देश भर में कांग्रेस की जमीन सिकुड़ी है। केंद्र और असम सहित कई अन्य राज्यों में गद्दीनशीन भाजपा ने कांग्रेस मुक्त भारत का घोषित एजेंडा चला रखा है। कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी अपनी स्वास्थ्य समस्याओं के कारण पहले जैसी सक्रिय नहीं दिखतीं। मगर उनके चश्मे-चिराग और कांग्रेस के भावी अध्यक्ष राहुल गांधी अवश्य उस खिसकती जमीन को बचाने की जी-तोड़ मुहिम में जुटे हैं।
नतीजों की जमीन अभी उतनी उम्मीदों भरी नहीं दिख रही। फिर भी ना-उम्मीदी की कोई ठोस वजह भी दिखाई नहीं देती। खाट से तख्त तक पहुंचने का रास्ता काफी लंबा अवश्य कहा जा सकता है।
पिछले चंद सालों में, जबसे राहुल राजनीति की पाठशाला में शामिल हुए हैं, उनकी निगाह सीधे-सीधे चरम गरीबी से जूझते वंचित परिवारों की तरफ अधिक उठती दिखाई दी है। चाहे वो अमेठी इलाके में किसी दलित परिवार के घर भोजन करने और रात बिताने की बात हो अथवा आज के समय में जारी उनकी खाट पंचायतें। हर जगह वे असली भारत से जुड़ने की कोशिश करते दिखाई दिए हैं।
तकरीबन ढाई हजार किलो मीटर की उनकी यह यात्रा जारी है। पिछले तकरीबन तीन हफ्तों में वे चार दर्जन से कुछ कम जिलों को लांघ चुके हैं। कुछ अधिक चुनावी नजरिए से देखें तो इस दौरान राहुल तकरीबन 60 लोकसभा क्षेत्रों और 245 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों की जनता तक अपना पैगाम पहुंचा चुके हैं।
क्या उत्तर प्रदेश, देश के किसी राज्य में किसी और राजनीतिक पार्टी ने फिलहाल जनता के बीच जाने का यह अंदाज नहीं दिखाया है? लगभग करो या मरो के अंदाज में वे कांग्रेस कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाने का भगीरथ प्रयास करते दिख रहे हैं। कितना और कब वे अपने अभियान में सफल होंगे, यह अवश्य सवालों के घेरे में बना हुआ है।
जन-जन तक पहुंचने की ललक दिखाने के बावजूद वे अभी तक कांग्रेस के अल्पसंख्यक मतों के खिसकने के भय से उबर नहीं पाए। इसका प्रमाण भगवान राम की नगरी अयोध्या में दिख ही गया। राहुल ने अयोध्या में हनुमान गढ़ी में मत्था तो टेका। लेकिन राम जन्मभूमि जाकर वहां बिराजे रामलला के दर्शन करने से विरत रहे।
इस कमी को उन्होंने भगवान राम के वनवास काल की तपस्थली चित्रकूट में जरूर पूरा करने की कोशिश की। वे वहां प्रख्यात कामदगिरि पर्वत के दर्शन करने गए। चित्रकूट से लेकर रानी लक्ष्मी बाई की झांसी नगरी तक उन्होंने बुंदेलखंड की बिलखती जनता की नब्ज टटोलने की खासी कोशिशें भी कीं।
बुंदेलखंड राहुल के चिंतन में हमेशा से रहा है। मगर समूचे बुंदेलखंड में तीन दशक से भी अधिक समय से कांगे्रस लगातार अपना जनाधार खोती दिखी है। इस बार राहुल की इस खाट यात्रा का क्या असर पड़ेगा, इसका परीक्षण तो अगले साल होने जा रहे विधानसभा चुनावों में ही हो सकेगा।
राहुल की खाट पंचायतों ने देश को एक अलग राजनीतिक चिंतन का मसाला अवश्य दे दिया है। राजनीतिक पार्टियां स्वाभाविक रूप से इसकी अपनी-अपनी तरह से व्याख्या कर रही हैं। देखने वाली बात यह है कि इस खाट चिंतन के सहारे राहुल किसकी खाट खड़ी कर पाते हैं। गाड़ी कहीं रिवर्स गियर में तो नहीं पड़ जाएगी। उनकी नेतागिरी चमकती है या फिर कांग्रेस उत्तर प्रदेश में दस से बीस के बीच फंसी रहती है।
राहुल गाँधी अखिलेश यादव मायावती दोनों से सुरक्षित दूरी बनाए रखते हुए एक और सत्ता की चौखट निहारती भाजपा का कुछ बिगाड़ पाएंगे क्या। खुद कांग्रेसी संशय में हैं।
ये किसकी खाटिया खड़ी करने में लगे हैं राहुल गाँधी?
What will Rahul Gandhi achieve through his cot meetings?
Written by-सत्यनारायण मिश्र, गुवाहाटी
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