मोदी एंड कंपनी को क्लीन बोल्ड करने के बाद अब नवजोत सिंह सिद्धू राजनीति में बड़ी पारी खेलने की तैयारी कर रहे हैं। इसकी झलक उनके घर में चल रही नेट प्रेक्टिस में साफ दिखती है। उनसे मुलाकातियों की तादाद एकदम से बढ़ गई है। ये लोग उनसे क्रिकेट का ज्ञान लेने या उनकी मुहावरेदार बातें सुनने नहीं आ रहे बल्कि उन्हें बधाईयाँ देने आ रहे हैं। बहुत से लोग टिकट की उम्मीद में भी आ रहे हैं और कईयों को ये भी लग रहा है कि वे मुख्यमंत्री बनने वाले हैं इसलिए उनसे अभी से संबंध बना लेना फ़ायदेमंद हो सकता है। सिद्धू सबसे मिलते हुए फील्ड सेटिंग के बारे में सोचते रहते हैं।
मुझे देखते ही अपने ख़ास अंदाज़ में बोले-आओ गुरू...बस आपका ही इंतज़ार था, जाने कब से दिल बेकरार था। आप आए तो दिल को करार आया, बरसों बाद जैसे मेरा बिछड़ा यार आया। मैंने कहा सिद्धू जी, न तो मैं आपका यार न ही आपका दिल-ए-बेकरार फिर क्यों उमड़ रहा है इतना प्यार? सिद्धू बोले-अरे यार, बस सुबह से एक तुक दिमाग़ में चल रही थी, आप दिखे तो मैंने चिपका दी। इसके बाद वे लॉफ्टर शो की तरह ज़ोर से हाहा करते हुए हँस पड़े। मैंने कहा-सिद्धू जी मुझे वापस दिल्ली लौटना है, अगर आप इजाज़त दें तो एनकाउँटर शुरू करें तो उनका जवाब था-अरे देऱ किस बात की गुरू हो जाओ फौरन शुरू। और मैं शुरू हो गया।
सिद्धू जी, आपने अपनी ही टीम को हराने की क्यों ठान ली? जिस टीम से आप इतने सालों से खेल रहे थे उसको धोखा देकर विरोधी टीम में शामिल हो गए?
मेरे भाई आपने आँखों में पट्टी बाँध रखी है या आप जान कर भी अनजान बन रहे हो। मेरी टीम, टीम नहीं रह गई थी, वह कुछ लोगों का गैंग बन चुकी है। उस गैंग के दो-तीन खिलाड़ी ही खेल रहे हैं, बाक़ी को पवेलियन में बैठा दिया गया है। कुछ को तो मैदान के ही बाहर भेज दिया गया है।
और ये दो-तीन खिलाड़ी कौन हैं?
राज़ को राज़ रहने दो....बंद मुट्ठी लाख की, खुल गई तो ख़ाक़ की। इसलिए नाम न पूछो गुरू। वैसे ये कोई ऐसा रहस्य भी नहीं है जिसे बूझने के लिए किसी लाल बुझक्कड़ की ज़रूरत हो। सब जानते हैं कि मोदी-शाह-जेटली का डंका बज रहा है, इस तिकड़ी का सिक्का चल रहा है।
लेकिन इससे आपको क्या तकलीफ़ थी, आपको अपना काम करते रहना था?
यही तो आप लोग नहीं समझते न गुरू। ये सही है कि मुझे कोई दिक्कत नहीं थी। अमृतसर सीट छीनने के एवज़ में मोदी जी ने मुझे राज्यसभा में पहुंचा दिया था जहाँ मैं आराम से छह साल काट सकता था। मगर गुरू जिस टीम में आप होते हैं उसके दूसरे मेंबरान का दुख-दर्द भी तो आपका होता है। जब इतने सारे लोग दुखी हों, उदास हों, नाराज़ हों तो आप केवल ऐसा सोच के खुश कैसे रह सकते हैं कि मेरा काम हो गया। जो दूसरे की पीर न समझे वो इंसान इंसान नहीं है और सिद्धू पहले इंसान है फिर प़ॉलिटिसियन।
आप कैसे कह सकते हैं कि लोग दुखी या नाराज़ हैं....? पहली बार पार्टी बहुमत के साथर सत्ता में आई है, सबको तो खुश होना चाहिए?
