी, इतने परेशान क्यों लग रहे हैं? क्या दस जनपथ से डॉट पड़ी है?
आप मीडिया वाले भी कनकव्वे उड़ाने में माहिर होते हैं। जो बात दूर-दूर तक नहीं होती उसे ब्रेकिंग न्यूज़ बनाकर चलाने लगते हैं। भला मुझे क्यों डॉट पडेगी। मुझे काँग्रेस ने हायर किया है और मैं अपना काम पूरी ईमानदारी तथा मेहनत से कर रहा हूँ।
तो बताइए फिर कि आपकी परेशानी का सबब क्या है? आपके उस हँसते-मुस्कराते चेहरे का क्या हुआ?
कुछ नहीं, बस अब यूपी चुनाव की तैयारियाँ चरम पर हैं, अगले पंद्रह दिनों में काँग्रेस की कैंपेन शुरू कर देनी है तो ज़ाहिर है कि बहुत मसरूफ़ हूँ और बहुत सारे फ्रंट पर काम करना है इसलिए थोड़ा टेंसन भी है।
टेंसन किस बात का है काँग्रेस तो यूपी में कहीं है ही नहीं?
अरे इसी बात का तो टेंसन है। मैंने तो राहुल जी को कह दिया है कि अगला सीएम काँग्रेस का होगा। तभी से वे बहुत खुश हैं, मगर पार्टी में कोई और मेरी बात को सीरियसली न ले रहा है और न ही सीरियसली काम कर रहा है। यहाँ तक कि सोनिया को भी लगता है कि मैं मज़ाक कर रहा हूँ या फेंकू की तरह फेंक रहा हूं।
लेकिन ये तो सचमुच में एक बड़ा मज़ाक है, आप ऐसा मज़ाक कर क्यों रहे हैं?
आपको भी मज़ाक लग रहा है, जबकि मैं इस पर सीरियसली काम कर रहा हूँ।
मैं क्या पूरा मुल्क आपके इस बयान पर हँसेगा।
जब मैंने मोदी जी को अगला प्रधानमंत्री और नीतीश जी को अगल मुख्यमंत्री घोषित किया था तब भी लोग हँसे थे, लेकिन नतीजे आने के बाद सबकी बोलती बंद हो गई थी। इस बार भी वही करने जा रहा हूँ।
आपका आत्मविश्वास तो ग़ज़ब का है, आपको दाद देनी चाहिए। ख़ैर ये बताइए कि आप क्या सोचकर ऐसा कह रहे हैं? सबको तो यही लगता है कि आपने कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने के लिए इसे फेंका है?
मैं बिल्कुल नहीं फेंक रहा हूँ और अपने कहे पर सौ फ़ीसदी विश्वास करता हूँ। मुझे यक़ीन है कि अगर मेरी रणनीति पर काँग्रेस अमल करे तो उसका सीएम बन सकता है।
वैसे बताएंगे कि आपकी वो चमत्कारी रणनीति क्या है, जिसके बल पर आप ऐसी अजीब-ओ-ग़रीब घोषणा कर रहे हैं?
बहुत सीधी सी बात है। अखिलेश यादव बतौर मुख्यमंत्री और नेता फेल हो गए हैं, मायावती में अब लोगों की रुचि नहीं रही और बीजेपी की तो उसके पास सीएम के लायक कोई कैंडीडेट ही नहीं है। ऐसे में अगर काँग्रेस के चांसेस अच्छे हैं। अगर वह मुख्यमंत्री के लिए कोई अच्छा दावेदार प्रोजेक्ट कर दे तो उसका सीएम बनना तय है। आपको तो पता ही है कि इस समय पब्लिक पार्टी को नहीं नेता को वोट कर रही है, इसलिए नेता का तगड़ा होना ज़रूरी है।
काँग्रेस में ऐसा तगड़ा नेता तो कोई दिख नहीं रहा, फिर आप किस उम्मीद पर पंतगें उड़ा रहे हैं, पेंच लड़ा रहे हैं?
है क्यों नहीं राहुल या प्रियंका में से कोई भी तैयार हो जाए तो जीत तय समझिए.
तब तो आपके विश्वास की शुरूआत में ही हवा निकल जाती है क्योंकि दोनों ही इसके लिए तैयार नहीं हैं, बल्कि मना कर चुके हैं, क्या ये सच नहीं है?
हाँ सच तो है, मगर मैंने हार नहीं मानी है। कह दिया है कि इसके बिना नैया पार नहीं लगेगी।
अगर वे फिर भी न माने तो?
तब मैं कोशिश कर रहा हूँ कि वरूण गाँधी को तोड़कर ले आऊँ गाँधी परिवार का कोई भी नेता मिल जाए मैं उसे जिता दूँगा।
क्या दस जनपथ इसके लिए तैयार हो जाएगा? और मेनका कैसे मानेंगीं?
मुझे लगता है सब मान जाएंगे। काँग्रेस में मरता क्या न करता वाले हालात हैं, जबकि मेनका अपने बेटे के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाएंगी। इस बहाने दोनों परिवार भी एक हो जाएंगे।
बड़ी दूर की कौड़ी है प्रशांत जी। इस तरह बिना बंदूक के शिकार करना आप जैसे रणनीतिकार को शोभा नहीं देता?
मेरी टिप्पणी सुनकर प्रशांत का चेहरा लटक गया। थोड़ी देर चुप रहने के बाद वे फिर बोले-ख़ैर अगर सीएम के कैंडिडेट का मसला न सुलझा तो मेरे पास दूसरी रणनीति भी है
वो क्या है?
