नोटबंदी के चलते रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल की जितनी फज़ीहत हुई है उतनी किसी की नहीं। प्रधानमंत्री होने की वजह से नरेंद्र मोदी तो बच गए मगर उर्जित पटेल के लिए कोई रास्ता नहीं बचा है। वे भागे-भागे से रहते हैं और किसी सवाल का जवाब देने से बचते हैं। मैं जब उनका एनकाउंटर करने गया तो तब भी वे मेज़ के नीचे छिप बैठे थे। उनके निजी सचिव ने तो मना ही कर दिया था कि साहब नहीं हैं और जब मैंने उनके चैंबर के अंदर झाँका तो वे अपनी कुर्सी पर दिखे भी नहीं। मगर अचानक मुझे लगा कि मेज़ के नीचे कुछ हरकत हो रही है। बस मैं धड़धड़ा कर अंदर घुस गया वहीँ मेज़ के नीचे उनके साथ बैठ गया। उन्होंने मेरी ओर बेबसी की नज़रों से देखा तो मैं पानी-पानी हो गया। सोचा छोड दो इस बेचारे को, आख़िर उसका दोष ही क्या है। मगर तभी आँखों के सामने जालिम संपादक का चेहरा घुमने लगा और मैं भी सख़्त हो गया। मैंने उन्हें उठाया और उनकी कुर्सी पर बैठाकर कहा कि इस तरह छिपने से काम नहीं चलेगा, सच का सामना कीजिए। इस पर वे पहले दुख भरी मुस्कान के साथ हँसे और फिर फूट-फूट कर रोने लगे। मैं फिर भौंचक्का। मैने उन्हें टिशू पेपर दिए और पानी भी पिलाया। जब वे शांत हो गए तो सवालों का सिलसिला शुरू किया।
उर्जितजी, रिजर्व बैंक की ऐसी दुर्गति कभी नहीं देखी गई। विशेषज्ञों का कहना है कि आपकी बदौलत रिजर्व बैंक की साख गिर गई, क्योंकि उसने अपनी स्वायत्ता का खयाल नहीं रखा और वह सरकार के इशारों पर चलता रहा?
आप जो कह रहे हैं वह सब सच है तो मैं अब क्या जवाब दूँ। मैं जानता हूँ कि ये सब हुआ है और इसीलिए परेशान भी रहता हूँ। लोगों से छिपते रहने के पीछे भी यही वजह है कि मैं जानता हूँ कि मेरे हाथ रिजर्व बैंक के ख़ून से रंगे हुए हैं।
हर तरफ आपकी निंदा हो रही है, आपको धिक्कारा जा रहा है। आप मज़ाक के पात्र बनाए जा रहे हैं। कैसा लगता है आपको?
कैसा लग सकता है मुझे आप ही सोचिए? मैं क्या यही सब देखने के लिए रिजर्व बैंक का गवर्नर बना था? बिल्कुल नहीं। अगर मुझे पता होता कि ये सब करना पड़ेगा तो कभी ये पद न स्वीकार करता। अब भारतीय अर्थव्यवस्था का इतिहास तो मुझे कायर और सरकारपरस्त के रूप में ही दर्ज़ करेगा न। मैं तो कहीं का नहीं रहा, पूरी तरह से लुट गया इस नोटबंदी के चक्कर में।
देखिए मुझे आपकी चिंता नहीं है, रिजर्व बैंक की चिंता है इसीलिए ये सब पूछ रहा हूँ। अच्छा ये बताइए कि रातों को नींद आती है आपको?
ऐसे में नींद कहाँ से आएगी मेरे भाई? मैं तो खवाब में अख़बारों और चैनलों की हेडलाइंस देखता हूँ और चौंककर जाग पड़ता हूँ। नींद में मुजे पार्लियामेंट्री पैनल के सवाल सुनाई देते हैं। कोई पूछता है ये बताओ, कोई कहता है वह बताओ। मैं इसी उधेड़बुन में लगा रहता हूँ कि किस सवाल का क्या जवाब दूँ और सुबह हो जाती है। अर्धनिद्रा में ही बैंक आ जाता हूँ और यहीं मेज़ के नीचे बैठा रहता हूँ ताकि कोई सवाल न करने लगे।
लेकिन सवालों से तो आप बच नहीं सकते न। पार्लियामेंट्री पैनल तो आपकी क्लास ले ही रही है न?
आप कह तो सही रहे हैं। समझ में नहीं आता क्या करूँ। अब तो लगता है कि कहीं जाकर डूब मरूँ।
अरे आप ऐसा क्यों सोचते हैं? देश न सही, एक्सपर्ट न सही मगर सरकार आपके साथ है, मोदीजी आपके साथ हैं। आपको हिम्मत से काम लेना चाहिए!
अरे जब पार्लियामेंट्री पैनल को जवाब देना होता है तो न तो सरकार साथ होती है न मोदीजी। शुक्र है कि मनमोहन सिंह होते हैं जो मेरे ऊपर रहम खाकर मुझे बचा लेते हैं, वर्ना वीरप्पा मोइली जैसे लोग तो मेरी चमड़ी उधेड़ने पर आमादा हैं।
देखिए पार्लियामेट्री पैनल की ज़िम्मेदारी है कि सचाई को जाने और संसद को बताए, तो वह तो अपना काम कर रही है न?
