सच है कि दुनिया का दारोगा बना अमरीका भी आतंकवाद पर अपने पालित-पूत पाकिस्तान को नसीहत देने लगा है। विश्व बिरादरी तो पहले से इस आतंकवाद की लानत-मलानत को अपना शगल बना चुकी है।
पुरानी कहावत है कि जब खुद पर बन आती है, तब आटे-दाल का भाव पता लगता है। दुनिया के ताकतवर देशों अमरीका, फ्रांस, जर्मनी और चीन आदि में जब इस दैत्य ने अपने पैर रखे तब जाकर उन्हें चिंता हुई। अब यह तो किसी से छिपा नहीं रहा कि सारी दुनिया को अपनी दहशत से कंपाने वाले बड़े से बड़े आतंकी संगठनों को किसने, कब-कब और कितनी खुराकें मुहैया कराई हैं।
अपने भगवान भोलेनाथ ने भी तो आतंक के पौराणिक पात्र भस्मासुर को वह शक्ति दे दी थी, आखिरकार जिसके भय से खुद उन्हें जान बचाकर भागना पड़ा। किस तरह उनकी जान बची थी, भक्तों को पता है। पौराणिक कथाएं अपने पीछे कितना सत्य और कितना गल्प छिपाए हैं, यहां यह विवेचना का विषय नहीं है। मुद्दा यह है कि आतंक का वह भस्मासुर इस समय फिर से समूची दुनिया को भस्म करने पर आमादा है।
अमरीका ही नहीं अभी भी बाहरी दुनिया के लिए कई मामलों में रहस्य बना चीन तक आतंक के उस राक्षस से सहमा है। यही कारण है कि चीन ने पिछले एक सप्ताह में दो बार करवट बदली। पहले उसने पाकिस्तान को साथ देने का भरोसा दिया। पाकिस्तानी मीडिया इस पर बल्लियों उछला। बिना देर किए पेइचिंग ने नया बयान दिया। भारत के साथ इस मसले पर तनाव की स्थिति में वह चुप रहेगा।
चलिये मान लेते हैं कि भारत ने आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान पर तीन तरफा हमला किया है। यह भी मान लेते हैं कि शायद भारत की अंतर्राष्ट्रीय मंच पर बढ़ती सक्रियता ने चीन को कुछ सोचने पर मजबूर किया होगा।
चीन के ताजा बयान ने शायद भूटान और बांग्लादेश जैसे छोटे पड़ोसी देशों को भी सार्क सम्मेलन में नहीं जाने को प्रोत्साहित किया होगा। अफगानिस्तान तो पाकिस्तान से काफी समय से खिंचाव जताता रहा है। वह भी सार्क सम्मेलन में भाग लेने नहीं जा रहा। भारत मान रहा है कि ये तीनों देश उसके समर्थन में हैं। अच्छा है।
इन सबके बावजूद बीते रविवार को मुहं-अंधेरे उड़ी में सेना के बेस कैंप पर हुए आतंकी हमले का छप्पन इंची सीना वाला जवाब अवतरित नहीं हुआ। इससे कहीं अधिक करारा जवाब तो मरहूम इंदिरा गांधी ने दिया था। पाकिस्तान के वजूद को ही आधा करके।
आज अगर खुद भगवा ध्वज वाहकों को इंदिरा गांधी याद आएं तो हैरत क्यों। पाकिस्तान के खिलाफ आर्थिक और रणनीतिक फैसला तो लेना ही होगा। देश अपनी सिंह-सी चौड़ी छाती वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर यूं ही उम्मीद भरी नजरों से नहीं देख रहा। इस तरह के छुप-छुप कर होने वाले कायराना आतंकी हमलों से आखिर कब तक हमारे जवान शहीद होते रहेंगे।
आतंक की उस विष-बेल को जड़ से खत्म करें तो कैसे, इस पर जोश में होश खोने से बचना भी होगा। लेकिन सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे, इस इंतजार में अपने शरीर के एक हिस्से के नासूर को सहते रहना कितना सही है, इसे भी विवेचित करना होगा। टीवी चैनलों से बेमतलब की चिंघाड़ों से नफरत के सिवा और कुछ हासिल नहीं होगा। जमीनी हकीकत को समझना और उसके हिसाब से आगे बढ़ना समूची मानवता के हित में होगा।
समय आ गया है, अमरीका और चीन से दो टूक बात करने का। अमरीका जिसने पाकिस्तान में घुस कर ओसामा बिन लादेन को मारा, वहां पल रहे मोस्ट वांटेड आतंकी हाफिज सईद, और सैयद सलाउद्दीन वगैरह के सफाए के लिए क्यों तत्पर नहीं होता? क्यों वह सबकुछ जानते हुए भी पाकिस्तान को आतंकवाद के सफाए के नाम पर हजारों करोड़ डालर खैरात देता जा रहा है? क्यों उसने जानने की कोशिश नहीं की कि उसकी उस खैरात से पाकिस्तान क्या करता है?
समय आ गया है, जब हम अमरीका और चीन की परवाह किए बिना एक बड़ी और सार्थक कूटनीति पर आगे बढ़ें। लेकिन यहां भी यह सवाल अहम है कि क्या हम वाकई ऐसा करने की स्थिति में हैं भी। अथवा नाहक ही दुनिया नापते जा रहे हैं।
सरकार पाकिस्तान से ही नहीं, अमेरिका से भी पूछे सवाल
Not only Pakistan but questions should be asked to US also
Written by-सत्यनारायण मिश्र
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