संपादक जी के विचार सत्ता परिवर्तन के साथ बदलते रहते हैं मगर जहाँ तक मेरा सवाल है तो मुझे राहुल गाँधी हमेशा से कन्फ्यूज्ड टाइप के इंसान लगे हैं। उनका ये कन्फ्यूजन राजनीति में आऊं या न आऊं से शुरू होकर अब तक के उनके राजनीतिक करियर के हर मोड़ पर देखा जा सकता है। कभी वे बाहें चढ़ा लेते हैं तो कभी एकदम से ठंडे पड़ जाते हैं। कभी खूब बोलते हैं, कभी चुप लगा जाते हैं। कभी दलितों के घर खाना खाने लगते हैं कभी ब्राम्हण-ब्राम्हण करने लगते हैं।
कांग्रेस के वार रूम में प्रशांत किशोर से मीटिंग ख़त्म करने के बाद वे कुर्ते की बाहें चढ़ाते हुए मेरी ओर आए तो मैं थोड़ा हकबकाया मगर जब उन्होंने मुस्कराते हुए कहा कि चलिए लॉन में बात करते हैं, क्योंकि दीवारों के भी कान होते हैं, तो मुझे थोड़ी राहत मिली। लॉन के एक कोने में खड़े होकर मैंने सवाल शुरू किए।
राहुल जी, पूरा देश कन्फ्यूज है कि आख़िर गाँधीजी की हत्या के मामले में संघ की भूमिका को लेकर आपका स्टैंड क्या है? आप उसे दोषी मानते हैं या नहीं?
इसमे कन्फ्यूजन की तो कोई गुंज़ाइश ही नहीं है। मैंने तो कोर्ट में स्पष्ट कहा है कि गाँधी की हत्या आरएसएस के लोगों ने की थी।
तो आप नहीं मानते कि संघ ने गाँधी की हत्या करवाई?
मैं ऐसा तो नहीं कह रहा। अगर किसी संगठन के लोग कोई अच्छा या बुरा काम करेंगे तो क्या उसे उनसे अलग किया जा सकता है? नहीं किया जा सकता तो फिर इस मामले को भी इसी तरह देखा जाना चाहिए।
आपके कहने का मतलब है कि गाँधी का हत्या आरएसएस के लोगों ने की थी इसलिए उसे भी दोषी माना जा सकता है?
आप अपने शब्द मेरे मुँह में डालने की कोशिश मत कीजिए। मैंने जो कहा है वह बिल्कुल साफ़ है।
साफ़ नहीं है इसलिए पूछना पड़ रहा है। लोगों का मानना है कि आप कोर्ट के डर से इस तरह के गोलमोल बयान दे रहे हैं?
इसमें डरने की क्या बात है? मैंने जो कहा था उसका वीडियो आप देख सकते हैं और मैं कह रहा हूं कि अपने कहे पर कायम हूं तो इससे ज़्यादा आप क्या चाहते हैं? मैं अपना सीना चीरकर तो दिखा नहीं सकता।
मुझे सीधी सी बात ये बताइए कि आप ये मानते हैं कि नहीं कि संघ ने गाँधी की हत्या की साज़िश रची, उन्हें मरवाया?
देखिए जिस चीज़ के तमाम सबूत मौजूद हों, उनके बारे में आपको मुझसे सवाल नहीं करना चाहिए। मीडिया वाले आजकल होम वर्क बिल्कुल नहीं करते। वे चाहते हैं सब पका-पकाया मिल जाए। आप संग्रहालयों में जाइए, हत्या से जुड़े सभी तथ्यों को खँगालिए, आपको पता चल जाएगा कि क्या हुआ था, किसने किया था।
आपको भी तो आपकी पार्टी ने कुछ बताया ही होगा इस बारे में? आपने भी कुछ पढा-गुना होगा इस बारे में? आख़िर आपका ये नज़रिया कैसे बना कि आरएसएस के लोगों ने गाँधी की हत्या की थी?
