अकाली और बीजेपी दोनों को चुनाव में हार दीवार पर लिखी दिख रही है। पूरे पंजाब में सत्ता विरोधी लहर चल रही है। लोगों में सरकार के खिलाफ़ ज़बर्दस्त गुस्सा है। समस्याएं ढेर सारी हैं, मगर ड्रग्स के मुद्दे ने राज्य की राजनीति में भूचाल पैदा कर रखा है।
पंजाब सरकार द्वारा फिल्म उड़ता पंजाब का विरोध करने के पीछे भी यही डर काम कर रहा था। वे अरसे से कोशिश कर रहे थे कि लोगों का ध्यान हटाया जाए, उसे धार्मिक, बल्कि सांप्रदायिक मसलों की ओर खींचा जाए। इसके लिए उन्होंने पहले भी कई प्रयास किए थे, मगर दाल नहीं गली। लेकिन आप की एक चूक ने उन्हें मौका दे दिया।
आप के घोषणापत्र और आशीष खेतान के बयान को इसीलिए वे हवा दे रहे हैं। पंजाब की जनता को उकसा रहे हैं कि आम आदमी पार्टी ने सिख धर्म का अपमान किया है। इसी मक़सद से खेतान के खिलाफ़ एफआईआर की गई है और हो सकता है कि माफ़ी माँगने के बावजूद उन्हें गिरफ़्तार भी किया जाए। केंद्र सरकार का इसमें उसे सहयोग मिलना तय ही है। वह तो आप के पीछे हाथ धोकर पड़ी है।
ये माना जा सकता है कि आप की अपरिपक्वता ने उन्हें बहाना दे दिया है, मगर वास्तव में देखा जाए तो भड़काने वाली कोई बात ही नहीं है। अव्वल तो झाड़ू आप का चुनाव चिन्ह है और उसका कवर पर होना लाजिमी है। फिर झाड़ू कोई ऐसी अपवित्र चीज़ नहीं होती कि उससे किसी धार्मिक स्थल का अपमान हो जाए। स्वर्ण मंदिर की सफाई के लिए ही जाने कितनी झाड़ू रोजाना इस्तेमाल होती होंगी।
दूसरे, किसी महत्वपूर्ण किताब या दस्तावेज़ को बाइबल, कुरान या गीता कहना आम बात है। इसी क्रम में अगर मौनिफेस्टो को गुरू ग्रंथ साहिब कह दिया गया तो कौन सा आसमान टूट पड़ा? लेकिन जब नीयत खराब हो तो किसी भी चीज़ को तोड़ा-मरोड़ा जा सकता है, उसका कुछ भी अर्थ निकाला जा सकता है। अकाली दल यही कर रहा है।
आम आदमी पार्टी के लिए इस तिकड़म का तोड़ ढूँढ़ना आसान नहीं होगा। हालाँकि खेतान ने तुरंत माफ़ी मांगकर ठीक किया। लेकिन चुनाव को सांप्रदायिक एजेंडे की तरफ खींचने वाले इससे चुप नहीं बैठेंगे। वे इस माफ़ी का भी इस्तेमाल करने लगे हैं।
सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण करने की इन कोशिशों को रोकने के लिए आप नेतृत्व को खुलकर आना होगा और अकालियों की सांप्रदायिक राजनीति को बेनकाब करना होगा। उन्हें बताना होगा कि अकाली किस तरह से मुख्य मुद्दों से ध्यान बँटाकर अपनी रोटियाँ सेंकने की फिराक़ में हैं।
मजे की बात ये है कि काँग्रेस भी बहती गंगा में हाथ धोने की कोशिश कर रही है। कैप्टन अमरिंदर सिंह द्वारा इस मामले पर हाय तौबा मचाना इसकी बानगी है। लेकिन वे ये नहीं जानते कि उनकी बयानबाज़ी का फायदा काँग्रेस को नहीं अकालियों को ही मिलेगा, क्योंकि सांप्रदायिक राजनीति में जब-जब कांग्रेस ने दाँव लगाया है उसे नुकसान ही हुआ है।
आप को अपने नेताओं को संयम में रहकर चुनाव अभियान आगे बढ़ाने की सीख भी देनी पड़ेगी। अन्यथा अभी तक दूसरे दलों के मुक़ाबले उसे जो बढ़त मिली हुई है, वह गँवा देगी।