आग


आग से गल जाती हूँ
और नए-नए साँचे में ढालती हूँ अपने आपको
कभी-कभी बहुत दिनों तक
घुसी रहती हूँ
आग के भीतर ही।

ठिठुरन भरी रातों के लिए
नए-नए सूरज बनाती हूँ
आँचल में बाँधकर रखती हूँ अँगारे
बालों में
रोशनी
karabi-deka-hazarika-deshkaal

आग से खेलना मेरा पुराना शौक है
ह्दय की गुफा में
रोशनी और ताप
जल उठती हूँ बारंबार
और उठती हैं आग की लपटें
शीत या वसंत-



हर ऋतु में,
लू बनकर बहती है आग
जलती रहती हूँ दिन-प्रतिदिन
गल जाती हूँ
आग से गढ़ती रहती हूँ नए-नए रूप
आग है अंदर-बाहर
चारों तरफ।

अन्य कवितायेँ :
केश खुले ही रहने दो याज्ञसेनी

पिछले तीन-चार दशकों में असमिया कविता ने नए रंग-रूप अख्तियार किये हैं और उनका आस्वाद भी बदला है| मगर कविता में विद्रोह कि जो परम्परा नए कवियों को विरासत में मिली थी वह मूल भावना बनकर उसमें न केवल मौजूद है बल्कि और भी मज़बूत हुई है| यहाँ प्रस्तुत है पांच महत्वपूर्ण कवियों की रचनाएँ. असमिया से अनुवाद पापोरी गोस्वामी ने किया है ।





Previous Post Next Post