देखिए कुछ चीज़ें तो सब जानते हैं। जैसे नाथूराम गोडसे और उसका भाई दोनों आरएसएस के सदस्य थे। दोनो की विचारधारा भी आरएसएस वाली ही थी। आरएसएस गाँधी का विरोधी था ये भी सब जानते हैं। गाँधी की हत्या के बाद आरएसएस के लोगों ने मिठाईयाँ बाँटी थीं, इसके प्रमाण भी मौजूद हैं। तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल की संघ प्रमुख के नाम चिट्ठी पढ़ लीजिए आपको बहुत सारी जानकारी उसमें मिल जाएगी। इसके अलावा आप चाहें तो ये भी पता कर सकते हैं कि गाँधी के हत्यारों को बचाने और कानूनी मदद देने के लिए किस संगठन के लोगों ने बढ़-चढ़कर चंदा इकट्ठा किया था और वकील खड़े किए थे।
लेकिन इससे ये कहां साबित हो जाता है कि आरएसएस का इन्वाल्वमेंट गाँधी की हत्या में था?
अव्वल तो आपको मैं बता दूं कि आरएसएस के कई नेताओं ने गाँधी की हत्या को गाँधी वध कहा था। इसका मतलब तो आप जानते ही हैं। फिर मैंने कब कहा कि संघ गाँधी की हत्या में शामिल था। लेकिन ये तो ऐतिहासिक सच है कि संघ के नेता गाँधी के ख़िलाफ़ थे, उनके बारे में ज़हर उगलते रहते थे। ख़ास तौर पर देश के बँटवारे के समय तो वे सारी सीमाएं लाँघ चुके थे। इस सबसे गाँधी से नफ़रत करने वाले संघ के लोगों को उनकी हत्या करने की प्रेरणा मिली। इसलिए माहौल बनाने का दोषी तो संघ है ही न। आपको पता ही होगा कि गाँधी की हत्या के तीन प्रयास पहले भी किए जा चुके थे, मगर सौभाग्य से बापू बच गए।
जब आपको इतना सब पता है और इतने विश्वास से कह रहे हैं तो फिर साफ-साफ़ बोलने से कतरा क्यों रहे हैं?
देखिए काँग्रेस पार्टी बहुत क्रिटिकल फेज़ से गुज़र रही है और हम लोग नहीं चाहते कि बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोई ऐसा मौक़ा दें जिससे वह हमें और कमज़ोर कर सकें। वैसे जब सबको पता ही है कि गाँधी का मर्डर संघ ने किया या नहीं किया इसलिए इस बारे में मेरे कहने की कोई ज़रूरत नहीं है।
आपके बदले हुए रुख़ से आरएसएस के हौसले बढ़ गए हैं। अब वह आपसे माफ़ी माँगने के लिए और भविष्य में संघ के बारे में इस तरह के बयान न देने के लिए कह रही है?
संघ का तो चरित्र ही यही है। वह ग़लत काम करता है और फिर दूसरों पर दबाव भी बनाने की कोशिश करता है। आप देख लीजिए इस समय वह कैसे बार-बार पलटी खा रहा है। पहले किसी विवादास्पद मसले को हवा देता है और फिर धीरे से उस पर पानी छिड़कने का नाटक करने लगता है। लेकिन उसकी इच्छाएं मैं पूरी नही करने वाला। वह जो जाल बिछा रहा है मैं उसे समझ रहा हूँ। वह चाहता है कि मैं हमेशा के लिए उसे गाँधी की हत्या के मामले से मुक्त कर दूँ। लेकिन उसकी ये ख्वाहिश कभी पूरी नहीं होगी।
संघ ये भी कह रहा है कि जिस तरह से आप आरएसएस को दोषी बता रहे हैं तो इस तर्क से तो अगर काँग्रेस का कोई आदमी ग़लत काम करता है तो उसके लिए पूरी पार्टी को दोषी मान लिया जाएगा?
