आनंदी बेन का दुखी चेहरा देखकर ये मत समझिएगा कि वे इस्तीफा ले लिए जाने से दुखी हैं। बेशक कुर्सी जाने का ग़म तो उन्हें है ही, मगर वे वैसे भी बचपन से ही दुखियारी नारी रही हैं। बचपन में उनकी दुखी सूरत को देखकर ही उनके माता-पिता ने उनका नाम आनंदी रख दिया था। सोचा था कि कम से कम अपना नाम सार्थक करने के लिए ही हँसने-मुस्कराने लगेगी, मगर ऐसा हो न सका। अपने उसी दुखी चेहरे के साथ वे पचहत्तर की होने वाली हैं।
वैसे ये भी सही है कि इस्तीफा देने के बाद से आनंदी बेन पटेल का दुख और तनाव काफी बढ़ गया है। दुख इस बात का कि इतने सालों से सेवा कर रही थीं और हाईकमान ने दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकालकर बाहर फेंक दिया। हालाँकि काफी दिनों से हटने-हटाने का खेल चल रहा था। वे टाल रही थीं और हाई कमान उन्हें लगातार अल्टीमेटम दिए जा रहा था। बहरहाल, ऊपरवालों की बात न मानने का तो सवाल ही नहीं उठता ख़ास तौर पर जब वहाँ मोदी और शाह मौजूद हों, इसलिए आख़िरकार हटना पड़ा। अब इंतज़ार कर रही हैं कि अगली पोस्टिंग कहाँ की मिलती है यानी उन्हें कहाँ का राज्यपाल बनाया जाता है। क्या पता राज्यपाल बनने के बाद शायद आनंदी बेन को आनंद मिल जाए।
मेरे सिर पर भगवा साफा बंधा था और माथे पर तिलक भी लगा था। मुझे पता था कि ये सब नहीं करूँगा तो आनंदी खुलकर बात नहीं करेंगी। मिलने पर उन्होंने पूछा- तमे केम? मैंने जवाब में कहा-मजा मा। इसके बाद मैंने हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्र के बारे में कुछ सकारात्मक बातें कीं जिससे वे आश्वस्त हो गईं कि आपणा मानुष छे। इसके बाद मैंने वार्तालाप शुरू किया-
आनंदीजी, दो साल में ही आपने गुजरात को ऐसी जगह ले जाकर खड़ा कर दिया कि पूरी पार्टी की चूलें हिल गई हैं। देश भर मे उसकी किरकिरी हो रही है?
इसमें मने दोष नथी छे। छूँ तो मोदीजी की चरण-पादुका रखके राज चला रही थी। रिमोट कंट्रोल तो दिल्ली मे ही था। छूँ तो वही करती थी जो रिमोट कंट्रोल करवाता था।
अब आप अपनी नाकामियों को मोदी-शाह पर मढ़ने की कोशिश कर रही हैं?
नथी बिल्कुल नथी। पूरा गुजरात जानता छे कि छूँ मुख्यमंत्री ज़रूर थी, मगर राज किसी और का चलता था। इसलिए छूँ को दोष देना ठीक नई छे।
आप बहुत कमज़ोर प्रशासक साबित हुई हैं?
सही बात छे। जब छूँ दूसरे के कंट्रोल में थी तो मने किसी को क्या कंट्रोल करती। मैं दूसरों की तरह डिक्टेटर थोड़ी छूँ। और छूँ चाहूं भी तो नई बन सकती छूं, क्योंकि छूं तो रिमोट कंट्रोल से चलने वाली मुख्यमंत्री थी। किंतु मैं इतना कहूँगी कि मने पूरी कोशिश की।
देखिए, पाटीदार आंदोलन को आप कंट्रोल नहीं कर पाईं? दलितों पर अत्याचार हुए और आप समय पर क़दम नहीं उठा सकीं?
