अमर सिंह के सितारे नोट फॉर वोट कांड के बाद से गर्दिश में है। पहले तिहाड़ की हवा खाई, फिर सेहत ने रुलाया। कई दरवाज़े खटखटाए मगर किसी ने गले लगाना तो दूर खिड़कियाँ तक नहीं खोलीं। उन्हें उम्मीद थी कि समाजवादी पार्टी में वापसी और फिर नेताजी की कृपा से राज्यसभा की सदस्यता मिलने के बाद दिन फिरेंगे, मगर हालत और भी खराब हो गए हैं। आलम ये है कि पार्टी में उन्हें हर कोई गरिया रहा है। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने तो उन्हें बाहर का आदमी कहकर इशारों-इशारों बाहर का रास्ता दिखाने की माँग कर डाली है, मगर रामगोपाल यादव और आज़म खान ने तो कोई कसर बाक़ी ही नहीं रखी। आज़म खाँ तो खुल्लमखुल्ला चोर कह रहे हैं।
ज़ाहिर है कि इस समय अमर सिंह इतने दुखी हैं कि अगर कोई हमदर्दी के दो बोल बोल देता है तो वे उसके कंधे पर सिर रखकर फफक-फफककर रोने लगते हैं। मैंने भी जब उन्हें सांत्वना देने की कोशिश की तो वे एकदम से पिघल गए और अपना दुखडा बयान करने लगे। बहरहाल, मुझे तो उनसे सपा मे चले घमासान के बारे में बात करनी थी इसलिए प्रसंग बदला और शुरू हो गया।
अमर सिंह जी, सपा का संकट तो फिलहाल सुलझा लिया गया लगता है, मगर आपकी दुर्गति हो गई है। आप सबसे बड़े खलनायक बनकर उभरे हैं?
वक़्त-वक़्त की बात है। कभी मैं हीरो होता था, मगर अब खलनायक बना दिया गया हूँ। चाचा भतीजा आपस में झगड़ रहे हैं मगर ठीकरा मेरे सिर पर फोड़ रहे हैं। कह रहे हैं बाहर वाले ने कराया।
अखिलेश तो आपके खिलाफ़ कार्रवाई करने की बात तक कर रहे हैं?
हाँ, आज हम इतने बुरे हो गए कि हमें बाहर करने की बात कर रहे हैं अखिलेश बाबू। यहाँ तक कि हमको अंकल तक मानने को तैयार नहीं हैं। बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे में रहते हैं हम।
ये बताइए अब क्या होगा?
होगा क्या, घमासान। न चाचा झुकने को तैयार है और न ही भतीजा। रही बात नेताजी की तो उन्हें खुद ही पता नहीं रहता कि वे क्या कर रहे हैं। किसी तरह कुनबे को जोड़े रखने की कोशिश कर रहे हैं चुनाव तक, मगर क्या होगा पता नहीं। चुनाव बाद तो जूतम पैजार होना तय लग रहा है। हारे तब तो होना ही है, जीते तो बिल्कुल पक्का।
आप हारने की बात क्यों कर रहे हैं?
इसलिए कि मुझे इसी के आसार दिख रहे हैं। ठीक चुनाव के पहले इन लोगों ने जो नौटंकी कर डाली है, उसके बाद तो चांस बहुत कम हो गए हैं जीतने के। अब केवल यादव वोट बचा है और उसके दम पर यूपी फ़तह करना मुमकिन नहीं है।
ये बताइए कि आपने जिस पार्टी के लिए क्या कुछ नहीं किया, यहाँ तक कि जेल भी चले गए, वह आपके साथ कैसा सलूक कर रही है?
अब आप ही देख लीजिए मुकेशजी। आप तो गवाह हैं कि मैंने समाजवादी पार्टी को कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया था। पूरे देश में उसकी धूम मचा करती थी। बड़े-बड़े फिल्मी सितारों से लेकर उदयोगपति तक उसके कदमों में बिछे रहते थे, लेकिन आज उसका ये सिला दिया जा रहा है कि मुझे बाहर का आदमी, चोर और न जाने क्या-क्या कहा जा रहा है। मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं।
लेकिन पार्टी के नेता तो कह रहे हैं कि आपको खूब पहचान गए हैं। वे समाजवादी पार्टी के चरित्र को बरबाद करने के लिए आप ही को दोषी बताते हैं?