चलिए उन्होंने इतना तो माना कि हत्यारे उनके लोग ही थे। उनके हमले में ही उनकी आत्मस्वीकृति भी आप देख सकते हैं। क्या इसके बाद कुछ कहने-सुनने के लिए रह जाता है? मेरे खयाल से नहीं। जहां तक उनके प्रश्न का सवाल है तो इसका जवाब ये है कि ग़लत काम तो एक या कुछ व्यक्ति ही करते हैं, मगर वे जिन संगठनों और व्यक्तियों से जुड़े होते हैं वे भी उनके कठघरे मे खड़े किए जाते हैं। उन पर उँगलियाँ ही नहीं उठतीं, बल्कि उनकी भूमिका भी होती है। आतंकवादी वारदातों को ही ले लीजिए। करते कुछ लोग हैं मगर नाम लिया जाता है अल कायदा, लश्करे तैयबा, हरकत उल अंसार आईएस आदि का।
हाँ जैसे कि इमर्जेंसी और चौरासी के दंगों के लिए कांग्रेस को?
(हिचकिचाते हुए) हाँ,...नहीं...नहीं...दोनों मामले अलग तरह के हैं।
मैं वापस उसी मुद्दे पर लौटता हूँ। ये बताइए कि आप थोड़ी हिम्मत दिखाकर वो सब कह क्यों नहीं देते जो आपके मन में है? हो सकता है कि इसकी वजह से आपको जेल जाना पड़े मगर संभव है कि आपकी पार्टी भी ज़िंदा हो जाए?
मैं तो तैयार था मगर क्या करूँ पार्टी तैयार नही है।
पार्टी तैयार नही है या परिवार?
आपको तो पता ही है कि काँग्रेस में पार्टी ही परिवार है और परिवार ही पार्टी। अब अगर ममा नहीं चाहेंगी तो मैं क्या कर सकता हूं?
आप पार्टी के उपाध्यक्ष हैं, अध्यक्ष बनने वाले हैं....आपको क्या खुद फ़ैसला नहीं करना चाहिए?
आप ठीक कहते हैं, लेकिन अभी मुझे बहुत कुछ सीखना है न।
आपने पार्टी कार्यकर्ताओं को भी निराश कर दिया है। वे तो उम्मीद लगाए बैठे थे कि इस बार आप आरएसएस से दो-दो हाथ करके रहेंगे और वे भी इस संघर्ष मे आपके साथ जुझेंगे?
मेरी उनके साथ गहरी हमदर्दी है। लेकिन उन्हें मेरी तरफ न देखकर अपने स्तर पर स्ट्रगल करना चाहिए। उनके स्ट्रगल से ही पार्टी मज़बूत बनेगी, उसमे नई जान आएगी।
लेकिन आप संघर्ष नहीं करेंगे, जोखिम नहीं लेंगे?
देखिए क्या है कि मोदी एंड कंपनी से तो मैं पंगा ले सकता हूं, क्योंकि अगर वे कुछ करेंगे तो हम राजनीतिक मुद्दा बनाकर लड़ाई शुरू कर सकते हैं। मगर यदि अदालत ने नाराज़ होकर कुछ कर दिया तो पार्टी कुछ कर नहीं पाएगी। इसलिए ये गोलमोल स्टैंड ही सही है।
मुझे समझ में आ गया कि राहुल गाँधी पस-ओ-पेश में हैं। वे बोलना भी चाहते हैं और जोखिम भी नहीं लेना चाहते। वे दूसरे नेताओं की तरह बात करना भी सीख रहे हैं, इसलिए इशारों में जो कहा जा सकता था उन्होंने कह दिया। अब इससे ज़्यादा मग़मारी करना बेकार है। इसलिए मैंने उन्हें खुल्लमखुल्ला ब्राम्हणवादी जातिवाद आज़माने के लिए बिना मन से बधाई दी और चला आया।
Written by-डॉ. मुकेश कुमार
वैधानिक चेतावनी - ये व्यंग्यात्मक शैली में लिखा गया काल्पनिक इंटरव्यू है। कृपया इसे इसी नज़रिए से पढ़ें।
संघ ने गाँधी की हत्या की या नहीं ये सबको पता है-राहुल गाँधी
Everyone knows weather Sangh killed Gandhi or not- Rahul Gandh