ये सही बात नहीं छे। दिल्ली से मने जो भी बोला गया मने किया। पहले बोला गया कि पटेलों को नाराज़ नथी करना, वो हमारी पार्टी के रीढ़ की हड्डी छे। फिर बोला कि ये हार्दिक पटेल हमारा वोट बैंक तोड़ रहा छे इसलिए उसे गिरफ़्तार करो। मने सब किया। पटेल होते हुए भी किया।
और दलितों को पीटने के मामले में भी क्या यही हुआ?
तमी ठीक समझे छे। पहले मने कहा गया कि सवर्णों को नाराज़ नथी करना छे। उनको चुप करा दो बस। मने कोशिश की मगर दलित नथी माने छे। इसी में बात बिगड़ गई छे।
लेकिन सब तो आपको ही दोषी मान रहे हैं? इसीलिए आपका इस्तीफा भी ले लिया गया?
आप ठीक कहते हो। मगर छूँ क्या करती? राजनीति में जिसके पास ताक़त होती छे, वही सही होता छे। मने तो बस सजावटी मुख्यमंत्री थी, प़ॉवर-सावर कुछ नईं थे।
लेकिन आख़िर ऐसा हो क्यूं रहा है? एकदम से इतना असंतोष क्यों सामने आ रहा है?
इसमें परेशान होने की बात नई छे। हमने गुजरात को मॉडल हिंदू स्टेट बनाया छे। अब हिंदू राज्य में ये सब तो होना ही छे।
क्या मतलब?
मतलब ये छे कि तमी तो जानते हो कि पिछले पंद्रह साल से गुजरात संघ की प्रयोगशाला छे। भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के वास्ते सारे प्रयोग यहीं हो रहे हैं। हमारे हिंदू ह्रदय सम्राट ने यहाँ ढेर सारे प्रयोग किए छे।
कुछ उदाहरण देकर बताएँगी कि आप लोगों ने कौन से प्रयोग किए?
प्रयोग तो बहुत किए, गिनाने बैठेंगे तो पता नहीं कितने दिन लग जाएंगे? गोधरा कांड के बाद से ही शुरू हो गए थे। हमने यहां हिंदुओं का सशक्तीकरण किया और सिर पर चढ़ गए अल्पसंख्यकों को उनकी औकात में लाए।
हिंदुओं का सशक्तीकरम कैसे किया?
पहले तो हमने जितने भी हिंदुत्ववादी संगठन है उनको ताक़त दी, खुली छूट दी कि हिंदू राज्य बनाने के लिए जो चाहे करो, सरकार तुम्हारे साथ है, प्रशासन साथ है, पुलिस भी साथ है। इससे संघ, वीएचपी, बजरंग दल, शिवसेना, गौरक्षा दल सब ताकतवर हो गए। उन्होंने कमान सँभाल ली।
और क्या किया?
हमने हिंदुत्व को मज़बूत करने वाले मुद्दे उठाने शुरू कर दिए। इसके तहत ग़ैर हिंदुओं के बहिष्कार से लेकर गौरक्षा तक के अभियान छेड़ दिए गए। जगह-जगह ऐसे दल बन गए और वे अपना काम करने लगे। हमने इसके लिए उन हिंदुओं को भी नहीं बख्शा जो हमारी राह में बाधाएं खड़ी कर रहे हैं।
क्या दलितों को भी निशाना बनाना इसमें शामिल था?
देखिए दलित तो हिंदुओं के अभिन्न हिस्सा हैं, लेकिन वे भूल जाते हैं कि वर्ण व्यवस्था में सबसे नीचे हैं। सवर्णों को ये सख़्त नापसंद है और ये स्वाभाविक भी है। सब अगर हदें तोड़ने लगेंगे तो टकराव तो होगा ही। आप जो सामाजिक वैमनस्य देख रहे हैं वह इसी वजह से पैदा हुआ।
लेकिन दलित तो मरे हुए जानवरों की सफाई का काम करते हैं, उन्हें क्यो निशाना बनाया गया?