यही तो बात है गुरू समझने वाली। मेहनत सबने की और फल कुछ लोग खा रहे हैं। कुँआ किसी ने खोदा, पानी पर कब्ज़ा किसी और का हो गया है। गाँव भर ने अनाज इकट्ठा किया और भंडारा किसी और के नाम से चल रहा है।
आपको मंत्री नहीं बनाया गया क्या इसलिए नाराज़ हैं?
अरे इस मंत्रिमंडल में मंत्री बनकर मैं कौन सा खुश हो जाता मेरे भाई? आप ही से पूछता हूँ, क्या आपको दो-तीन मंत्रियों के अलावा कोई खुश नज़र आता है? राजनाथजी का चेहरा देखिए बुझा बुझा सा है। लगता ही नहीं कि वे देश के गृहमंत्री हैं। सुष्माजी का भी यही हाल है। वे विदेश मंत्री की जगह रेस्क्यू मंत्री बना दी गई हैं। उनके पास एक ही काम रह गया है-दूसरे देशों में फँसे नागरिकों निकालकर लाना। सारा काम पीएमओ ने सँभाल रखा है। आलम ये है कि एक ही आदमी बैटिंग भी करना चाहता है, बॉलिंग भी और फील्डिंग भी। उसको लगता है एक वही खिलाड़ी है बाक़ी सब अनाड़ी। इसीलिए सारे मंत्री सजावटी हैं, गुलदस्ते में सजे हुए। मैं भी इनमें शामिल हो जाता तो कौन सा तीर मार लेता।
लेकिन मोदीजी तो हमेशा टीम की बात करते हैं, टीम बीजेपी, टीम इंडिया.....?.
हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और होते हैं गुरू। मेरा मुँह मत खुलवाओ। कथनी और करनी में बड़ा फर्क है। ऊपर की पैकिंग कुछ और है अंदर माल कुछ और। लेकिन अब मुल्क को समझ में आ रहा है। वह इस सो काल्ड टीम मोदी के हाथ से फिसल रहा है। सन् 2019 में इस पर झाड़ू फिर जाएगी। आप देखते रहियो।
ये जो आपने टीम मोदी पर झाड़ू फेरने की बात कही, तो वो कौन सी झाड़ू है-मुहावरे वाली या केजरीवाल की?
झाड़ू तो एक ही होती है डेमोक्रेसी में और वो अवाम के हाथ में होती है। वो कभी केजरीवाल के ज़रिए झाडू फेरती है तो कभी मोदी या राहुल के ज़रिए। अब ये तो वक़्त ही बताएगा कि इस बार उसने ये ज़िम्मेदारी किसे देनी है।
ये बताइए कि अब बीजेपी से अलग होकर कौन सा तीर मारने का इरादा है?
अरे अभी तो मैंने क्रीज़ पर पाँव भी नहीं रखे यार। थोड़ा जमने तो दे, पिच का मिज़ाज़ समझने दे, बॉल घूम रही है कि नहीं ये तो परखने दे, फिर देखना कैसे चौके-छक्के लगाता हूँ। वैसे भी तीर मार पाऊं या न मार पाऊं, मगर कोशिश तो कर सकता हूँ न। अगर चींटी चीनी का टुकड़ा लेकर पहाड़ चढ़ सकती है तो ये सरदार भी कुछ कर ही सकता है न।
अच्छा ये बताइए कि कहीं ये आपकी मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा तो नहीं है जिसने आपको अपनी पार्टी को गच्चा देने के लिए मजबूर कर दिया?
