दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल केवल हवाई हमले करने में ही माहिर नहीं हैं, बल्कि ये भी जानते हैं कि किसी भी संकट से होने वाले नुकसान से कैसे निपटा जाए। डैमेज कंट्रोल के इस हुनर का उपयोग वे न केवल नुकसान को कम करने के लिए कर लेते हैं बल्कि उसका अपने हित में फ़ायदा भी उठा लेते हैं।
अपने महिला एवं बाल कल्याण मंत्री संदीप कुमार के कथित सेक्स स्कैंडल में फँसने के बाद उन्होंने यही किया है। उन्होंने संदीप कुमार पर ये आरोप तो लगाया ही कि उसने धोखा दिया, मगर साथ ही तुरंत कड़ी कार्रवाई करने का दावा करके ये साबित करने की भी कोशिश कर डाली कि वे भ्रष्टाचार को किसी भी क़ीमत पर बर्दाश्त करने वाले नहीं हैं।
सफ़ाई में जारी किए गए अपने वीडियो में केजरीवाल ने इस बहाने दूसरे दलों को भी लपेट लिया। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जहाँ बीजेपी शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे और ड़ॉ. रमन सिंह जैसे दागियों को बचाने में लगी हुई है, वे तुरंत क़दम उठाकर राजनीति में नैतिकता और ईमानदारी की मिसाल पेश कर रहे हैं।
उन्होंने इसमें ये भी जोड़ दिया कि अगर नौबत आई तो वे मनीष सिसौदिया को भी नहीं छोड़ेंगे। उनके मुताबिक उन्होंने सिसौदिया को कह दिया है कि वे उन्हें भी नहीं बख्शें। इस तरह एक बार फिर वे नैतिकता के शिखर पर खड़े हो गए और उन्होंने राजनीतिक दलों को चुनौती भी पेश कर दी कि यदि मुझसे साफ हो तो पहले अपना दामन धोकर आओ।
आम लोग निश्चय ही उनके इस रवैये से खुश होंगे और उनकी ईमानदारी को कबूल भी कर लेंगे। लेकिन इससे सारे सवाल दफन हो जाएंगे ऐसा मान लेना ग़लत होगा। लोग तो जानना ही चाहेंगे कि टिकट बाँटते हुए उनसे चूक क्यों हुई और अगर उसे अनदेखा भी कर दिया जाए तो अपने विधायकों के चरित्र की जानकारी उन्हें इतनी देर से क्यों मिली।
सवाल ये भी है कि अगर जानकारी उनके पास थी तो फौरन कार्रवाई क्यों नहीं की गई। सिसोदिया का ये बयान भरोसे के लायक नही लग रहा कि सीडी मिलने के आधे घंटे में ही संदीप कुमार को मंत्री पद से हटाने का फ़ैसला कर लिया गया। क्या टीम केजरीवाल को लग रहा था मामला दब जाएगा और जब चैनल पर ख़बर चल गई तो उन्हें झक मारकर सख्ती दिखानी पड़ी?
इसके पहले फर्ज़ी डिग्री के मामले में भी पार्टी नेतृत्व ने इसी तरह से मामले को टाला था, बल्कि वह तो अपने विधायक का बचाव ही करती रही। लेकिन जब पानी नाक तक आ गया था, तभी क़दम उठाया था। कुछ इसी तरह की स्थिति पंजाब में भी बनी थी। पंजाब के संयोजक सुचा सिंह द्वारा पैसे लेने संबंधी स्टिंग ऑपरेशन के आने के कई दिनों बाद उसने उन्हें पद से हटाने का फ़ैसला किया।
ज़ाहिर है कि लगातार घट रही इस तरह की घटनाएं केजरीवाल और उनकी पार्टी की छवि को बट्टा लगा रही हैं और अगर केजरीवाल ये समझते हैं कि डैमेज कंट्रोल की उनकी रणनीति हर बार उन्हें बचा लेगी तो वे भूल कर रहे हैं। इस तरह के उपाय एक-दो बार तो काम करते हैं, लेकिन फिर अपना प्रभाव को देते हैं।
सबसे बड़ी बात ये है कि केजरीवाल की नेतृत्व क्षमता पर ही प्रश्नचिन्ह लग जाता है, क्योंकि इस तरह की लगातार हो रही घटनाएं बताती हैं कि वे न तो सही व्यक्तियों को चयन कर पा रहे हैं और न ही उन्हें काबू में ऱखने में कामयाब हो पा रहे हैं।
अभी तो पार्टी एक राज्य तक ही सीमित है। कल को जब कुछ और राज्यों में उसकी सरकारें बनेंगी और उसके सामने इस तरह की चुनौतियाँ और भी ज़्यादा बड़े रूप में पेश आएंगी। ऐसी सूरत में वह ईमानदार रहने का अपना वादा कैसे निभाएगी?
इसलिए केजरीवाल एंड कंपनी को अब ठहरकर सोचना होगा कि उनकी रणनीति में कहाँ क्या कमी रह गई है और उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है। ये काम भी उसे जल्दी करना होगा, अन्यथा लोग उसे गंभीरता से लेना ही बंद कर देंगे।
Written by-विनीत श्रीवास्तव