मैंने कहाँ कहा कि वह अपना काम नहीं कर रही? मैं तो ये कह रहा हूँ कि सरकार ने मेरा काम लगा दिया और ऐसा काम लगाया है कि जिसको देखो वही मेरा मज़ाक उड़ा रहा है। मैं गवर्नर न हुआ सर्कस का जोकर हो गया। मुझे चापलूसों का सम्राट बताया जा रहा है, मोदीजी का ग़ुलाम कहा जा रहा है। बताइए इतनी दुर्गति क्या कभी किसी गवर्नर की हुई है, नहीं हुई है। उल्टे रघुराम राजन तो सरकार की बजाकर ही चले गए। क्या उनकी छवि थी और क्या मेरी बन गई है। है न डूब मरने वाली बात?
देखिए, अभी भी देर नहीं हुई है। आप अपनी ग़लती सुधार सकते हैं। अपनी छवि दुरुस्त कर सकते हैं?
कैसे...कैसे? बताइए मुझे।
आप पार्लियामेंट्री पैनल को ही नहीं पूरी दुनिया को सच बता दीजिए। बता दीजिए कि नोटबंदी आपने दबाव में की, बता दीजिए कि आपको चौबीस घंटे के अंदर नोटबंदी की सिफारिश करने के लिए मजबूर किया गया?
आप तो मुझे मरवा दोगे, सचमुच में मेरा एनकाउंटर करवा दोगे। मैं गुजरात गया और समझो मेरा एनकाउंटर हुआ। अरे बाबा, आपको समझना चाहिए कि मैं ऐसा नहीं कर सकता, कोई भी नही कर सकता। अब तो मेरे पास नोटबंदी को सही ठहराने के अलावा कोई रास्ता रह ही नहीं गया है। ग़लत है मगर फिर भी सही ठहरा रहा हूँ और ठहराता रहूँगा।
लेकिन पैनल को सात पेज का जो बयान आपने सौंपा था उसमें तो आपने एक तरह से कह ही दिया है कि चौबीस घंटे पहले ही आपसे नोट माँगा गया था। बस आपको यही बताना है अब कि नोटबंदी का फ़ैसला सरकार का था रिजर्व बैंक का?
कमाल है, जो चीज़ दिन के उजाले की तरह साफ है उसके लिए भी मेरा बयान चाहिए। अगर नोटबंदी का फ़ैसला रिजर्व बैंक का होता तो घोषणा भी वही करता। घोषणा अगर प्रधानमंत्री ने की है तो इसका मतलब यही है कि फ़ैसला भी उन्हीं का था। ध्यान दीजिए, मैं कह रहा हूँ उनका था, सरकार का नहीं।
तो यही बात पैनल को बता दीजिए। वह यही तो जानने के लिए सबसे ज़्यादा बेचैन है?
वहाँ नहीं कह सकता ये सब, क्योंकि वह रिकॉर्ड में आ जाएगा। आपके फ़ेक एनकाउंटर को तो लोग सीरियसली लेते ही नहीं हैं इसलिए यहाँ बोलने से कुछ नहीं होगा।
आप पैनल को ये भी नहीं बता रहे कि कितने नोट वापस लौटे हैं और ये भी स्पष्ट नहीं कर रहे कि नोटों का संकट कब ख़त्म होगा?
यही तो धर्मसंकट है न मेरे मित्र। नोट जितने आए हैं उससे ये निष्कर्ष निकलता है कि ब्लैक मनी बची ही नहीं। फिर सरकार को जो उम्मीद थी तीन-चार लाख करोड़ मिलने की उस पर भी पानी फिर चुका है। यानी पूरी स्कीम ही फेल हो चुकी है, ऐसे में मुझे यही कहा गया है कि बताओ ही मत चुप रहो।
इसीलिए पैनल के सामने आप चुप लगा जाते हैं?
और क्या करूँ, बताइए मुझे। ये पैनल मी मुझसे सब कुछ उगलवाने पर आमादा है। मुझे छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं है। उधर वित्तीय मामलों की स्थायी समिति भी मेरी क्लास ले रही है। मेरे दिन जवाब देते हुए ही कट रहे हैं। या ख़ुदा, मैं कहाँ फँस गया हूँ।
देखिए, एक बार अगर आप सच बोल देंगे तो आपकी साख भी बन जाएगी और रिज्रव बैंक की स्वायत्ता पर भी हाथ डालने से सरकार कतराने लगेगी?
ये आपकी खामखयाली है। सरकार का रवैया नहीं बदलेगा। वह तो अभी रिजर्व बैंक की और भी बांट लगाएगी, आप देखते रहना।
इस बीच दरवाज़े पर खटखट हुई। खटखट सुनते ही उर्जित पटेल मेज़ के नीचे जा छिपे। दरवाज़ो खोलकर निजी सचिव ने कहा कि सर पार्लियामेंट्री पैनल के सवालों के जवाब देने जाना है। उर्जित तुरंत नीचे से निकलकर टाई की गाँठ ठीक करने लगे। मैं समझ गया कि आज फिर उनसे पूछताछ होगी और आज फिर पैनल उनसे सचाई उगलवाने में नाकाम रहेगा। उर्जित के चेहरे पर उड़ती हवाईयाँ देखते हुए मैं वापस चला आया।
Written by-डॉ. मुकेश कुमार
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वैधानिक चेतावनी - ये व्यंग्यात्मक शैली में लिखा गया काल्पनिक इंटरव्यू है। कृपया इसे इसी नज़रिए से पढ़ें।