ऐ भाई सियासत लोभ-लालच या महत्वाकांक्षा से ही नहीं चलती, उसमें संभावनाओं का भी महत्व होता है। सियासतदानों को जहाँ संभावना दिखती है वहाँ वे दाँव लगाते हैं। लेकिन मैं तो पंजाब के अवाम की खिदमत के लिए अलग हुआ हूँ। बीजेपी सत्ता पर काबिज़ होने के बाद अवाम से दूर चली गई है। वह भ्रष्ट हो गई है और अकालियों के साथ मिलकर भटक भी गई है। इसलिए उसके ज़रिए तो कुछ किया नहीं जा सकता। समंदर पार करने के लिए दूसरी नाव की सवारी ज़रूरी हो गई है मेरे दोस्त। बीजेपी की किश्ती तो बीच भँवर में डुबा देगी।
कहा जा रहा है कि आप उन्हीं केजरीवाल के साथ जाने की तैयारी कर रहे हैं, जिनके खिलाफ़ चुनाव प्रचार में जाने क्या-क्या कहा था। आपने उनका जमकर मज़ाक उड़ाया था। उन्हें भगोड़ा कहा था?
उस समय मैं जानता नहीं था बंधु कि जिसे मैं पिद्दी समझ रहा हूँ वह अखाड़े का गंगू पहलवान निकलेगा। अरे ये तो मास्टर ब्लास्टर है। अकेले ही टीम मोदी के छक्के छुड़ा रखे हैं बंदे ने। पूरी सरकार और पूरी पार्टी उसके पीछे पड़ी है, मगर वो दनादन चौके-छक्के जड़े जा रहा है। न उसके पास अडानी है, न अंबानी। न पुलिस है न प्रशासन। कौरवों ने चक्रव्यूह बनाकर उसे घेर लिया है मगर फिर भी महायोद्धा की तरह लड़े जा रहा है। हैट्स ऑफ टू हिम।
आप केजरीवाल की इतनी तारीफ़ कर रहे हैं तो अब ये भी बताइए कि उनके साथ डील क्या हुई है? आप कब आप में शामिल हो रहे हैं और क्या आपको मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया जाएगा?
भाई ये डील-वील मोदीजी करते होंगे, मैं नहीं करता और जहां तक मेरे नॉलेज में है केजरीवाल भी नहीं करता। अलबत्ता ये ज़रूर है कि मेरी उनसे तीन-चार मीटिंगें हुई हैं और मिलकर काम करने का इरादा बना है। बाक़ी देखते हैं आगे क्या होता है।
इस बार पंजाब का चुनाव किन मुद्दों पर लड़ा जाएगा?
मुद्दा तो एक ही है और वो है पंजाब की बदहाली। अकाली-बीजेपी की सरकार ने इस खुशहाल राज्य को बरबाद कर डाला है। पूरा यूथ नशे में धुत्त है और बादल फेमिली लूट में। इन्होंने खज़ाना खाली कर दिया है और अब जब हार सामने दिख रही है तो धर्म की सियासत शुरू कर दी है। लेकिन केजरीवाल ने स्वर्णमंदिर में सेवा करके उनको पटखनी दे दी है। वैसे भी पंजाब के लोगों को इतना बेवकूफ़ मत समझना। वो इनके किसी झाँसे में आने वाले नहीं हैं।
ये बताइए कि केंद्र सरकार का भविष्य क्या लग रहा है?
किश्ती डूब रही है भाई मेरे। पापों का घड़ा बहुत तेज़ी से भर रहा है इस सरकार का। अवाम महँगाई से त्रस्त है। बेरोज़गारी सुरसा की तरह मुँह फाड़ती जा रही है। वे पंजाब, यूपी सब हारेंगे। गुजरात में तो सफाया होगा और फिर बाक़ी के स्टेट्स भी हाथ से निकल जाएंगे। अहंकार तो रावण का भी नहीं रहा मेरे दोस्त तो किसी का क्या रहेगा। मदमस्त हाथी अपनी मौत खुद बुला लेता है। इस सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है गुरू। बस देखते जाओ आगे-आगे होता है क्या? हंस की चाल चलने से कौआ हंस नहीं हो जाता। बारिश में जब गीदड़ की चमड़ी धुल जाती है तो पता चल जाता है कि वह शेर नहीं क्या है। सरकार को भी जनता ने पहचान लिया है और अब जमकर सबक सिखाएगी।
इतने में सिद्धू की पत्नी ने आकर कहा- टीवी पर त्वाडा शो आ रहा है जी, ज़रा देख लो, फिर क्या पता असी टैम मिले न मिले। सिद्धू ने ये कहते हुए कि बीवी दी गल सुणणी चाहिए जी, मुझसे हाथ मिलाया और अंदर चले गए।