हाँ अब तो सब यही कहेंगे। उस समय तो सब मेरे नाम की माला जपते थे। सबको लगता था कि अमरसिंह ने पार्टी को कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया। मुलायम सिंह को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनवा दिया। मेरे दरबार में हाज़िरी बजाने को तरसते थे। मुझसे अपने पर्सनल काम और जाने क्या-क्या करवाते थे। आज जब मैं कमज़ोर हो गया हूँ तो मुझे दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाला जा रहा है।
लेकिन क्या सच नहीं है कि आपकी वजह से ही समाजवादी पार्टी समाजवाद के रास्ते से भटक गई, आपने उसे भ्रष्ट कर दिया वह कार्पोरेट समाजवाद के रास्ते पर चलने लगी, उस पर पूँजीपतियों का कब्ज़ा हो गया?
देखिए, मुझे न समाजवाद से मतलब था और न ही मैं समाजवादी था। हाँ पार्टी में था तो कभी लाल टोपी लगा लेता था, मगर इसका मतलब ये नहीं कि समाजवाद के ढोंग-धतूरे में मेरी कोई आस्था थी। मैं तो हमेशा से मुलायमवादी था और वह अब भी हूँ। रही बात भ्रष्टाचार की तो मैंने जो कुछ किया वह पार्टी और नेताजी के हित में किया। और मैं ये भी जानता हूँ कि मुझे भ्रष्ट बताने वाले कितने सदाचारी हैं। मेरा मुँह न खुलवाएं, नहीं तो एक-एक आदमी नंगा हो जाएगा। सबका कच्चा चिट्ठा मेरे पास है। नेताजी के एहसानों तले दबा हूँ इसलिए चुप हूँ।
लेकिन रामगोपाल तो कह रहे हैं कि जो समाजवादी नहीं है वह मुलायमवादी भी नहीं हो सकता?
रामगोपाल तो मुझे भाड़ में चले जाने के लिए भी कह रहे हैं। लेकिन मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि वे ये बात आज क्यों कह रहे हैं। इतने साल तक उन्हें किसने रोक रखा था ये सब बोलने से। वैसे मैं उनसे पूछना चाहता हूँ कि क्या वे समाजवादी हैं? कहना नहीं चाहता मगर सचाई तो ये है कि खुद मुलायम भी समाजवादी नहीं हैं, वे कब के वंशवादी हो चुके हैं। भारत में समाजवादियों का यही चरित्र है।
वे तो ये भी कह रहे हैं कि आप नेताजी को गुमराह कर रहे हैं, क्योंकि वे सरल स्वभाव के हैं?
ये तो बहाना है मुझ पर हमला करने का। साठ साल से सियासत कर रहे नेताजी इतने बेवकूफ़ नहीं हैं कि कोई भी उन्हें भटका दे। वैसे ये भी अच्छा मज़ाक है। नेताजी कबसे सरल स्वभाव के हो गए? खाँटी नेता हैं हिंदी पट्टी के। सारे दाँव-पेंच उन्हें आते हैं। हाँ बुढ़ाने के बाद सोचने की क्षमता ज़रूर कम हो गई है। पुत्रमोह भी विवेक के आड़े आ जाता है कभी-कभी।
लेकिन क्या ये सच नहीं है कि पार्टी में आप अपने एजेंडे की वजह से थे और हैं। रामगोपाल के शब्दों में कहें तो आपको अपने से मतलब था, पार्टी से नहीं?
मेरा एजेंडा साफ़ था। मैं चाहता था कि समाजवादी पार्टी इतनी ताक़तवर बने कि हर उद्योगपति उसको अपना समर्थन दे, पैसा दे और नेताजी देश के प्रधानमंत्री बनें और फिर उससे मुझे जो फ़ायदा हो सकता है वह लूँ। इसी के लिए मैंने फिल्मी सितारों और उद्योगपतियों का जाल बिछाया था। आखिर मोदीजी प्रधानमंत्री कैसे बने, यही सब करके तो। और आपको बता दूँ कि इसमें मैं कामयाब भी हो रहा था, बल्कि हो ही गया था। ये सब तो अतीत की बातें हैं, मगर इसलिए सुना रहा हूँ कि लोगों की यादाश्त बहुत कमज़ोर होती है। ख़ास तौर पर समाजवादियों की। वे बहुत जल्दी भूल जाते हैं किसी के योगदान को।
आप क्या नेताजी की तरफ इशारा कर रहे हैं?