देखिए, हर अभियान में छोटी-मोटी चूक तो हो ही जाती हैं। हम बीस साल से तो इस पर कामयाबी के साथ अमल कर रहे हैं। पूरे हिंदू राज्य में गौरक्षा के संगठन हैं। वे अच्छे से काम कर रहे हैं। ये तो सोशल मीडिया ने इसे तूल देकर विवाद खड़ा कर दिया नहीं तो ये छोटी-मोटी घटना बनकर रह जाती।
आप इसे छोटी-मोटी घटना मानती हैं?
चलिए आप कहते हैं तो बड़ी मान लेती छूं। लेकिन अब जो दलित कर रहे हैं वो ग़लत कर रहे हैं। उन्हें आदोलन वगैरा छोड़कर अपने काम पर लग जाना चाहिए, नहीं तो बीमारियाँ फैलने लगेंगी और अगर ऐसा हुआ तो सवर्ण उन्हें कभी माफ़ नहीं करेंगे।
आपका मतलब है कि दलितों को सवर्णों से दबकर रहना चाहिए?
हाँ बिल्कुल। गुजरात मॉडल यही कहता छे। हिंदू धर्म के अनुसार भी यही उचित छे।
पटेलों को खुश करने के लिए आपने सवर्णों को आर्थिक आधार पर दस फ़ीसदी आरक्षण देने का आपका फैसला किया था मगर हाई कोर्ट ने उसे भी उलट दिया है?
वो तो होना ही था। मने पता था, मगर उस समय पाटीदारों को शांत करने के लिए कुछ तो करना ही था न। अब पटेलों को पता चल गया होगा कि वे क्या माँग रहे हैं और वो क्यों नहीं हो सकता। असल में उन्हें आरक्षण के खिलाफ़ आंदोलन चलाकर संसद से कानून पारित करवाना चाहिए।
अन्य FAKEएनकाउंटर :
आनंदी जी आपकी सरकार ने गुजरात की तस्वीर में ढेर सारे काले रंग भर दिए, जिससे भगवा भी सबको स्याह दिखने लगा है?
छूँ इस बारे में कुछ कहना नहीं चाहती, लेकिन इतना तो साफ छे कि इसमें मेरा दोष इतना नथी छे जितना मेरे से पहले वाले शासकों का।
आप अब भी काँग्रेस को दोष देंगी जबकि आप लोगों को राज करते हुए बीस साल हो रहे हैं?
छूँ काँग्रेस की बात नहीं कर रही, अपने पूर्ववर्ती की बात कर रही छूँ।
यानी आप मोदीजी पर आरोप लगा रही हैं?
छूँ किसी पर आरोप नहीं ले रही, मगर इतना कहूँगी कि ये जो कुछ पिछले दो साल में हुआ छे और आगे होगा उसके लिए पहले के पंद्रह साल ज़िम्मेदार छे। सारा ठीकरा मेरे सिर मत फोड़िए।
आप अपनी नाकामियाँ छिपाने के लिए दूसरों पर दोष मढ़ने का काम कर रही हैं
छूँ पूरी विनम्रता से कहना चाहती छूँ कि आपको समस्याओं की जड़ में जाना पड़ेगा। बोया बीज बबूल का तो आम कहा से होय।
यानी आप ये कह रही हैं कि बीजेपी सरकार की नीतियाँ ग़लत थीं?
ये तो मानना ही पड़ेगा कि पिछले बीस साल में हमने जो कुछ किया उसी का परिणाम सामने आ रहा छे?
क्या आप ये मानेंगी कि गुजरात में हिंदुत्व का मॉडल फेल हो चुका है?
बिल्कुल नथी। बल्कि गुजरात हिंदू राज्य बन चुका छे और अब मोदीजी पूरे देश को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं। यहीं के प्रयोग दूसरे राज्यों में आज़माए जा रहे हैं और भगवान ने चाहा तो हमें जल्दी ही अच्छे परिणाम देखने को मिलेंगे।
ये व्यंग्यात्मक शैली में लिखा गया काल्पनिक इंटरव्यू है। इसे इसी रूप में पढ़ें।