देखिए, बिहार में गठबंधन की जीत हुई थी और अगर यहाँ भी काँग्रेस एक तगड़ा गठबंधन बना ले तो वह कामयाब हो सकती है। वैसे भी यूपी की पॉलिटिक्स बिहार जैसी ही है। यहाँ भी टू पार्टी सिस्टम नहीं है, कई बड़ी पार्टियाँ हैं। ऐसे में एक कारगर गठबंधन बनाने से सफलता तय है।
लेकिन काँग्रेस के साथ गठबंधन करने के लिए तैयार कौन है मुझे तो नहीं लगता किसी की उसमें दिलचस्पी है?
आप सही कहते हैं। मायावती घांस नहीं डाल रहीं। कह रही हैं कि दो-चार सीट छोड़नी हो तो बताओ, मगर इससे ज़्यादा की उम्मीद है तो अपना रास्ता देखो। मुलायम को भी लग रहा है कि उन्हें काँग्रेस की क्या ज़रूरत है। वे अजीत सिंह से तो तालमेल कर रहे हैं मगर काँग्रेस को भाव ही नहीं दे रहे। ख़ैर अगर ऐसा नहीं हुआ तो मेरे पास तीसरा रास्ता भी है
वो भी बता दीजिए?
देखिए, मुझे लगता है कि काँग्रेस का नेतृत्व अगर किसी ब्राम्हण के हाथ मे दे दिया जाए तो सारे ब्राम्हण उसके पाले मे आ जाएंगे। वो अपने साथ दूसरे वर्गों के मतदाताओं को भी ले आएगी। ऐसे राज्य में जहाँ तमाम वर्गों के वोट बँट रहे हैं, अगर काँग्रेस ब्राम्हणों और मुसलमानों का मोर्चा बना लेगी तो वह ज़रूर जीतेगी। पहले भी काँग्रेस तभी कामयाब हुई है जब उसकी लीडरशिप ब्राम्हणों के हाथों में थी।
आपकी इस सोशल इंजीनियरिंग में भी मुझे ढेरों झोल नज़र आ रहे हैं। अव्वल तो समय बदल चुका है। दूसरे, ब्राम्हण तो बीजेपी के पाले में हैं, क्योंकि वही उनके विचारों को धार दे रही है और आरक्षण विरोध आदि के ज़रिए उसे आश्वस्त भी कर रही है। इसलिए उनसे आपकी उम्मीद निराधार नहीं है?
प्रशांत किशोर का चेहरा पूरी तरह लटक गया। उनसे कोई जवाब देते नहीं बन रहा था। कुछ देर चुप रहने के बाद धीरे से बोले-मुझे लगता है कि काँग्रेस से सुपाड़ी लेकर मैं फँस गया हूँ।
अरे आप कैसी बात कर रहे हैं?
मैं सच कह रहा हूँ। मैंने सन् 2019 तक के चुनावों का ठेका तो ले लिया है, मगर मुझे लगता है कि इस पार्टी का कुछ हो नहीं सकता।
आपको ऐसा क्यों लगता है इतनी जल्दी मोहभंग की वजह बताएंगे?
अरे ये पार्टी बदलना ही नहीं चाहती। ये बीच रास्ते में बैठे साँड़ या तालाब में घुसी भैंस की तरह हो गई है। कितना भी खोंचो, बाहर ही नहीं निकलती। इसके तमाम नेता अपने में लगे हुए हैं. किसी को पार्टी की फ़िक्र नही है। कोई अपने लिए टिकट चाहता है तो कोई अपने भाई भतीजों के लिए। पार्टी के लिए कोई मेहनत और त्याग करने को तैयार नहीं है।
तब तो आपने सचमुच में ग़लत दाँव खेल दिया?
हाँ, दाँव तो ग़लत है, मगर यूपी भर के लिए। यूपी के बाद भी बहुत सारी संभावनाएं हैं। जिस तरह से मोदी सरकार की अलोकप्रियता बढ़ रही है, उससे मुझे उम्मीद है कि 2019 के चुनाव में काँग्रेस के लिए फिर एक मौक़ा बनेगा। अगर मैंने उस चुनाव में कमाल कर दिया तो समझ लीजिए के सारे नुकसान की भरपाई हो जाएगी।
उम्मीद पर दुनिया कायम है और राजनीति चूँकि संभावनाओं का खेल है इसलिए मैं ये नहीं कहूँगा कि आप खयाली पुलाव पका रहे हैं, मगर फिलहाल तो ये दिवा स्वप्न ही लग रहा है?
देखिए यूपी में काँग्रेस हारे या जीते दोनों ही सूरतों में उसका भला होगा। जीती तो रिवाइव हो जाएगी और हारी तो निर्णायक क़दम उठाने के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं रह जाएगा।
निर्णायक कदम बोले तो?
लीडरशिप के स्तर पर बड़ा परिवर्तन। बस इससे ज़्यादा मुझसे कुछ मत पूछिए। मैं बता भी नहीं सकता। मेरा करियर खराब हो जाएगा।
इतना बोलकर प्रशांत खामोश हो गए। मैं समझ गया कि वे कुछ नहीं बोलेंगे। काँग्रेस में खुलकर न बोलने के रिवाज़ को उन्होंने आत्मसात कर लिया है। लिहाज़ा थैक्यू कहकर मैंने विदा ले ली।
डॉ मुकेश कुमार - FAKEएनकाउंटर