स्वतंत्र भारत की राजनीति में ये पहला मौका है जब किसी प्रधानमंत्री ने इस तरह का बयान दिया है कि चाहो तो उन्हें गोली मार दो, मगर दलित भाईयों को बख्श दो। किसी भी देश में कभी ऐसी नौबत नहीं आनी चाहिए और अगर आती है तो ये बहुत चिंता की बात है। ये बयान प्रधानमंत्री की मजबूरी को प्रदर्शित करने वाला है। इससे ज़ाहिर होता है कि वे उन लोगों के खिलाफ़ कुछ कर नहीं पा रहे जो उनके दलित भाईयों पर घनघोर अत्याचार कर रहे हैं।
सवाल उठता है कि देश और दुनिया में खुद को शक्तिशाली देश का शक्तिशाली प्रधानमंत्री प्रचारित करने वाला व्यक्ति ऐसा क्यों कर रहा है? जिन गौ रक्षकों को वह असामाजिक तत्व घोषित कर रहा है उनके ख़िलाफ़ कड़े क़दम उठाने से बच क्यों रहा है?
कारण बहुत साफ़ हैं। उन्हें डर सता रहा है कि अगर दलित नाराज हो गए तो जिस हिंदुत्व की राजनीति को वे आगे बढा रहे हैं उसका क्या होगा? और ये तो दिख ही रहा है कि दलित बुरी तरह नाराज़ हैं। उनके गृह राज्य में तो दलित असंतोष आंदोलन की शक्ल अख़्तियार कर चुका है। अन्य बीजेपी शासित राज्यों में भी दलित अत्याचारों की घटनाओं में इज़ाफ़ा हुआ है। पिछले दो साल के मोदी राज में दलित अत्याचार की घटनाओं में करीब चालीस फ़ीसदी की बढोतरी हुई है।
हिंदुत्व ब्रिगेड इस दलित विरोधी मुहिम में अगुआई कर रही है। वीएचपी, बजरंग दल, शिवसेना और गौरक्षक सेना ने बीफ और गौ हत्या के बहाने आतंक राज कायम कर लिया है। वे नफरत और हिंसा फैला रहे हैं और इसका संदेश पूरे मुल्क के दलितों तक जा रहा है। यही नहीं, भारतीय मीडिया द्वारा परदा डालने के बावजूद बातें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठने लगी हैं। विदेशी अख़बार बड़ी-बड़ी रिपोर्ट छापने लगे हैं। दुनिया में अपना जलवा कायम करने की कोशिश में लगे पीएण के लिए ये शर्मिंदा करने वाली बात है।
लेकिन शर्मिंदगी उतनी बड़ी वजह नहीं है जितना बड़ा ये डर कि दलितों का विरोध उन्हे और उनकी पार्टी के लिए बहुत बड़ी समस्या बन सकता है। प्रधानमंत्री और बीजेपी नेतृत्व बुरी तरह घबरा गया है इसलिए इस तरह की प्रतिक्रिया कर रहा है।
अगर वे डरे न होते तो दो दिनों में दो बार गौ रक्षकों के लिए इस तरह की कड़ी भाषा का इस्तेमाल न करते। जो लोग कल तक हिंदू राष्ट्र के अभियान की रीढ़ थे उन्हें असामाजिक तत्व न घोषित किया जाता। ये न कहा जाता कि रात के अँधेरे में वे कुछ हैं और दिन में कुछ और।
सब जानते हैं कि आने वाले चुनावों में दलितों की भूमिका महत्वपूर्ण रहने वाली है। उत्तरप्रदेश में तो ख़ास तौर पर। यहाँ बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती मायावती से मिल रही है। गौ रक्षकों ने दलितों पर अत्याचार का सिलसिला चलाकर उन्हें नई ताक़त दे दी है। उत्तरप्रदेश बीजेपी के उपाध्यक्ष दया शंकर सिंह ने भी उनकी तुलना वेश्या से करके दलितों में गुस्सा भर दिया था।
अमित शाह एंड कंपनी उत्तरप्रदेश में दलितों को तोड़ने के लिए बिसात बिछा रहे थे। उन्हें लग रहा था कि ग़ैर जाटव वोट अगर उनके साथ आ जाएं तो मायावती का जनाधार खिसक जाएगा और बीजेपी की जीत सुनिश्चित हो जाएगी। लेकिन दयाशंकर सिंह और गौ रक्षकों ने सब गुड़ गोबर कर दिया।
अब मोदीजी गौ रक्षकों को गरियाकर और दलितों को पुचकार कर अपनी राजनीति को फिर से पटरी पर लाना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि सर्वोच्च स्तर से की गई इस तरह की अपील दलितों को ज़रूर पिघला देगी और उनके तेवर ढीले पड़ जाएंगे। लेकिन ऐसा दिखलाई नहीं देता। इसकी सबसे बड़ी वजह तो यही है कि ये बात सबकी समझ मे आ रही है कि रोहिल वेमुला की मौत पर चुप रहने वाले पीएम ने आज इस तरह मुँह क्यों खोला।
रोहित की मौत के बाद उनकी माँ के साथ बुरा बर्ताव किया गया और हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में दलितों के साथ दुर्व्यहार भी जारी रहा, मगर केंद्र सरकार ने कुछ नहीं किया। वह विद्यार्थी परिषद के एजेंडे को ही आगे बढ़ाती रही। रोहित की माँ ने तो बाद में हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म भी स्वीकार कर लिया ।
इसके अलावा भी ऐसे बहुत से प्रसंग आए जिनसे ये ज़ाहिर हुआ कि दलितों के मामले में प्रधानमंत्री, उनकी सरकार और संघ परिवार का रवैया नकारात्मक है। मसलन, आरक्षण का सवाल ही ले लीजिए। दलित समाज आरक्षण को अपने विकास की एक महत्वपूर्ण सीढ़ी मानता है मगर ये बात अब स्पष्ट हो चुकी है कि संघ परिवार आरक्षण को ख़त्म नहीं तो कमज़ोर करने की हर संभव कोशिश कर रहा है। ऐसे में दलितों का गुस्सा और अविश्वास कैसे कम हो सकता है।
इसलिए ये तय है कि पीएम के ज़बानी जमा-खर्च से दलित अब बीजेपी के पास नहीं लौटने वाले। वे अब अपना अलग होने का मन बना चुके हैं। वे देख रहे हैं कि अगर अब वे संगठित होकर ब्राम्हणवादी हिंदुत्व के खिलाफ़ नहीं खड़े होंगे तो उन्हें दबाने-कुचलने का सिलसिला बढ़ता चला जाएगा।
बल्कि पीएम ने अपने समर्थकों को असामाजिक तत्व करार देकर उन्हे भी नाराज़ करलिया है। वीएपी और हिंदू महासभा ने उन्हें चेतावनी दे ही दी है कि वे उन्हें इसके परिणाम भुगतने पड़ेगे। हालाँकि वे मैनेज हो जाएंगे क्योंकि उनके पास अपनी सरकार और पार्टी का साथ देने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। मगर इतना तय है कि उनका उत्साह कम हो जाएगा और इसी से काफी नुकसान हो सकता है।
लब्बोलुआब ये कि मोदी के बयानों से संघ परिवार को दोहरी चोट पड़ेगी। हिंदुओं को एक करने का उसका अभियान फेल होगा और उसके कैडर भी खफ़ा हो जाएंगे। चुनावों में इसका जो असर पड़ सकता है उसका अनुमान लगाना अब मुश्किल नहीं है।