मदर टेरेसा को संत की उपाधि जिन चमत्कारों के आधार पर दी गई, वे सब झूठे हैं, फर्ज़ी हैं। उनका संबंध अंधी आस्थाओं से तो हो सकता है मगर विज्ञान और विवेक से कुछ भी लेना-देना नहीं है।
मदर टेरेसा की करूणा सच्ची हो सकती है, बेसहारों और दुखियारों के प्रति उनका प्रेम सच्चा रहा होगा, लेकिन जहां तक उनके द्वारा किए जा रहे चमत्कारों की बात है तो वे सरासर झूठ हैं, फ़रेब हैं। अगर उन चमत्कारों का वैज्ञानिक परीक्षण किया जाएगा तो उनकी पोल खुल जाएगी।
सच तो ये है कि चमत्कार जैसी कोई चीज़ होती ही नहीं है। जिन चीज़ों को हम समझ नहीं पाते या जो हमें अपनी शक्तियों से परे लगते हैं, उन्हें हम फ़ौरन चमत्कार मानने लगते हैं और चमत्कारों को नमस्कार करना तो हमारी फ़ितरत है।
मुश्किल ये है कि ईसाई धर्म ही नहीं, हर धर्म चमत्कारों पर विश्वास करता है, उनको प्रचारित करता है। वह चाहता है कि लोग विश्वास करे कि चमत्कारों पर विश्वास करें ताकि धर्म के प्रति, भगवानों के प्रति उनकी आस्था बढ़े। दूसरे धर्मों के अनुयायियों को भी इन्हीं चमत्कारों से आकर्षित करने का हथकंडा आज़माया जाता है।
तमाम धार्मिक प्रचारक, प्रवचन और उपदेश देने वाले ईश्वर के चमत्करों की बात करके ही लोगों को आकर्षित करते हैं। धार्मिक ग्रंथ, शास्त्र आदि तो इन चमत्कार-कथाओं से भरे-पड़े हैं। लोग इन्हीं को पढ़-सुनकर मानने लगते हैं कि कभी न कभी उनके जीवन में भी चमत्कार होंगे और उनके सब कष्ट दूर हो जाएंगे।
इसके लिए वे व्रत रखते हैं, उपवास करते हैं, पूजा-पाठ, हवन-यज्ञ करते हैं, मन्नतें मानते हैं, चढ़ावा और चादरें चढ़ाते हैं। हर धर्मगुरू उनके इन अंधविश्वासों को पालते-पोसते हैं, क्योंकि इसी से उनकी रोज़ी-रोटी चलती है, उनको यश और सम्मान मिलता है।
चमत्कार एक तरह का लालच है, प्रलोभन है। इसके बिना किसी का किसी ईश्वर और धर्म पर विश्वास नहीं जम सकता। मानवीय और नैतिक मूल्यों पर चलने और समाज के बारे में प्रेरित करने से काम नहीं बनता। इसलिए चमत्कारों का इस्तेमाल खूब किया जाता है।
वास्तव में स्वर्ग और मोक्ष वगैरा भी क तरह के प्रलोभन ही हैं। इन्हें चमत्कारों का ही एक रूप भी माना जा सकता है।
मदर टेरेसा को संत की उपाधि दिए जाने के समारोह में जाने वाले निश्चय ही अंधविश्वासी लोग हैं। लेकिन सरकार की ओर से जिन लोगों ने इसमें शिरकत की उन्होंने अंध विश्वासों को बढ़ावा देने का काम तो किया ही है, ये उस धर्मनिरपेक्षता के साथ भी विश्वासघात है जो हमारे संविधान की बुनियाद है।