मेरा इशारा किस ओर है आप बेहतर जानते हैं। नेताजी एहसानफरामोश नहीं हैं। वे जानते हैं कि मैंने उनके लिए क्या-क्या किया। उन्होंने ही मुझे वापस सपा में लिया और सांसद भी बनवाया, वर्ना सब तो विरोध में ही लगे हुए थे। कोई मुझे वापस नहीं आने देना चाहता था। राज्यसभा के लिए भी उन्हें अपनी पार्टी में कितनी जद्दोजहद की मैं ही जानता हूँ। मैं तो उनकी बात कर रहा हूँ जिन्हें मैंने जाने कितनी मौज़ करवाई मगर आज वे सीधे मुँह बात करने को राज़ी नहीं हैं। उल्टे मुझे खलनायक बनाने पर आमादा हैं।
क्या आपको नहीं लगता कि एक समय आप पर प़ॉवर का ऐसा गुरूर आ गया था कि आपने किसी को कुछ नहीं समझा और अब जब दूसरों को मौक़ा मिला है तो वे हिसाब चुकता कर रहे हैं?
हो सकता है आप ठीक कह रहे हों। सत्ता के साथ अहंकार आता ही है। मोदीजी पर आया है। आजकल हमारे अखिलेश बाबू पर भी सवार है। हालाँकि वह मेरे बेटे जैसा है, मगर उसके तेवर देखिए, मुझे बाहरी आदमी कह रहा है। मैंने नेताजी से उन्हीं के भले के लिए कुछ करने को कहा तो उसने मेरे ऊपर पलटवार कर दिया।
लेकिन आपने नेताजी से जो कुछ करने को कहा उससे तो सरकार हिल गई न, पार्टी में भूचाल आ गया?
अब इसका दोष भी मेरे सिर पड़ेगा? अरे भाई नेताजी बुढ़ा गए हैं, वे कब क्या कर बैठे या कह दें किसको पता है। अब उन्होंने रामगोपाल से कह दिया कि अखिलेश को फौरन पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाओ तो ये तो मैंने नहीं कहा था। किया किसी ने मगर हलाल मुझे किया जा रहा है। वैसे असल बात तो ये है कि ये चाचा भतीजा का झगड़ा है। दोंनों सत्ता और पार्टी पर कब्ज़ा करने के लिए आपस में गुत्थमगुत्था हो रहे हैं।
लेकिन दुखी तो आप भी हैं और ऐसा नहीं है कि आपने गोटियाँ नहीं चली होंगीं?
मैं दुखी हूँ इसमें कोई संदेह नहीं है। मेरी हालत उसके जैसी हो गई है जो न घर का होता है न घाट का। सब दुत्कारते रहते हैं। मेरी कोई सुनवाई ही नहीं है। कोई कुछ भी बोलता रहता है मेरे बारे में।
तो इस तरह आप कब तक बने रहेंगे?
जब तक नेताजी चाहेंगे, मैं तो उनकी वज़ह से हूँ, वर्ना कब का चला गया होता।
आपको लगता है कि इन दोनों की लड़ाई से आपका कुछ लाभ होगा?
मेरे नफ़ा नुकसान की छोड़िए, ये देखिए कि समाजवादी पार्टी बचेगी या नहीं। मैं तो कोई न कोई ठिकाना ढूँढ़ ही लूँगा। क्या पता बहिन मायावती ही तरस खाकर मुझे बुला लें। वे सत्ता में आने वाली हैं और उन्हें भी मेरे जैसे कलाकार की ज़रूरत पड़ेगी ही। प्रमोद महाजन के जाने के बाद बीजेपी में भी एक जगह खाली है। मोदीजी के लिए मैं काफी उपयोगी भी हो सकता हूँ।
इतने में जयाप्रदा आ गईं और अमर सिंह को दिलासा देने लगीं। मुझे लगा कि दो दुखियारों को अकेले छोड़ देना चाहिए। एक दूसरे को सांत्वना देंगे तो मन हल्का हो जाएगा इसलिए नमस्ते करके चला आया।
मेरा मुँह न खुलवाएं, एक-एक आदमी नंगा हो जाएगा-अमर सिंह
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मेरा मुँह न खुलवाएं, एक-एक आदमी नंगा हो जाएगा-अमर सिंह
Written by-डॉ. मुकेश कुमार
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वैधानिक चेतावनी - ये व्यंग्यात्मक शैली में लिखा गया काल्पनिक इंटरव्यू है। कृपया इसे इसी नज़रिए से पढ़ें।